1894 में,रंगरूटों के मनोरंजन के लिए लंदन में रखे गए एक कार्यक्रम में गायिका-अभिनेत्री लिली हर्ले की आवाज एकदम से बैठ गई। फौजी दर्शक उन पर फब्तियां कसने लगे। तब हर्ले उदास चेहरे और अवसाद लिए बेटे के पास पहुंचीं। उधर ,थिएटर मैनेजर को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। अचानक , मैनेजर ने हर्ले के बेटे को स्टेज पर भेज दिया। उस बच्चे ने स्टेज पर गाना शुरू किया। दर्शकों का इतना मनोरंजन हुआ कि उन्होंने खूब पैसे फेंके। कार्यक्रम की समाप्ति पर जब मां बेटे को लेने स्टेज पर आईं,तो दर्शकों ने जोरदार तालियों से उनका स्वागत किया। यह लिली हर्ले का आखिरी और उनके बेटे चार्ली स्पेन्सर चैपलिन का पहला स्टेज शो था। तब चैपलिन महज पाँच साल के थे। आज उन्हीं चार्ली चैपलिन का जन्म दिन है।
अ वूमन ऑफ पेरिस,द गोल्ड रश,द सर्कस,सिटी लाइट्स,मॉडर्न टाइम्स,लाइम लाइट औरअ किंग इन न्यूयार्क उनकी कुछ जबर्दस्त चर्चित फिल्में हैं। द ग्रेड डिक्टेटर(1940) उनकी पहली फिल्म है जिसमें डायलॉग थे। अ काउंटेस फ्रॉम हांगकांग उनकी आखिरी फिल्म है। द ट्रैम्प की उनकी भूमिका सबसे ज्यादा चर्चित मानी जाती है। चैपलिन Monsieur Verdoux को अपनी सबसे पसंदीदा फिल्म बताते थे मगर प्रशंसक द किड को उनकी सबसे परफेक्ट और सबसे पर्सनल फिल्म मानते हैं। द सर्कस के लिए चैपलिन को पहला एकेडमी अवार्ड मिला। गांधी जी ने चैपलिन से एक मुलाकात में कहा था कि बढता मशीनीकरण एक बड़ी समस्या है। कहते हैं कि चैपलिन की फिल्म मॉडर्न टाइम्स,गांधीजी के इसी सिद्धांत से प्रभावित थी। द गोल्ड रश और द सर्कस उनकी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्में हैं।
अमूमन,स्क्रिप्ट के पूरा होने के बाद शूटिंग शुरू की जाती है मगर चैपलिन ने ऐसा कभी नहीं किया। उनके विचार अकसर बदलते रहते। नतीजा-रीशूट पर रीशूट। कई दृश्य सौ-सौ बार री-शूट किये गए। यही कारण है कि चैपलिन की फिल्में तैयार होने में वर्षों लेती थीं और उनके अन्य समकालीनों की तुलना में हम चैपलिन के फिल्मों की संख्या काफी कम पाते हैं।
लेखन,संगीत और खेल से भी चैपलिन को बेहद लगाव था। उन्होंने कम से कम चार किताबें “My Trip Abroad”, “A Comedian Sees the World”, “My Autobiography” और “My Life in Pictures”लिखी हैं। बिना किसी प्रशिक्षण के,कई प्रकार के वाद्य वे समान कुशलता से बजा सकते थे। “Sing a Song”; “With You Dear in Bombay”; “There’s Always One You Can’t Forget”, “Smile”, “Eternally” और “You are My Song” उनके कुछ बहुचर्चित गाने हैं। उनकी तमाम फिल्मों के साउंडट्रैक भी खुद उन्हीं ने तैयार किए थे। वे अकेले ऐसे कॉमेडियन हैं जिन्होंने अपनी सभी फिल्मों का निर्माण,लेखन,अभिनय और निर्देशन तो खुद किया ही,पैसों का बंदोवस्त भी स्वयं वही करते रहे।
चैपलिन की प्रतिभा सार्वकालिक महत्व की है। उनकी लोकप्रियता को भुनाने की अनेक कोशिशें की गई हैं-विज्ञापनों से लेकर एनीमेशन तक में। संभावना बनी है कि अब आप चार्ली चैपलिन को एनिमेशन अवतार में टेलीविजन पर देख सकें। भारतीय एनिमेशन और स्पेशल इफेक्ट्स कंपनी डीक्यू एंटरटेनमेंट पहली बार एक महान कॉमेडी शो को एनिमेशन फॉर्मेट में पेश करने जा रहा है। डीक्यू एंटरटेनमेंट ने फ्रांसीसी कंपनी मेथड एनिमेशन और एमके2 के साथ मिल कर चैपलिन घराने से चार्ली चैपलिन के एनिमेशन पुनर्निर्माण अधिकार खरीद लिए हैं।
तीन वर्ष पूर्व बिहार में भी, भोजपुरी फिल्म अभिनेता परवीन सिंह सिसोदिया ‘चार्ली चैपलिन’ का भोजपुरी संस्करण बनाने की तैयारी की थी। कहा गया था कि यह भोजपुरी संस्करण बिहार और उत्तर प्रदेश की ग्रामीण पृष्ठभूमि पर तैयार होगा। गौरतलब है कि सिसोदिया ने भोजपुरी फिल्म ‘हम हईं गंवार’ में चार्ली चैपलिन का रोल किया था। उस प्रोजेक्ट का क्या हुआ,पता नहीं। इस वर्ष 9 जनवरी को हरियाणा के यमुनानगर में हुए अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में भी चैपलिन की द ग्रेड डिक्टेटर दिखाई गई थी।
चैपलिन मूक फिल्मों के युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावी व्यक्तित्व थे। राजकपूर उनके प्रशंसक थे और उनके अभिनय पर चैपलिन का इतना असर था कि उन्हें भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन भी कहा जाता है। जॉनी वाकर भी उन्हें अपना आदर्श मानते थे। बॉलीवुड में,चौथे दशक के हास्य अभिनेता चार्ली ने अपना नाम चैपलिन से प्रभावित होकर ही रखा था; उनका असली नाम नूर मोहम्मद था।
मगर,अक्सर, बाहर से हमेशा हंसते-हंसाते रहने वालों का अंतर्मन गहरी उदासी लिए होता है। महमूद के करोड़ों प्रशंसक होंगे मगर स्वयं महमूद अपने अंतिम दिनों में इतने अकेले और उदास थे कि एक चैनल पर इंटरव्यू के दौरान ही फूट-फूट कर रोने लगे। प्रकृति की अजीब विडम्बना है कि अधिकतर हास्य कलाकारों का जीवन कई तरह संघर्षों और दुखों से भरा रहा है। चार्ली चैपलिन भी इसके अपवाद नहीं थे। जब वे महज सात साल के थे, तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया। इसके बाद उनकी मां का संतुलन बिगड़ गया। अंतत: उन्हें मनोरोगियों के अस्पताल में भर्ती कराना पडा । मां के देहान्त के बाद चैपलिन को कुछ वक्त अनाथालय तक में बिताना पडा। लंबे समय तक वे अपने शराबी पिता(यद्यपि वे बेहद प्रतिभाशाली गायक और अभिनेता थे) और सौतेली मां के दुर्व्यवहार को झेलते रहे। चैपलिन कहते थे कि हंसी के बिना बीता कोई भी दिन व्यर्थ है। मगर स्वयं चैपलिन भी,सफलता के चरम पर पहुंचने के बावजूद, ,अपने बचपन और मां को याद कर अक्सर उदास हो जाते थे।
कहते हैं कि चैपलिन अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिसने अपनी कला से इतने सारे लोगों का मनोरंजन किया,जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी । वे भावुक हृदय थे। उन्हें अपने कुत्ते मट से बेहद प्यार था। एकबार जब वे विदेश के म्यूजिकल टूर पर गए,तो मट ने खाना-पीना छोड़ दिया और अंततः उसकी मौत हो गई। चार्ली ने उसे अपने स्टूडियो में ही दफनाया और शिलालेश पर लिखाःदिल टूटने से मौत। कहते हैं कि एक बार सड़क के एक कुत्ते की कातरता को देखकर चैपलिन इस कदर भावुक हुए कि उन्होंने उसे होटल ले जाकर खिलाया। बिना शब्दों के भी बहुत कुछ समझने का हुनर उनमें था और शायद,मूक अभिनय से बहुत कुछ कहने की प्रेरणा भी उन्हें ऐसी ही घटनाओं से मिली हो।
जार्ज बर्नाड शॉ ने उन्हें फिल्म उद्योग का एकमात्र जीनियस कहा था।1999में,अमरीकन फिल्म इंस्टीट्यूट ने चैपलिन को दुनिया के सार्वकालिक 10 सर्वश्रेष्ठ पुरूष फिल्मी हस्तियों में से एक माना है।चैपलिन की आठ संतानें हैं। मनोरंजन उद्योग में 75 वर्षों तक सक्रिय रहने के बाद,1977 में क्रिसमस के दिन, चैपलिन दुनिया को अलविदा कह गये।
(चित्र विवरण- पहली तस्वीर फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर से। दूसरी तस्वीर चैपलिन के म्यूजियम की है। तीसरी तस्वीर में चैपलिन अपनी पत्नी ऊना ओ नील के साथ हैं-1972 में एकेडमी अवार्ड के दौरान)
अमूमन,स्क्रिप्ट के पूरा होने के बाद शूटिंग शुरू की जाती है मगर चैपलिन ने ऐसा कभी नहीं किया। उनके विचार अकसर बदलते रहते। नतीजा-रीशूट पर रीशूट। कई दृश्य सौ-सौ बार री-शूट किये गए। यही कारण है कि चैपलिन की फिल्में तैयार होने में वर्षों लेती थीं और उनके अन्य समकालीनों की तुलना में हम चैपलिन के फिल्मों की संख्या काफी कम पाते हैं।
लेखन,संगीत और खेल से भी चैपलिन को बेहद लगाव था। उन्होंने कम से कम चार किताबें “My Trip Abroad”, “A Comedian Sees the World”, “My Autobiography” और “My Life in Pictures”लिखी हैं। बिना किसी प्रशिक्षण के,कई प्रकार के वाद्य वे समान कुशलता से बजा सकते थे। “Sing a Song”; “With You Dear in Bombay”; “There’s Always One You Can’t Forget”, “Smile”, “Eternally” और “You are My Song” उनके कुछ बहुचर्चित गाने हैं। उनकी तमाम फिल्मों के साउंडट्रैक भी खुद उन्हीं ने तैयार किए थे। वे अकेले ऐसे कॉमेडियन हैं जिन्होंने अपनी सभी फिल्मों का निर्माण,लेखन,अभिनय और निर्देशन तो खुद किया ही,पैसों का बंदोवस्त भी स्वयं वही करते रहे।
चैपलिन की प्रतिभा सार्वकालिक महत्व की है। उनकी लोकप्रियता को भुनाने की अनेक कोशिशें की गई हैं-विज्ञापनों से लेकर एनीमेशन तक में। संभावना बनी है कि अब आप चार्ली चैपलिन को एनिमेशन अवतार में टेलीविजन पर देख सकें। भारतीय एनिमेशन और स्पेशल इफेक्ट्स कंपनी डीक्यू एंटरटेनमेंट पहली बार एक महान कॉमेडी शो को एनिमेशन फॉर्मेट में पेश करने जा रहा है। डीक्यू एंटरटेनमेंट ने फ्रांसीसी कंपनी मेथड एनिमेशन और एमके2 के साथ मिल कर चैपलिन घराने से चार्ली चैपलिन के एनिमेशन पुनर्निर्माण अधिकार खरीद लिए हैं।
तीन वर्ष पूर्व बिहार में भी, भोजपुरी फिल्म अभिनेता परवीन सिंह सिसोदिया ‘चार्ली चैपलिन’ का भोजपुरी संस्करण बनाने की तैयारी की थी। कहा गया था कि यह भोजपुरी संस्करण बिहार और उत्तर प्रदेश की ग्रामीण पृष्ठभूमि पर तैयार होगा। गौरतलब है कि सिसोदिया ने भोजपुरी फिल्म ‘हम हईं गंवार’ में चार्ली चैपलिन का रोल किया था। उस प्रोजेक्ट का क्या हुआ,पता नहीं। इस वर्ष 9 जनवरी को हरियाणा के यमुनानगर में हुए अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में भी चैपलिन की द ग्रेड डिक्टेटर दिखाई गई थी।
चैपलिन मूक फिल्मों के युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावी व्यक्तित्व थे। राजकपूर उनके प्रशंसक थे और उनके अभिनय पर चैपलिन का इतना असर था कि उन्हें भारतीय सिनेमा का चार्ली चैपलिन भी कहा जाता है। जॉनी वाकर भी उन्हें अपना आदर्श मानते थे। बॉलीवुड में,चौथे दशक के हास्य अभिनेता चार्ली ने अपना नाम चैपलिन से प्रभावित होकर ही रखा था; उनका असली नाम नूर मोहम्मद था।
मगर,अक्सर, बाहर से हमेशा हंसते-हंसाते रहने वालों का अंतर्मन गहरी उदासी लिए होता है। महमूद के करोड़ों प्रशंसक होंगे मगर स्वयं महमूद अपने अंतिम दिनों में इतने अकेले और उदास थे कि एक चैनल पर इंटरव्यू के दौरान ही फूट-फूट कर रोने लगे। प्रकृति की अजीब विडम्बना है कि अधिकतर हास्य कलाकारों का जीवन कई तरह संघर्षों और दुखों से भरा रहा है। चार्ली चैपलिन भी इसके अपवाद नहीं थे। जब वे महज सात साल के थे, तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया। इसके बाद उनकी मां का संतुलन बिगड़ गया। अंतत: उन्हें मनोरोगियों के अस्पताल में भर्ती कराना पडा । मां के देहान्त के बाद चैपलिन को कुछ वक्त अनाथालय तक में बिताना पडा। लंबे समय तक वे अपने शराबी पिता(यद्यपि वे बेहद प्रतिभाशाली गायक और अभिनेता थे) और सौतेली मां के दुर्व्यवहार को झेलते रहे। चैपलिन कहते थे कि हंसी के बिना बीता कोई भी दिन व्यर्थ है। मगर स्वयं चैपलिन भी,सफलता के चरम पर पहुंचने के बावजूद, ,अपने बचपन और मां को याद कर अक्सर उदास हो जाते थे।
कहते हैं कि चैपलिन अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिसने अपनी कला से इतने सारे लोगों का मनोरंजन किया,जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी । वे भावुक हृदय थे। उन्हें अपने कुत्ते मट से बेहद प्यार था। एकबार जब वे विदेश के म्यूजिकल टूर पर गए,तो मट ने खाना-पीना छोड़ दिया और अंततः उसकी मौत हो गई। चार्ली ने उसे अपने स्टूडियो में ही दफनाया और शिलालेश पर लिखाःदिल टूटने से मौत। कहते हैं कि एक बार सड़क के एक कुत्ते की कातरता को देखकर चैपलिन इस कदर भावुक हुए कि उन्होंने उसे होटल ले जाकर खिलाया। बिना शब्दों के भी बहुत कुछ समझने का हुनर उनमें था और शायद,मूक अभिनय से बहुत कुछ कहने की प्रेरणा भी उन्हें ऐसी ही घटनाओं से मिली हो।
जार्ज बर्नाड शॉ ने उन्हें फिल्म उद्योग का एकमात्र जीनियस कहा था।1999में,अमरीकन फिल्म इंस्टीट्यूट ने चैपलिन को दुनिया के सार्वकालिक 10 सर्वश्रेष्ठ पुरूष फिल्मी हस्तियों में से एक माना है।चैपलिन की आठ संतानें हैं। मनोरंजन उद्योग में 75 वर्षों तक सक्रिय रहने के बाद,1977 में क्रिसमस के दिन, चैपलिन दुनिया को अलविदा कह गये।
(चित्र विवरण- पहली तस्वीर फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर से। दूसरी तस्वीर चैपलिन के म्यूजियम की है। तीसरी तस्वीर में चैपलिन अपनी पत्नी ऊना ओ नील के साथ हैं-1972 में एकेडमी अवार्ड के दौरान)
jab bhi comedy ka jikr hoga , Charkie Chaplin ka naam sabse upar hoga...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
चार्ली को जन्मदिन पर हमारी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteचार्ली चैपलिन के जन्म दिन पर अच्छा आलेख. नमन!
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