कल नाना पाटेकर , डिंपल कपाडिया , सुनील शेट्टी , अंजना सुखानी , रेहान खान, विद्या मालवदे और मोहनीश बहल अभिनीत तुम मिलो तो सही रिलीज हुई है। निर्देशन है कबीर सदानंद का। गीत इरशाद कामिल का और संगीत है मन सात समंदर डोल गया वाले संदेश शॉडिल्य का। लगभग सवा दो घंटे की इस फिल्म को सेंसर ने "यू" प्रमाणपत्र दिया है।
‘तुम मिलो तो सही’ तीन जोड़ियों की कहानी है, जो उम्र के अलग-अलग मोड़ पर हैं और जिनके लिए प्यार के मायने अलग-अलग हैं। ये तीनों जिंदगी को अपने रास्ते और अपनी सोच के साथ जीना चाहते हैं। इस सभी की कहीं न कहीं कुछ मजबूरी भी है , लेकिन मुश्किलों से डरकर रास्ता बदलना इनकी फितरत में नहीं है। फिल्म में रेहान और अंजना सुखानी नई पीढी का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह भी दिखाया गया है कि युवा पीढ़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा की जा रही पैसों की बरसात में अपनी प्राचीन संस्कृति को खत्म करने पर किस कदर आमादा है ।
एक मल्टीनैशनल कॉफी कंपनी , मुंबई शहर की बेहतरीन लोकेशन पर कंपनी के आउटलेट खोलना चाहती है। एमडी चाहते हैं कि उनकी कंपनी का सीईओ अमित नागपाल (सुनील शेट्टी )लकी कैफे को खरीदने की डील फाइनल करे। अमित के लिए यह डील एक दांव जैसा है। फाइनल हुआ तो बहुत कुछ मिलेगा और न हुआ तो अपना सब कुछ खोना पड़ सकता है। वह आश्वस्त इसलिए है कि लकी कैफे की मालकिन दिलशान ईरानी (डिपंल कापडिया) उसकी पत्नी अनीता ( विधा मालवदे) की अच्छी दोस्त है। मगर इस कैफे को अपनी जिंदगी समझने वाली दिलशान इसे हर हाल में बनाए रखना चाहती है और अमित का ऑफर ठुकरा देती है। राजगोपाल सुब्रह्मण्यम (नाना पाटेकर) लकी कैफे को बचाने के लिए अदालत में दिलशान का केस लड़ता है। विक्रम जीत सिंह( रेहान खान) और शालिनी(अंजना सुखानी )इस कैफे को बचाने की मुहिम में युवा पीढ़ी का साथ लेते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में निखत काज़मी ने डिंपल और नाना के रोल के तारीफ के पुल बांधे हैं। नवभारत टाइम्स में चंद्रमोहन शर्मा ने इसे डिंपल बेहतरीन फिल्मों में माना है। वहीं नाना पाटेकर हमेशा की तरह इस बार भी चिड़चिडे और झगड़ालू राजगोपाल सुब्रह्मण्यम के अंदाज में नजर आए , जिन्हें लगता है कि सिर्फ वही सही हैं। अंजना सुखानी अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में कुछ अलग लुक में नजर आईं। उन्होंने सुनील शेट्टी की भी तारीफ़ की है मगर उनके हिसाब से विधा मालवदे ने ऐक्टिंग की बजाए चिल्लाने में ज्यादा जोर लगाया।
नभाटा ने फिल्म के सगीत को कहानी के अनुकूल माना है और राघव सच्चर के टाइटिल सॉन्ग तुम मिलो तो सही को पूरे अंक दिए हैं। कुणाल गांजावाला और सुनिधि चौहान की आवाज में आई एम बेड टीन एजर्स की पसंद को ध्यान में रखकर कहानी में जोड़ तो दिया गया , लेकिन गाना कहानी की गति को रोकता है। वेबदुनिया के अनुसार, टाइटल सांग को छोड़ अन्य गीत बेदम है और उन्हें फिल्म में ठूँसा गया है। मगर टाइम्स ऑफ इंडिया की टिप्पणी है कि साधारण संगीत के बावजूद इस फिल्म में बांधे रखने वाली कई चीजें हैं।
नभाटा लिखता है कि डायरेक्टर कबीर सदानंद कलाकारों से बेहतरीन परफॉर्मेंस लेने के साथ - साथ दर्शकों को कहानी के साथ बांधे रखने में कामयाब रहे हैं । नई दुनिया में मृत्यंजय प्रभाकर ने लिखा है कि फिल्म पर कबीर की पकड़ शुरू से अंत तक बनी रहती है। वेबदुनिया में संजय ताम्रकर जी ने भी माना है कि एक लेखक के बजाय डायरेक्टर के रूप में कबीर सदानंद ज्यादा प्रभावित करते हैं। उन्होंने एक्टर्स से अच्छा काम लिया है और कुछ शॉट्सा अच्छे फिल्माए हैं। नवभारत टाइम्स और वेबदुनिया दोनों ने माना है कि रेहान और अंजना के रोमांटिक पहलू को कहानी का हिस्सा बनाने की ज़रूरत नहीं थी और यह फिल्म का सबसे कमज़ोर पहलू है। मृत्युंजय प्रभाकर के हिसाब से फिल्म की पटकथा काफी रोचक है मगर टाइम्स ऑफ इंडिया और वेबदुनिया ने खासकर फिल्म के शुरुआती हिस्सों की एडिटिंग ठीक से नहीं किए जाने की ओर ध्यानाकर्षण किया है।
शर्मा जी लिखते हैं कि यह फिल्म उन्हीं के लिए है जो अच्छी और अलग सोच के साथ - साथ मैसेज देती फिल्मों के शौकीन हैं ।
वेबदुनिया ने एक्टिंग को छोड़ फिल्म के अन्य पहलू औसत दर्जे का होने के आधार पर इसे ढाई स्टार दिये हैं जबकि नभाटा ने यह मानते हुए कि इस फिल्म में ऐसी कई खूबियां हैं जो अच्छी और लीक से हटकर बनी फिल्मों को देखने वाले शौकीनों की कसौटी पर सौ फीसदी उतरने का दम रखती हैं, इसे तीन स्टार दिया है। टाइम्स ऑफ इँडिया ने फिल्म को मुंबई के जज्बात को ठीक से फिल्माने और कहानी को सही तरीक़े से बयां करने के आधार पर इसे तीन स्टार दिया है।
‘तुम मिलो तो सही’ तीन जोड़ियों की कहानी है, जो उम्र के अलग-अलग मोड़ पर हैं और जिनके लिए प्यार के मायने अलग-अलग हैं। ये तीनों जिंदगी को अपने रास्ते और अपनी सोच के साथ जीना चाहते हैं। इस सभी की कहीं न कहीं कुछ मजबूरी भी है , लेकिन मुश्किलों से डरकर रास्ता बदलना इनकी फितरत में नहीं है। फिल्म में रेहान और अंजना सुखानी नई पीढी का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह भी दिखाया गया है कि युवा पीढ़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा की जा रही पैसों की बरसात में अपनी प्राचीन संस्कृति को खत्म करने पर किस कदर आमादा है ।
एक मल्टीनैशनल कॉफी कंपनी , मुंबई शहर की बेहतरीन लोकेशन पर कंपनी के आउटलेट खोलना चाहती है। एमडी चाहते हैं कि उनकी कंपनी का सीईओ अमित नागपाल (सुनील शेट्टी )लकी कैफे को खरीदने की डील फाइनल करे। अमित के लिए यह डील एक दांव जैसा है। फाइनल हुआ तो बहुत कुछ मिलेगा और न हुआ तो अपना सब कुछ खोना पड़ सकता है। वह आश्वस्त इसलिए है कि लकी कैफे की मालकिन दिलशान ईरानी (डिपंल कापडिया) उसकी पत्नी अनीता ( विधा मालवदे) की अच्छी दोस्त है। मगर इस कैफे को अपनी जिंदगी समझने वाली दिलशान इसे हर हाल में बनाए रखना चाहती है और अमित का ऑफर ठुकरा देती है। राजगोपाल सुब्रह्मण्यम (नाना पाटेकर) लकी कैफे को बचाने के लिए अदालत में दिलशान का केस लड़ता है। विक्रम जीत सिंह( रेहान खान) और शालिनी(अंजना सुखानी )इस कैफे को बचाने की मुहिम में युवा पीढ़ी का साथ लेते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में निखत काज़मी ने डिंपल और नाना के रोल के तारीफ के पुल बांधे हैं। नवभारत टाइम्स में चंद्रमोहन शर्मा ने इसे डिंपल बेहतरीन फिल्मों में माना है। वहीं नाना पाटेकर हमेशा की तरह इस बार भी चिड़चिडे और झगड़ालू राजगोपाल सुब्रह्मण्यम के अंदाज में नजर आए , जिन्हें लगता है कि सिर्फ वही सही हैं। अंजना सुखानी अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में कुछ अलग लुक में नजर आईं। उन्होंने सुनील शेट्टी की भी तारीफ़ की है मगर उनके हिसाब से विधा मालवदे ने ऐक्टिंग की बजाए चिल्लाने में ज्यादा जोर लगाया।
नभाटा ने फिल्म के सगीत को कहानी के अनुकूल माना है और राघव सच्चर के टाइटिल सॉन्ग तुम मिलो तो सही को पूरे अंक दिए हैं। कुणाल गांजावाला और सुनिधि चौहान की आवाज में आई एम बेड टीन एजर्स की पसंद को ध्यान में रखकर कहानी में जोड़ तो दिया गया , लेकिन गाना कहानी की गति को रोकता है। वेबदुनिया के अनुसार, टाइटल सांग को छोड़ अन्य गीत बेदम है और उन्हें फिल्म में ठूँसा गया है। मगर टाइम्स ऑफ इंडिया की टिप्पणी है कि साधारण संगीत के बावजूद इस फिल्म में बांधे रखने वाली कई चीजें हैं।
नभाटा लिखता है कि डायरेक्टर कबीर सदानंद कलाकारों से बेहतरीन परफॉर्मेंस लेने के साथ - साथ दर्शकों को कहानी के साथ बांधे रखने में कामयाब रहे हैं । नई दुनिया में मृत्यंजय प्रभाकर ने लिखा है कि फिल्म पर कबीर की पकड़ शुरू से अंत तक बनी रहती है। वेबदुनिया में संजय ताम्रकर जी ने भी माना है कि एक लेखक के बजाय डायरेक्टर के रूप में कबीर सदानंद ज्यादा प्रभावित करते हैं। उन्होंने एक्टर्स से अच्छा काम लिया है और कुछ शॉट्सा अच्छे फिल्माए हैं। नवभारत टाइम्स और वेबदुनिया दोनों ने माना है कि रेहान और अंजना के रोमांटिक पहलू को कहानी का हिस्सा बनाने की ज़रूरत नहीं थी और यह फिल्म का सबसे कमज़ोर पहलू है। मृत्युंजय प्रभाकर के हिसाब से फिल्म की पटकथा काफी रोचक है मगर टाइम्स ऑफ इंडिया और वेबदुनिया ने खासकर फिल्म के शुरुआती हिस्सों की एडिटिंग ठीक से नहीं किए जाने की ओर ध्यानाकर्षण किया है।
शर्मा जी लिखते हैं कि यह फिल्म उन्हीं के लिए है जो अच्छी और अलग सोच के साथ - साथ मैसेज देती फिल्मों के शौकीन हैं ।
वेबदुनिया ने एक्टिंग को छोड़ फिल्म के अन्य पहलू औसत दर्जे का होने के आधार पर इसे ढाई स्टार दिये हैं जबकि नभाटा ने यह मानते हुए कि इस फिल्म में ऐसी कई खूबियां हैं जो अच्छी और लीक से हटकर बनी फिल्मों को देखने वाले शौकीनों की कसौटी पर सौ फीसदी उतरने का दम रखती हैं, इसे तीन स्टार दिया है। टाइम्स ऑफ इँडिया ने फिल्म को मुंबई के जज्बात को ठीक से फिल्माने और कहानी को सही तरीक़े से बयां करने के आधार पर इसे तीन स्टार दिया है।
दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित समीक्षा पर एक नज़रः
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