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Monday, March 22, 2010

आदमी जो फिल्मों में उभर कर आते हैं

उस रात हम वासुदा चटर्जी के साथ बैठे थे। वासुदा से मैंने चेतन भगत और "थ्री इडियट्स" के बारे में बात शुरू की। रोकते हुए वासुदा कहने लगे कि मैं तुम्हें एक नई बात बताता हूं। जब मैं "खट्टा मीठा" फिल्म बना रहा था तब मेरे पास एक नौजवान स्टोरी लेकर आया। अद्भुत स्टोरी थी जिसमें एलिक पद्मसी के कुछ बच्चे हैं, अशोक कुमार के कुछ बच्चे हैं, जब ये दोनों शादी करते हैं तब क्या होता है कि मेरे मित्र खण्डेलवाल भी उसमें थे थोड़ा है थोड़े की जरूरत है गाना उन पर फिल्माया गया है। राजेश मोहन भी थे खट्टा मीठा फिल्म में तो वासुदा ने बताया कुछ दो महीनों बाद एक और फिल्म बन गई "हमारे तुम्हारे" और उसकी भी स्टोरी वही, तब क्या हुआ? हमने उन पर मुकदमा लगाया उन्होंने हम पर तब पता चला कि ये जो कहानी जिसने बेची वही आदमी चोर है वह हॉलीवुड की चुराकर लाया था और हम दोनों को बेच गया एक ही कहानी। यह फिल्म इंडिस्ट्रीज में पहली बार नहीं हुआ। दुनिया की सबसे बेहतरीन फिल्म रोमन होली डे की कॉपी "चोरी-चोरी" राजकपूर, नरगिस "जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो" उसकी दिल है कि मानता नहीं।

थ्री इडियट्स की मूलतः कहानी न तो चेतन भगत की है और न ही आमीर खान की या राजकुमार हीरांनी की है बल्कि लेबनान के विद्रोही लेखक जिब्रान की है। कहानी इस प्रकार है । इस प्रकार है पागल खाने में दरवाजे पर उस बच्चे से पूछा कि तुम पागल खाने में क्यों आ गए? इतने से बच्चे तो हो, उस बच्चे ने कहा कि साहेब आप पूछ रहे हैं तो बता ही देता हूं कि मैं पागल क्यों हो गया हूं, मेरा पिता बड़े संगीतकार थे, वे मुझे मार-मार कर, अपनी तरह संगीतकार बनाना चाहते थे। मेरी मां बड़ी चित्रकार थी, वह मुझे चित्रकार बनाना चाहती थी। बड़े भाई साहब पहलवान थे, और मुझे अखाड़े ले जाते थे । यही हॉल मेरे जीजाजी का था, वे मल्लाह थे, वे मुझे नाविक बनाना चाहते थे और मेरी बड़ी बहन अपनी तरह मुझे सितार वादक बनाना चाहती थी और सर, यही हाल अध्यापकों का था, सो मैं आजकल यहां हूं फिर उस बच्चे ने पलटकर कहा-मगर आप यहां क्यों है? जिब्रान ने झिझकते हुए कहा-मैं पागल थोड़े ही हूं, तो बच्चे ने पलटकर कहा, अच्छा-अच्छा अब मैं समझा आप दीवार के उस तरफ वाले पागलखाने में रहते हैं। यह जिब्रान की १९३६ की कहानी है फ्लाट थ्री इडियट में इसलिए उठाया है कि मैं शिक्षा के इस सिस्टम के बहुत खिलाफ हूं कि जो मशीन बनाती है वर्षों से, मैं इसके खिलाफ रहा हूं जो डॉक्टर बनाती हूं, इंजीनियर बनाती है, पर इनसान नहीं बनाती हैं।

अवाक फिल्में जो शुरू हुई हरिश्चंद्र, तारामती से लेकर फिल्में जो बनी हैं पहली फिल्म विजयभट्ट की रामराज्य जब बनी, तो इनके संवाद बड़े-बड़े लेखकों ने लिखे। सबसे बड़ा संवाद लेखक फिल्म इंडस्ट्रीज में हुआ है। वह उर्दू का लेखक है जिसने प्यासा के संवाद लिखे हैं वे हैं अख्तर उडिमान। अख्तर साहब के दो संवाद गौरतलब हैं। एक फिल्म है "अनाड़ी"। राजकपूर की इस फिल्म में मोतीलाल काम कर रहे हैं, उस फिल्म में वे एक होटल के मालिक हैं और उनका पर्स गिर गया है और गांव से आए राजकपूर को मिल गया वह पर्स। नायक को, कुछ गुंडों ने घेर लिया और उसे बहुत मार रहे हैं, बहुत पीट रहे हैं ताकि पर्स छीन लिया जाए लेकिन राजकपूर एक देहाती हैं, ग्रामीण हैं, ईमानदार हैं। वो गुंडों की खूब मार खाते हैं परंतु उस पर्स को नहीं छोड़ते हैं। अंत में पुलिस वहां आ जाती है तब तक गुण्डे भाग जाते हैं। राजकपूर साहब उस पर्स को लेकर पता ढूंढ़कर उस होटल पहुंचते हैं, जिस होटल के मालिक है मोतीलाल। जहां रौक एण्ड रोल चल रहा है मोतीलाल हैट लगाए पाइप पीते हुए खड़े हैं। अभी तक सीन में एक भी संवाद नहीं है।

राजकपूर होटल के गेट पर खड़े हैं। द्वार पर खड़े गेटकीपर उसे भगाने ही वाले हैं कि मोतीलाल आंख से इशारा करते हैं कि उसे आने दो। सीन बोल रहा है एक भी डायलॉग नहीं है। नायक वह पर्स लौटाता है। मोतीलाल उसमें से सौ-सौ के दो नोट निकालते हैं और देते हैं परंतु वह इनकार कर देता है। मोतीलाल जेब में पर्स रखने से पहले इस नौजवान से पूछते हैं "जानते हो ये कौन लोग हैं।" दीन-हीन नायक कहता है, नहीं। मोतीलाल कहते हैं ये वे लोग हैं, जिन्हें दूसरों के पर्स मिले थे, वे लौटाने नहीं गए थे।

हमने सब कुछ सिखा ना सीखी होशियारी। अख्तर उडियान का प्यासा में एक सीन है कि गुरुदत्त अपनी रचना छपवाने के लिए प्रकाशक के पास जा रहे हैं। प्यासा शायरी दे रहे हैं तो प्रकाशक क्या कह रहा है? ये क्या लिख लाए हो शराब, शबाब की क्या शायरी होती है। इस पर गुरुदत्त से कहलवाया "और भी गम है जमाने में मोहब्बत के सिवाय"।

आप क्या कर रहे हैं? दीवार फिल्म बना रहे हैं जिसमें एक सड़क पर पॉलिश करने वाला कहता है। मैं फेंके हुए पैसे नहीं उठाता ये फिल्म है जो रियल लाइफ में ऐसा नहीं होता जो चब्बनी पोलिस वाला मुंह पर सिक्का मार दे तो वह अमिताभ हो जाएगा। ये फिल्म है, वह बिलकुल नहीं होगा वह हाजी मस्तान हो जाएगा। यह फिल्म है लेकिन रियल लाइफ में जो मुंह पर सिक्का फेंका है मैं फेंके हुए पैसा नहीं उठाता आपने उसे झूठा अहंकार दे दिया है ये फिल्म वो अहंकार दे रही है बच्चों को।
(राजशेखर व्यास,नई दुनिया,दिल्ली,21.3.2010)

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