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Saturday, April 3, 2010

सदियां- फ़िल्म-समीक्षा

सदियां बिहारी बाबू के बेटे लव सिन्हा की और उनकी हीरोईन फेरेना वजीर की पहली फिल्म है। वैसे,इस फिल्म में ऋषि कपूर , हेमा मालिनी और रेखा भी हैं। निर्देशक हैं राज कंवर। गीत समीर का है और संगीत अदनान सामी का। लगभग पौने तीन घंटे की इस फिल्म को सेंसर ने यू / ए सर्टिफिकेट दिया है।
भारत-पाक बंटवारा हिंदी फिल्मकारों का लंबे अर्से से पसंदीदा और बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ विषय रहा है। मगर कहानी वही घिसी-पिटी कि जन्म किसी ने दिया और पाला किसी और ने। इस फिल्म में भी एक हिंदू परिवार विभाजन के बाद भारत आता है। अमृत (रेखा) विभाजन के बाद जिस घर में आती है वहां उसे एक बच्चा रोता हुआ मिलता है जो बेनजीर (हेमामालिनी) का पुत्र है। ईशान (लव सिन्हा) हिंदू परिवार में पालापोसा जाता है। वह अमृत को ही अपनी मां मानता है। ईशान को एक मुसलिम लड़की (फेरेना वजीर) से प्यार हो जाता है तब मजहब की दीवार दिलों के बीच आ जाती है जिसके बाद अमृत (रेखा) अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए सच्चाई बताती है और उसकी वास्तविक मां को खोज निकालती है।
फिल्म यह बताने के लिए बनाई गई है कि प्यार मजहब नहीं देखता और दिल के रिश्ते सरहद लांघ जाते हैं। मगर फिल्म न तो बंटवारे के दर्द को बयां कर पाती है और न ही अपनों से बिछुड़ने के दर्द को। दरअसल , सीधी सादी स्टोरी में डायरेक्टर ने टीनएजर्स को जोड़ने की चाह में लव सिन्हा और फरीना वजीर के रोमांस को कहानी का ऐसा उबाऊ हिस्सा बनाकर रख दिया , जिसे हॉल में बैठा दर्शक झेल नहीं पाता।
इंडियन एक्सप्रेस में सुभद्रा गुप्ता लिखती हैं कि लव सिन्हा और फेरेना वज़ीर हर वह कुछ करते हैं जो इस टाइप की फिल्म में हीरो-हीरोईन करते हैं-गाना,नाचना,रोमांस वगैरह-वगैरह। थोड़ा रोना-धोना भी। मगर रेखा और हेमा की मौजूदगी में वे कहीं गुम हो गए। नभाटा ने ध्यान दिलाया है कि रेखा और हेमा इससे पहले 2001 में रिलीज देव आनंद की फिल्म ' सेंसर ' में साथ काम किया था। रेखा कुछ दृश्यों में हेमा पर हावी रहीं , तो वहीं ऋषि कपूर कई फिल्मों में एक के बाद एक पंजाबी कैरेक्टर में ऐसे बंध गए हैं कि यहां अपनी अलग छाप नहीं छोड़ पाए। लव सिन्हा पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में मयंक शेखर ने लिखा है कि लव सिन्हा फिल्म में जबरदस्ती लाए गए लगते हैं। दैनिक भास्कर में राजेश यादव लिखते हैं कि मध्यांतर से पहले का भाग शुरुआती कुछ मिनटों को छोड़कर कमजोर सा है, लेकिन बाद की पटकथा में दम नजर आता है। रेखा और ऋषि कपूर ने अपने अभिनय से फिल्म के भावनात्मक पक्ष को बेहतर बनाया है।
राज कंवर अब भी 70-80 के दशक से बाहर नहीं निकल पाए हैं , तभी तो कई मंझे हुए स्टार्स होने के बावजूद उन्होंने पौने तीन घंटे का ऐसा नाटकीय ड्रामा दर्शकों के सामने परोसा , जिसे झेलना आसान नहीं।
राजेश यादव लिखते हैं कि फेरेना वजीर ठीक-ठाक नजर आई है मगर पूरी फिल्म में रेखा ने शानदार अभिनय किया है और उनके चेहरे पर जिस तरह के भावनात्मक आवेग आते हैं वह कमाल के है। टाइम्स ऑफ इंडिया की नज़र में,इस फिल्म में फिल्म रेखा,ऋषि और हेमा में से किसी की प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं किया जा सका।
दैनिक भास्कर ने फिल्म के गीत -संगीत को कहानी के हिसाब से औसत बताया है। मगर नभाटा के मुताबिक,अदनान सामी का संगीत पंजाब की माटी और लोक संगीत को पेश करने से कोसों दूर है। सोना लगदा , माही सोना लगदा ... जरूर इसका अपवाद कहा जा सकता है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में निखत काजमी की टिप्पणी है कि यह फिल्म इतिहास का हवाला तो देती है मगर इस प्रकार का सिनेमा स्वयं इतिहास बन चुका है। उनका सुझाव है कि कुछ निर्माताओं को फिल्म बनाने से पहले आजकल की फिल्मो पर नज़र डालनी चाहिए। राजेश यादव जी को लगता है कि अगर आप 80 के दशक की युवा प्रेम कहानी देखना चाहते हैं तो फिल्म देख सकते हैं। चन्द्रमोहन शर्मा जी का कहना है कि आप यह फिल्म तभी देखें जब करने को कुछ नहीं हो और तपती गर्मी में तीन घंटे एसी में रेस्ट करने का इरादा हो क्योंकि तीन घंटे गुजारना कम से कम टीनएजर्स दर्शकों के लिए प्रताड़ना से कम नहीं।
फिल्म को हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस ने एक-एक,टाइम्स ऑफ इंडिया ने डेढ़,नभाटा और दैनिक जागरण ने दो-दो और दैनिक भास्कर ने ढाई स्टार दिया है।
(ऊपर की तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस से और नीचे की तस्वीर टाइम्स ऑफ इंडिया से साभार)

1 comment:

  1. फ़िल्म की अच्छी समीक्षा की है।

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