स्वागत

Friday, March 5, 2010

थैंक्स मां : फिल्म-समीक्षा

मुख्य कलाकार : आलोक नाथ, रघुवीर यादव, संजय मिश्र, मुक्ता बर्वे

निर्देशक : इरफान कमल

तकनीकी टीम : निर्माता- अजीज मलकानी, लेखक- इरफान कमल

इरफान कमल की थैंक्स मां डैनी बाएल की स्लमडाग मिलियनेयर के पहले बन चुकी थी, लेकिन अभी रिलीज हो सकी। इस फिल्म में इरफान ने मुंबई की मलिन बस्तियों के आवारा और अनाथ बच्चों के माध्यम से अधूरे बचपन की मार्मिक कथा बुनी है। उन्होंने पेशेवर चाइल्ड एक्टर के बजाए नए चेहरों को चुना है और उनसे बेहतरीन काम लिया है।

म्युनैसिपैलिटी खुद अनाथ बच्चा है। वह खुद को सलमान खान कहलाना पसंद करता है। दूसरे आवारा और अनाथ बच्चों के साथ वह पाकेटमारी और चिंदीचोरी कर अपना गुजर-बसर करता है। उसकी एक ही इच्छा है कि किसी दिन अपनी मां से मिले। बाल सुधार गृह से भागते समय उसे दो दिनों का एक बच्चा मिलता है। वह उस निरीह बच्चे को संभालता है। अपने दोस्तों की मदद से वह उस बच्चे की मां तक पहुचने में सफल रहता है, लेकिन सच्चाई का पता चलने पर हतप्रभ रह जाता है।

फिल्म में बताया गया है कि देश में रोजाना 270 बच्चे अनाथ छोड़ दिए जाते हैं। इन बच्चों की जिंदगी शहर की गुमनाम गलियों में गुजरती है और वे आजीविका के लिए अपराध का आसान रास्ता चुन लेते हैं। इरफान कमल ने ऐसे अनाथ बच्चों के मर्म को पर्दे पर कुछ किरदारों के माध्यम से दिखाया है। अपनी ईमानदार कोशिश केबावजूद वे अनाथ बच्चों की परिस्थिति के प्रति मार्मिकता नहीं जगा पाते। कुछ ही दृश्य प्रभावित करते हैं। सभी बच्चों ने उम्दा और स्वाभाविक अभिनय किया है। संजय मिश्र और रघुवीर यादव को निर्देशक ने उचित उपयोग किया है।

**1/2 ढाई स्टार

(अजय ब्रह्मात्मज,दैनिक जागरण)

-------------------------------------------------------------------------

तीन स्टार के साथ नभाटा मे चंद्रमोहन शर्मा लिखते हैं-

अगर आपने दुनियाभर में धूम मचा चुकी ' स्लमडॉग मिलियनेयर ' देखी है , तो इस फिल्म को देखते वक्त आपको उसकी याद जरूर आएगी। दरअसल , इस फिल्म में भी डायरेक्टर ने स्लम की लाइफ को बिल्कुल अलग और नए लुक में दिखाया है। इस फिल्म की कहानी को प्रेजेंट करने का ट्रीटमेंट हॉलिवुड फिल्म से जरूर मिलता है।

कहानी : करीब 12 साल के मास्टर शम्स को एक लावारिस नवजात शिशु मिलता है। इस बच्चे के मिलने के बाद खुद स्लम में फटेहाल जिंदगी गुजार रहा शम्स अपने खास दोस्तों सोडा मास्टर ( मास्टर सलमान ) कटिंग ( मास्टर फैयाज ) डेढ़ शाणा ( मास्टर जफर ) और सुरसुरी ( बेबी अल्मास ) के साथ फैसला करता है कि वह इस मासूम बच्चे की जिंदगी अपनी तरह खराब नहीं होने देगा। वह ठान लेता है कि किसी भी तरह से इस नवजात शिशु को उसके माता - पिता से मिलवाएगा। इस खोज में शम्स और उसके दोस्तों को काफी मुश्किलों का सामना करता है। आखिर इन बच्चों की मेहनत रंग लाती है और वह बच्चे की मां को खोज लेते हैं , लेकिन मां अपने बच्चे को स्वीकार करने से मना कर देती है।

ऐक्टिंग : फिल्म में लीड रोल निभा रहे मास्टर शम्स पहले से इस फिल्म के लिए बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट का अवॉर्ड ले चुके हैं। फिल्म में दूसरे बच्चों ने भी बेहतरीन काम किया है। रघुबीर यादव की ऐक्टिंग के बारे में कुछ कहना चांद को दीया दिखाने जैसा है। यादव जब भी स्क्रीन पर आए , अपनी अलग छाप छोड़ गए।

निर्देशन : अब तक आपने दर्जनों ऐसी फिल्में देखी होंगी , जिनमें किसी अस्पताल या धार्मिक स्थान के बाहर मिलने वाले लावारिस बच्चे की कहानी होती है। मसलन , 70-80 के दशक में अमिताभ बच्चन की लावारिस सहित कई फिल्में और महमूद की ' कुंआरा बाप ' कुछ ऐसी ही फिल्में हैं। यंग डायरेक्टर इरफान कमाल की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बिना बॉलिवुड मसालों की चाशनी का सहारा लिए ऐसी बेहतरीन फिल्म बनाई। यह फिल्म देखकर आपको लगेगा कि इरफान ने फिल्म के हर दृश्य पर जमकर मेहनत की है। तेज रफ्तार से भागती शहरी जिंदगी से दूर तंग गलियों और स्लम में पलते बच्चों को उन्होंने जिस अंदाज में दिखाया है , उसे देखकर साफ लगता है कि हर पात्र पर उन्होंने काफी मेहनत की है। फिल्म शुरू होने पर आपको इस बात का आभास होगा कि आप ' स्लमडॉग मिनियनेयर ' देख रहे हैं। यही डायरेक्टर की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि सीमित साधनों और सीमित बजट में उन्होंने हॉल में बैठे दर्शकों को हॉलिवुड फिल्म की याद दिला दी। वहीं , फिल्म का क्लाइमैक्स आपकी आंखें नम करने का दम रखता है।

संगीत : सूफी संगीत का फिल्म में अच्छा तालमेल है। ऐसे में रंजीत बारोट का बेहतरीन बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के साथ पूरी तरह से मेल खाता है।

No comments:

Post a Comment

न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः