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उन्होंने कहा कि भोजपुरी लोक-कला और संस्कृति को संरक्षण देने में लगे भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान का प्रयास सराहनीय है। कलाकारों, पत्रकारों और साहित्यकारों के सहयोग से यह संस्थान बिना किसी सरकारी सहायता के वर्ष 2002 से वर्ष में चार कार्यक्रम करता आ रहा है।
प्रतिभा सिंह पिछले एक दशक से भोजपुरी गायकी में अपने गायन से अपना विशिष्ट स्थान बना पाने में कामयाब रही हैं। उनके एक दर्जन से अधिक कैसेट व सीडी जारी हुए हैं। देश भर में सैकड़ों स्टेज शो करने वाली प्रतिभा को इसके पहले आकांक्षा संस्कृति सम्मान मिला है। पोलिया से बचाव के अभियान के यूनिसेफ और पश्चिम बंगाल सरकार साझा जागरुकता अभियान में उनके गीतों का कैसेट भोजपुरी में जारी हुआ था जो अब भी हिन्दी उर्दू भाषी बहुल क्षेत्रों में पोलियो बूथों पर बजाया जाता है। इधर रेडियो पर मलेरिया से सावधान करने वाले जिंगल में भी उनकी आवाज सुनायी देती है।
इस अवसर पर प्रतिभा सिंह ने कहा कि भोजपुरी संगीत बेजोड़ है। हमारे पास हर संस्कार के गीत हैं जो यह बताता है कि हम कितने संगीतमय हैं। हमें विलुप्त होते अपने संस्कार गीतों को बचाना है और उसके लिए जरूरी है कि लोक कलाकारों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाये कि वे अपने जीवन में संगीत को बचाये रखें। हमें अपने लोकसंगीत की शक्ति को पहचानना होगा वरना वह आधुनिकता की अंधी दौड़ में कहीं खो जायेगा या फिर अपनी मौलिकता खो देगा। इस अवसर पर उन्होंने अपने कुछ गीत भी सुनाये। उसके बाद रात भर चले चैता के कार्यक्रम में आसपास के गावों से आये लोक-कलाकारों को सात गोल ने अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये जिनमें रामाज्ञा राम विशेष तौर पर शामिल थे जो बिहारी ठाकुर की मंडली में थे।
(भोजपुरीमेधा डॉट ब्लॉगस्पॉट से साभार)
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