यह कम लोग जानते होंगे कि फिल्म पीपली के नत्था की अम्मा फर्रुख जफर १६ साल तक अपने गांव चकेसर की प्रधान रह चुकी हैं । जौनपुर के शाहगंज तहसील के गांव चकेसर में अब भी उनकी पहचान प्रधान अम्मा की है, नत्था की अम्मा की नहीं । आकाशवाणी की उद्घोषिका से अपना करियर शुरू करने वाली फर्रुख जफर की शादी तब हो गई थी जब वह कक्षा सात में थीं । एक बेटी पैदा करने के बाद उन्होंने लखनऊ के महिला कालेज से हाईस्कूल किया । इंटर और बीए के बाद अलीगढ़ से एमए का एक सेमेस्टर भी कर डाला ।
मुंबई में पीपली लाइव की सफलता के जश्न में शरीक होकर कुछ ही दिन पहले लखनऊ आईं फर्रुख जफर ने "नईदुनिया" से एक विशेष बातचीत में कहा कि बचपन से कुछ करने की एक भूख थी जो हर वक्त कचोटती थी । इसीलिए कभी चुप नहीं बैठीं । शादी के बाद लखनऊ आ गईं । पढ़ने लगीं और पढ़ाई के साथ कुछ करने की ललक १९५७ में आकाशवाणी खींच ले गई । पाटदार आवाज को कौन नकारता । आडीशन में पास हुईं और बन गईं अनाउंसर । आकाशवाणी के पंचरंगी कार्यक्रम की पहली उदघोषिका होने का गर्व भी फर्रुख अम्मा को हासिल है ।
एक महफिल में मुजफ्फर अली ने इन्हें बतियाते देखा तो मुखातिब हुए कि मेरी मदद करिए । ठट्ठा मार कर बताती हैं कि उन्होंने बिल्कुल कंपा लगा के फंसाया । बात बात में कहते थे कि मेरी मदद करिए । फिल्म "उमराव जान" की तैयारी कर रहे थे । पता ही नहीं चला कि फिल्म का पहला शॉट मुझी पर फिल्माया गया । उनके सीरियल "दमयंती" में आमना बुआ के किरदार को देख आशुतोष गोवारिकर ने "स्वदेश" में काम का मौका दिया । अनुषा रिजवी ने स्वेदश में मेरी आवाज सुनकर ही फोन किया । बकौल अनुषा दो-ढाई सौ लोगों के ऑडीशन के बाद आमिर ने मुझे चुना । आमिर की तारीफ करते हुए तो उनकी आवाज पंचम तक पहुंच जाती है । बड़े फख्र से बताती हैं कि पीपली में जितने डॉयलाग मैंने बोले हैं सब मेरे हैं । मैंने अपने गांव की जुबान और जुमले जैसे बोले जाते हैं वैसे ही अदा कर दिए । खुद लिखी स्क्रिप्ट । तारीफ आमिर की कि उन्होंने बोलने दिया । बताती हैं कि "पलथड़िया मार के " को गाली कहने वाले पूरब की संस्कृति से वाकिफ नहीं हैं ।
१९७० में आकाशवाणी लखनऊ की नौकरी छोड़ वापस गांव गईं तो लोगों ने प्रधान चुन लिया । बताती हैं कि अपने सैकड़ों एकड़ खेत देकर सड़क बनवाई । जो बन सका किया । जफर साहब दिल्ली शिफ्ट हुए तो वहां पहुंची । उन्हीं दिनों आकाशवाणी दिल्ली में उर्दू सर्विस शुरू होने वाली थी । उसमें ऑडीशन दिया और वहां भी उद्घोषिका हो गईं । उनके शौहर उप्र सरकार में कमला पति त्रिपाठी की सरकार में मंत्री रहे हैं । पूर्व राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा जब लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के १९४२ में महामंत्री थे तो संघ के अध्यक्ष फर्रुख के शौहर सैयद मोहम्मद जफर थे । बाद में चौधरी चरण सिंह ने जब बीकेडी बनाई तो उसके पहले महासचिव भी जफर ही थे (सुहेल वहीद,नई दुनिया,दिल्ली,30.8.2010)।
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