स्वागत

Tuesday, April 27, 2010

इस "अपार्टमेंट" से बेघर भले

अपार्टमेंट के निर्देशक जगमोहन मूंधरा बवंडर और प्रोवोक्ड वाले नहीं हैं। ये मूंधरा हैं LA Goddess, Sexual Malice और Tropical Heat वाले। आपने सुना है इन फिल्मों के बारे में क्या? चलिए कोई बात नहीं। बाद में उन्होंने कामसूत्र और शूट ऑन साइट बनाई जिसे अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के रूप में प्रचारित किया गया। इन फिल्मों के बारे में आपने थोड़ा सुना होगा । वही मूंधरा इस बार लाए हैं अपार्टमेंट। तनुश्री दत्ता,नीतू चन्द्रा,रोहित राय,अनुपम खेर,बॉबी डार्लिंग,मुश्ताक खान,नसार अब्दुल्लाह अभिनीत इस फिल्म के गीत लिखे हैं सईद गुलरेज ने। संगीत है बप्पी दा का। 108 मिनट की इस फिल्म को सेंसर ने सर्टिफिकेट दिया है।
मूंधरा की पिछली फिल्मों की ही तरह इस फिल्म में भी महिलाएं केंद्रीय भूमिका में हैं। फिल्म में तनुश्री एक एयरहोस्टेस बनी है जो अपने ब्वॉयफ्रेंड रोहित राय के साथ एक अपार्टमेंट में रहती है। रोहित एक विज्ञापन कंपनी में मैनेजर हैं जिन्हें लड़कियों से अफेयर के कारण तनुश्री उसे फ्लैट से निकाल देती है। अब तनु को फ्लैट के ईएमआई के लिए पैसा चाहिए। सो वह फ्लैट का एक कमरा नीतू चंद्रा को किराए पर देती है। नीतू एक छोटे से शहर से,मुंबई पहुंची है-बड़े सपने लेकर। मुंबई के इस अपार्टमेंट में उनके पड़ोसी हैं-कवि और गीतकार अनुपम खेर। तन्हा के साथ है उनकी बिल्ली-शहजादी। अनुपम खेर भी परेशान हैं क्योंकि प्रोड्यूसर चाहता है कि वे चोली के पीछे जैसे गाने लिखें। फिल्म के अंत में, सीधी-सादी दिखने वाली नीतू का दूसरा चेहरा तनु के सामने आता है जब नीतू अनुपम खेर की हत्या कर देती है। कुल मिलाकर,मूवी ऐसे वर्क कल्चर को दर्शाती है, जहां हर कोई नैतिक मूल्यों को दरकिनार कर शॉर्टकट से अपनी मंजिल पाना चाह रहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में निखत काजमी ने नीतू चंद्रा के कारण ही इस फिल्म को देखने लायक बताया है। नवभारत टाइम्स में चंद्रमोहन शर्मा लिखते हैं कि दो महिला किरदारों के आसपास घूमती इस मूवी में नीतू निश्चित तौर से तनुश्री पर भारी पड़ी हैं। उन्होंने अनुपम खेर के अभिनय को ठीक-ठाक बताया है मगर दैनिक भास्कर ने अनुपम खेर के अभिनय की तारीफ की है।
सबने माना है कि इस फिल्म में गानों की जरूरत नहीं थी मगर मूंधरा को नौ-नौ गाने फिट करना ठीक लगा। चंद्रमोहन शर्मा लिखते हैं कि इस छोटी सी कहानी को जगमोहन शुरू से ही पटरी पर नहीं ला पाए हैं और शायद इसी वजह से उन्होंने गानों का सहारा लिया है। मगर बप्पी दा का एक भी गाना ऐसा नहीं है जो हॉल से बाहर गुनगुनाया जा सके। ओ जाने जान जान और टाइटिल सांग ये है मुंबई को अच्छे फिल्मांकन के कारण कुछ हद तक बर्दाश्त किया जा सकता है।
हिंदुस्तान टाइम्स में मयंक शेखर ने इसे 2004 की थर्ड क्लास फिल्म गर्लफ्रेंड जैसी बताते हुए केवल एक स्टार के बराबर माना है। दैनिक भास्कर लिखता है कि फिल्म को थ्रिलर के रूप में प्रचारित किया गया मगर इसमें थ्रिलर का कोई मसाला नहीं है। पत्र की ओर से फिल्म को मिले सिर्फ डेढ स्टार। इंडियन एक्सप्रेस में शुभ्रा गुप्ता ने फिल्म की कहानी को चुराई हुई बताया है । तिस पर से घटिया एक्टिंग तथा रद्दी गाने। लिहाजा केवल दो स्टार। मेल टुडे में विनायक जबर्दस्त गुस्से में हैं। लिखते हैं कि यह फिल्म बिना निर्देशक के बनी लगती है और ऐसी फिल्म की समीक्षा तो दूर,इसके बारे में बात तक की जानी चाहिए या नहीं,इस पर भी विचार करने की जरूरत है। तब भी उन्होंने दो स्टार दे ही दिए। निखत काजमी की टिप्पणी है कि यह फिल्म तभी देखी जा सकती है जब आप इसके हॉलीवुड संस्करण सिंगल ह्वाइट वीमन न देखने का वायदा करें। उन्हें यह फिल्म तीन स्टार के बराबर लगी है। चंद्रमोहन शर्मा ने भी इसे फैमिली क्लास और एंटरटेनमेंट की चाह रखने वालों को अपसेट करने वाली मूवी बताने के बावजूद तीन स्टार दिए हैं।

No comments:

Post a Comment

न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः