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Saturday, April 3, 2010

पंखःफ़िल्म-समीक्षा

सुदीप्तो चट्टोपाध्याय के निर्देशन में बनी पंख’ में बिपाशा बसु के अलावा मैराडोना रिबेलो, महेश मांजरेकर, लिलेट दूबे, रॉनित रॉय, संजीदा शेख और अमित पुरोहित भी हैं। अवधि है पौने दो घंटे।
"पंख" जेरी नामक एक ऐसे बाल कलाकार की कहानी है जो लोकप्रिय हिंदी फिल्मों में वर्षों से लड़कियों के किरदार निभाता रहा है ।उसकी मां ने हमेशा उसे इसी तरह ड्रेस अप किया क्योंकि उसे लगता है कि इसी तरह जेरी स्टार बन सकता है। आगे चलकर जेरी सेक्सुअल आइडेंटिटी क्राइसिस का शिकार हो जाता है। किशोरावस्था में वह नशे की लत में पड़ जाता है। बड़ा होने पर जेरी अपनी मां के साथ, जय बनकर फिल्म स्टूडियो के चक्कर काटता है हीरो बनने के लिए मगर लोग उसे गुलाबी पाउडर और लिपिस्टिक से पुती कुसुम के रूप में जानते हैं जिसे अवार्ड मिल चुका है। ज़ाहिर है, उसके लिए चीजें वैसी नहीं रह जाती जैसी प्रतीत होती हैं। नतीज़ा-जेरी समझ नहीं पाता कि क्या वास्तविक है और क्या काल्पनिक। फिर, एक दिन अचानक उसे सपनों की रानी मिल जाती है और फिर शुरू होता है जेरी के भीतर के बदलाव की कहानी। वह सफल होता है या नहीं यही इस फिल्म की कहानी है।
मुख्य किरदार बिपाशा का है। अटकलें लगाई जा रही थीं कि पंख बिपाशा पर आधारित फिल्म है। बिपाशा इस फिल्म में नौ अलग रूपों में(नौ भूमिकाएं नहीं) हैं। उन्होंने एक ऐसा किरदार किया है जिसका वास्तव में अस्तित्व नहीं है। फिल्म में वे युवा हीरो मैराडोना रिबेलो की कल्पना से बना चरित्र हैं। उनका हर रूप हीरो की मन: स्थिति का प्रतिबिंब है। बिपाशा ने कहा है कि यह उनकी पहली कला फिल्म है जो फिल्मोद्योग की एक बेहद गंभीर समस्या को उठाती है। मगर प्रस्तुति संबंधी दोषों के कारण यह फिल्म प्रभावित नहीं कर पाती।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस फिल्म को बहुत अवास्तविक तथा उलझाव भरा बताया है जो चंद सीक्वेंस में ही प्रभावित करती है। इसलिए अख़बार ने इसे महज दो स्टार दिया है। इंडियन एक्सप्रेस में सुभद्रा गुप्ता लिखती हैं कि पंख में जबर्दस्त संभावना थी। हमारी फिल्में पहचान संकट और दमित सेक्सुएलिटी जैसे जटिल मुद्दे कम ही उठाती हैं। मगर तमाम तरह की पेचीदगियों की शिकार इस फिल्म को उन्होंने भी एक स्टार ही दिया है।

दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित समीक्षा पर भी एक नज़र डालिएः

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