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Monday, April 12, 2010

राजकुमार संतोषी बनाएंगे जिन लाहौर नहीं देख्या.. पर फिल्म

विभाजन की त्रासदी को बयां करते और रूह को झकझोर देने वाले नाटक जिन लाहौर नहीं देख्या वो जन्म्या नईं पर राजकुमार संतोषी फिल्म बनाने जा रहे हैं। नाटक में विभाजन के नरसंहार के दौरान लाहौर की एक हिंदू महिला अपने पुत्र से बिछुड़ जाती है। उसे तो यह भी नहीं मालूम कि वह जीवित भी है या नहीं। महिला विभाजन के बाद भी लाहौर में अपनी हवेली में जमी रहती है, जोकि लखनऊ से विस्थापित सिकंदर मिर्जा को आंवटित होती है। शुरू में तो मिर्जा परिवार उसे निकालने के लिए सभी हथकंडे अपनाता है, लेकिन अंतत: समय बीतने के साथ वह वृद्धा परिवार का हिस्सा बन जाती है। जब यहीं जगमाई का निधन हो जाता है तो ये सवाल उठता है कि उसे दफन किया जाए या फिर जलाया जाए? एक मौलवी यह फतवा जारी करता है कि उसके धर्मानुसार उसे आग के सुपुर्द किया जाए। इस बात पर मौलवी का कत्ल हो जाता है। नाटक का कथ्य मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत है। वर्तमान में जब धर्म का राजनीतिकरण किया जा रहा है, तब यह नाटक मानवीय संबंधों के सकारात्मक पक्ष को रेखांकित करके सांप्रदायिक विद्वेष को नकारता है। इस नाटक के लेखक असगर वजाहत से दैनिक जागरण के संवाददाता की खास बातचीत आज दैनिक जागरण के भोपाल संस्करण में छपी हैः
जिन लाहौर नहीं देख्या की प्रेरणा कहां से मिली?
धार्मिक सहिष्णुता पर बात होना चाहिए, सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों पर बात होनी चाहिए। धर्म और धर्म की राजनीति अलग अलग बातें है एवं इन्हें अलग नजरिए से ही देखना चाहिए। तीनों ही बातों को ध्यान में रख कर इस नाटक को लिखा गया।
इस नाटक की पृष्ठभूमि वास्तविक है या फिर पूर्णत: काल्पनिक?
यह असली घटना पर लिखी गई है। दरअसल जब भारत-पाक विभाजन हुआ था, तो एक उम्रदराज महिला को लाहौर में काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। वो महिला ही मेरे नाटक की प्रेरणा बनी। इस कहानी को लिखते समय इसकी इतनी सफलता की उम्मीद नहीं थी।
जिन लाहौर नहीं देख्या..पर कुछ नया?
जिन लाहौर नहीं देख्या...पर फिल्म बनाई जा रही है। राजकुमार संतोषी इस फिल्म को बना रहे हैं। स्क्रिप्टिंग का काम तो पूरा हो गया है, बस कास्टिंग बाकी है।
अभी हाल में कौन से नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं?
मैं दो नए नाटक लिख रहा हूं, पहला महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के संबंधों पर आधारित है, जबकि दूसरा तुलसीदास और मुगल शासक अकबर के संबंधो पर।
जिन लाहौर नहीं देख्या के बाद और कौन से प्ले है जो आपके दिल के करीब हैं?
मुझे व्यक्तिगत तौर पर अनिल चौधरी की इन्ना की आवाज और एन रायना की वीरगति बेहद पसंद है। इसके साथ ही कविता नागपाल की फिरंगी लौट आए भी मुझे अच्छी लगती है।
और कौन कौन से आर्ट आपको अच्छे लगते है?
अभी हाल ही में मेरी विजुअल आर्ट की एक्जीविशन खत्म हुई है। लेखन के अलावा विजुअल आर्ट में भी मजा आता है।
(तस्वीर दैनिक भास्कर से साभार)

1 comment:

  1. फिल्म का इंतजार रहेगा।

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