डायरेक्टर : देव बेनेगल
निर्माता : स्टूडियो 18
म्यूजिक डायरेक्टर : माइकल ब्रूक
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए
अवधि : 97 मिनट।
हमारी रेटिंगः **1/2
देव बेनेगल की फिल्म रोड, मूवी एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म की तरह है, जिसे देश-विदेश के कई अवॉर्ड मिले हैं और इसे काफी सराहा भी गया है। जैसलमेर और बाड़मेर के बैकग्राउंड में बनी इस फिल्म की कहानी और ट्रीटमेंट दोनों एकदम हटकर हैं। डायरेक्टर देव बेनेगल ने एक बेहद पुराने ट्रक के साथ कुछ किरदारों की कहानी को बेहद अनूठे अंदाज में बयां किया है। साथ ही राजस्थान के बैकग्राउंड में पानी माफिया को भी दिखाया गया है, जिनके लिए पानी बहुत बड़ी संपत्ति है और इसके लिए कत्ल तक कर दिए जाते हैं। यशपाल शर्मा ने इस गैंग के मुखिया की भूमिका निभाई है।
फिल्म की कहानी शुरू होती है राजस्थान के एक गांव में विष्णु (अभय देओल) नाम के लड़के के साथ, जिसके पिता तेल बनाने का काम करते हैं और चाहते हैं कि बेटा भी इसी बिजनेस में आए। लेकिन विष्णु कुछ नया करना चाहता है। वह अपने दोस्त से सन 1942 का खटारा ट्रक लेता है, जिस पर प्रोजेक्टर लगे हैं, जो कभी टूरिंग टॉकीज यानी चलते-फिरते सिनेमा के तौर पर इस्तेमाल होता था। अपने साथ वह एक हेल्पर बच्चे (फैजल) को लेकर एक मेले की तरफ ट्रक लेकर चलता है, लेकिन सफर शुरू होने के 10 किलोमीटर बाद ही ट्रक खराब हो जाता है।
ट्रक को ठीक करने के लिए जो किरदार (सतीश कौशिक) आता है, उसका नाम ही मकैनिक है। वह ट्रक को ठीक तो कर देता है, पर इस शर्त के साथ कि मेले तक वह भी साथ जाएगा। जैसलमेर के रेगिस्तानों से होता हुआ यह ट्रक पुलिस इंस्पेक्टर (वीरेंद्र सक्सेना) के कब्जे में आ जाता है, जहां पूरे गांव को फिल्म दिखाने के बाद ट्रक पार्टी यहां से भाग निकलती है। रास्ते में उनकी मुलाकात बंजारन (तनिष्ठा चटर्जी) से होती है। प्यास से तड़प रहे इन लोगों को बंजारन थोड़ा पानी देती है, वह भी इस शर्त पर कि वे उसे भी मेले तक साथ ले चलेंगे। इसके बाद इन सभी का वास्ता पानी माफिया (यशपाल शर्मा) से पड़ता है। यहां पर बेहद रोचक तरीके से विष्णु और उसके साथी हालात का सामना करते हैं और उसके बाद कहानी अपने मुकाम तक अनूठे अंदाज में पहुंचती है।
निर्देशन व ऐक्टिंग: इस फिल्म को बनाने के लिए देव बेनेगल ने बेहद गहरी रिसर्च की और राजस्थान के इन इलाकों में जाकर टूरिंग टॉकीज के पूरे फंडे को बारीकी से समझा। यह बात फिल्म में भी झलकती है। इसके अलावा जिस तरह उन्होंने जैसलमेर के ग्रामीण परिवेश को इस्तेमाल किया है, वह भी गजब का है।
(चंद्रप्रकाश शर्मा,नभाटा,5.3.10)
दैनिक जागरण मे ढाई स्टार के साथ अजय ब्रह्मात्मज की प्रतिक्रियाः
हिंदी सिनेमा में विषय के स्तर पर आ रहे विस्तार को हम रोड,मूवी में देख सकते हैं। यह पारंपरिक हिंदी फिल्म नहीं है, जिसमें घिसे-पिटे किरदारों को लेकर कहानी बुनी जाती है। इस फिल्म के किरदार बेनाम हैं। उन्हें उनके नाम से हम नहीं जानते। संयोग से चार व्यक्ति एक सफर में साथ हो जाते हैं। वे मिल कर दुर्गम राहों से निकलते हैं। सफर के दौरान ही उनके रिश्ते बनते हैं, जो फिल्म खत्म होने के साथ अपनी राह ले लेते हैं।
फिल्म में कहानी की उम्मीद के साथ गए दर्शकों को निराशा हो सकती है। यह फिल्म दृश्यात्मक और प्रतीकात्मक है। आपसी रिश्तों में एक-दूसरे की जरूरत और मूल मानवीय भावनाओं का अच्छा तालमेल है। यह फिल्म अभय देओल और सतीश कौशिक के लिए देखी जा सकती है। तनिष्ठा चटर्जी सामान्य हैं। देव बेनेगल ने मुख्य पात्र की दोहरी यात्रा को अच्छी तरह से गुंथा और चित्रित किया है।
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