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Friday, March 19, 2010

शापितःफिल्म-समीक्षा

कलाकार: आदित्य नारायण, श्वेता अग्रवाल , राहुल देव, शुभा जोशी
निर्माता: विक्रम भट्ट
डायरेक्टर: विक्रम भट्ट
गीत: नजम शेराज, आदित्य नारायण
संगीत: चिरंतन भट
सेंसर सर्टिफिकेट : एडल्ट
अवधि: 137 मिनट
रेटिंग: /photo.cms?msid=5701005
ऐसा लगता है, बिपाशा बसु, डिनो स्टारर राज को बॉक्स ऑफिस पर मिली जबर्दस्त कामयाबी के बाद डायरेक्टर विक्रम भट्ट ने मान लिया कि हॉरर फिल्मों को बनाना आसान, सस्ता तो है ही साथ ही दर्शकों की एक खास क्लास के दम पर ऐसी फिल्में टिकट खिड़की पर अपनी लागत बटोरने के अलावा अच्छा खासा मुनाफा भी कमाती है। यहीं वजह है 'राज' के बाद राज का सिक्वल और उसके बाद '1920' में विक्रम ने कुछ ऐसे ही प्रयोग किए और हर बार बॉक्स ऑफिस पर अगर उनकी हॉरर फिल्में हिट नहीं हुई तो घाटे का सौदा भी नहीं बनी। कुछ यहीं हाल आज रिलीज हुई उनकी इस फिल्म का भी है इस बार फिर डायरेक्टर ने भूत, प्रेत, शैतानी आत्मा के तांडव के साथ एक ऐसी फैमिली को अपनी कहानी का बेस बनया है जो बरसों से पीढ़ीदर पीढ़ी शापित चली आ रही है।

विक्रम ने अपनी और से इस कहानी को अच्छा ट्रीटमेंट देने की कोशिश तो जरूर की लेकिन इंटरवल से पहले कहानी का तानाबाना बुनने और फिल्म के हीरो अमन (आदित्य नारायण) और हीरोइन काया (श्वेता अग्रवाल) के रोमांस को पेश करने में इतना वक्त लिया कि दर्शक खुद को हॉरर से बांध नहीं पाता तो एकबार फिर विक्रम ने भूत प्रेत और शैतानी रूह के इंतकाम की कहानी में गानों का सहारा क्यों लिया यह समझ नहीं आता। दरअसल विक्रम की पिछली हॉरर फिल्मों का संगीत हिट रहा और शायद यहीं वजह रही कि इस बार उन्होंने एक ऐसी कहानी में गानों को फिट करने किया जहां गानों की कतई जरूरत नहीं थी।

कहानी: अमन (आदित्य )और काया (श्वेता अग्रवाल) एक दूसरे को चाहते हैं। इन दोनों के मासूम प्यार को उस वक्त नजर लग जाती है जब काया को कोई शैतानी रूह अपने बस में करती है। अमन अपने खास दोस्त शुभ (शुभा जोशी) के साथ काया को उस शैतानी रूह से निजात दिलाने में लग जाता है जिसने उसे जकड रखा है। इस काम में अमन को साथ मिलता है प्रफेसर पशुपति नाथ (राहुल देव) का जिन्होंने भटकती रूहों और शैतानी ताकतों पर कितनी किताबें लिखी हैं। अमन , शुभ और प्रफेसर को पता लगता है पिछली कई पीढ़ियों से काया की फैमिली शॉपित है जिसके चलते उसकी फैमिली में जब भी किसी लडकी की शादी होती है उसके चंद दिनों बाद ही उसकी मौत हो जाती है। यहीं वजह है काया के पिता अमन और काया के प्यार को जानते हुए भी उनकी शादी करने को तैयार नहीं होते। आखिर काया की फैमिली शापित क्यों है और क्या कभी इस परिवार को इस शाप से मुक्ति मिल सकती है? इसकी तलाश में यह तीनों महिपालपुर पहुंचते है, यहां आने के बाद उन्हें पता चलता है किकरीब तीन सौ साल पहले महाराज गजराज सिंह की हत्या के साथ काया की फैमिली के शाप का नाता है। अब काया और उसकी फैमिली को इस शाप से मुक्ति दिलाने के दिलाने के लिए अमन प्रफेसर पशुपति नाथ के साथ एक ऐसी तंत्र मंत्र की विधा को शुरू करता है जिसमें उसकी जान भी जा सकती है ।

ऐक्टिंग: सिंगर से हीरो बने आदित्य नारायण ने अपनी पहली फिल्म में साबित किया कि ऐक्टिंग की फील्ड में वह होम वर्क के बाद ही आए हैं, लेकिन आदित्य के चेहरे सपाट चेहरे पर उन दृश्यों में भी डर और खौफ नजर नहीं आ पाता जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। वहीं न्यूकमर श्वेता अग्रवाल को तो डायरेक्टर ने कुछ ज्यादा करने का जैसे मौका ही नहीं दिया; इंटरवल के बाद कोमा की शिकार श्वेता फिल्म के आखिर तक बिस्तर पर ही नजर आई। हां, प्रफेसर पशुपति नाथ की भूमिका में राहुल देव जरूर कुछ प्रभावित करते है।

डायरेक्शन: विक्रम भट्ट ने एकबार फिर यहीं साबित करने की कोशिश की है कि हॉरर फिल्म को बनाने में बैक ग्राउंड म्यूजिक कितना सशक्त पक्ष है। वहीं इंटरवल से पहले विक्रम ने कहानी को पटरी पर लाने में इतना ज्यादा वक्त लिया कि हॉल में बैठे दर्शक उकताने लगते है। फिल्म का क्लाइमेक्स गजब का है, ट्रिक फटॉग्रफी के अलावा फिल्म के तकनीकी पक्ष को मजबूत करने में विक्रम ने सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। लेकिन अगर बेफिजूल के गानों के मोह से विक्रम खुद को बचा पाते तो फिल्म की स्पीड और बढ़ सकती थी।

संगीत: भले ही फिल्म के साथ किसी जाने माने संगीतकार का नाम ना जुडा हो, लेकिन फिल्म में गानों की कमी नहीं है, मजे की बात है कि इन गानों का जिस सिचुएशन पर फिट किया गया है। वहां गाने की कतई जरूरत नहीं थी। अजनबी हवाएं फिर तुझे बुलाए आ जा आ जा, तेरे बिना जिया ना जाए सोचा ना जाए के लिए अगर कहानी में अच्छा प्लॉट रखा जाता तो गाने कहानी का अहम हिस्सा बन सकते थे।

क्यों देंखे: अगर आप हॉरर फिल्मों के शौकीन है और इक्कीसवी सदी में भूत प्रेत शैतानी रूहों पर यकीन करते है तो फिल्म एकबार देख सकते है। फैमिली के साथ एंटरटेनमेंट के मकसद से अगर आप फिल्म जा रहे है तो फिल्म आपके लिए नहीं है, वैसे भी फिल्म को सेंसर ने एडल्ट सर्टिफिकेट के साथ पास किया है ।
(चंद्रमोहन शर्मा,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,19.3.2010)

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