कुछ ही दिन पहले इस ब्लॉग पर आपने पढा अजब-गजब अपना बॉलीवुड शीर्षक आलेख। इसी क्रम मे आज पढिए बॉलीवुड के कुछ और फार्मूलों की ओर ध्यान दिलाता यह आलेख जो 27 फरवरी,2010 के राजस्थान पत्रिका मे प्रकाशित हुआ थाः
कार का ब्रेक फेल होना
फिल्मों में हीरो के खिलाफ विलैन द्वारा किए षडयंत्रों की एक लंबी लिस्ट है। उनमें से एक षडयंत्र है, हीरो की कार के ब्रेक फेल कर देना। वह कार स्टार्ट करके रवाना होता है, तब उसे पता नहीं चलता कि ब्रेक काम नहीं कर रहे हैं। गाडी शहर से निकालकर वह सुनसान सडक तक ले आता है, तब तक उसे पता नहीं चलता कि ब्रेक काम नहीं कर रहे हैं। अब किसी पहाडी की ढलान पर हीरो को मालूम पडता है कि गाडी के ब्रेक फेल हो गए हैं।
विलैन का काम है ब्ा्रेक फेल कर देना। दुर्घटना के लिए पहाडी की ढलान खोजना खुद हीरो का काम है। हैलीकॉप्टर से जंप लगाने वाला हीरो न कार रोक पाता है, न चलती कार से कूद पाता है। बचने की कोशिशों के बाद सीधा हॉस्पिटल में पडा मिलता है।
होली गीत
एक गरीब गांव का सैट लगा हुआ है। पूरा गांव किसी ठाकुर या डाकू के आतंक के साए में जी रहा है। अभी-अभी एक सीन में एक गरीब ने इस गांव की गरीबी का रोना रोते हुए कहा था कि लोग भूखों मर रहे हैं। खाने के लिए अनाज का दाना तक नहीं है, तभी होली का सीन आता है। वे ही गरीब लोग हीरो के साथ होली का गीत गाते हैं और इतना रंग बर्बाद करते हैं, इतना रंग उडाते हैं कि हैरानी होती है, इतना रंग आया कहां से अभी-अभी तो तुम्हारे पास खाने को अनाज का दाना तक नहीं था और छोकरियां कतारबद्ध होकर, रंगीन और मैचिंग ड्रेस पहनकर ऎसे नाच रही हैं, जैसे इस गांव में बडी खुशहाली है। एक होली का गीत सब कुछ बदल देता है। गरीब को अमीर बना देता है।
होली के गीत में एक और खासियत होती है। रंग उड रहे हैं, पिचकारियां छूट रही हैं, गाल रंगे जा रहे हैं, जो कि सिर्फ होली में ही होता है, फिर भी गीत में एक पंक्ति जरूर होती है, 'होली है', ताकि दर्शक समझ जाएं कि होली है।
कपडे चेंज होना
फिल्मों में कमालों का कमाल है हीरो-हीरोइन के कपडे चेंज होना। खासकर नाच-गानों के दौरान वे इतने कपडे बदलते हैं, जितना गिरगिट भी रंग नहीं बदलता। हीरो ने लाल कपडों में आसमान की तरफ छलांग लगाई और जब वह वापस जमीन पर आया, तो ब्ल्यू रंग में था। कपडे चेंज, भैये, इतनी देर में आसमान में तुम्हारे कपडे चेंज हुए कैसे । चलो ड्रेस चेंज कैसे हुई, यह छोडो, लेकिन इतना तो बता दो कि जरूरत क्या थी ड्रेस चेंज करने की कहानी तो चेंज करते नहीं।
तुम्हारी फिल्म की कहानी तो वही बीस बार दोहराई हुई घिसी-पिटी है। उसको तो बदलते नहीं। ड्रेस पर ड्रेस चेंज किए जा रहे हो। ऎसा कब तक चलेगा
पार्ट- दो
बसंत, पार्ट- दो वह बसंत है, जो एक बार आ गया, तो बस, आ गया, फिर वापस नहीं जाता। एकदम हजरते दाग की तरह। जहां बैठ गए, वहां बैठ गए। हीरोइन जवान हुई, तब बसंत था। चार महीने बाद जब हीरोइन गाना गा रही थी, 'बाग में कली खिली बगिया महकी, पर हाय रे अभी इधर भंवरा नहीं आया' तब बसंत था, क्योंकि यह कली, भंवरा, तितली वगैरह सब बसंत के लक्षण हैं, फिर चार महीने बाद जब हीरोइन की हीरो से मुलाकात हुई, तब बसंत था, क्योंकि हीरो ने हीरोइन पर वे फूल फेंके थे, जो बसंत में ही खिलते हैं।
यानी बसंत, पार्ट- दो एक तरह से फिल्म वालों के लिए बंधुआ मजदूर की तरह बंधुआ बसंत है। हर वक्त फूल खिला के इस बसंत को रेडी रहना पडता है। पता नहीं, हीरो कब आदेश दे दे, 'बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है।'
पार्ट- तीन
बसंत, पार्ट- तीन वह बसंत है, जो एक जेनुइन बसंत होता है। यह बसंत मनोज कुमार की तकरीबन हर फिल्म में, पीली पगडी, पीली चुनरिया और पीली-पीली सरसों के संग आता रहा है।
यह बसंत, सार्वजनिक बसंत जैसा लगता है। किसी हीरो का गुलाम नहीं लगता। पूरे गांव और माहौल पर एक साथ आता है। वैसे एक तरह से ऎसा बसंत ही असली बसंत का आभास देता है। भले ही साल में एक ही बार आए। यह क्या कि हीरो ने आलाप लिया, कोयल कुहकी और बसंत आ गया! हीरोइन ने अंगडाई ली, तितली उडी और बसंत आ गया! फिल्मी बसंत का कोई ठिकाना नहीं। बसंत तो वैसे रंग-बिरंगा, अद्भुत, अनोखा, स्वर्गिक आनंद देने वाला होता है। अब अगर वह किसी फिल्म में आ गया हो, तो फिर देखिए आर्ट डायरेक्टर की परिकल्पना। बसंत को ऎसा बनाकर पेश करेंगे कि कभी धरती पर न देखा हो, न सुना हो। उस पर रोमांस में डूबे नायक-नायिका पर चलते कामदेव के बाण, खुदा की पनाह!
पार्ट- एक
बरसात के मौसम की तरह बसंत भी फिल्म वालों का प्रिय मौसम माना जाता है। इसलिए साल में एक से अधिक बार आता है। बसंत को भी तीन पार्ट में बांटकर समझेंगे, तो सहूलियत रहेगी।
बसंत, पार्ट- एक, एक छोटी सी बालिका भागी जा रही है। कैमरा उसे फॉलो कर रहा है। थोडी देर में कैमरा सरसों के खेत में पहुंच जाता है। जहां सरसों में फूल आ चुके हैं। कैमरा वापस पलटकर उसी बालिका पर आता है, जो अब बालिका नहीं रही। युवती बन गई है। खेतों में बसंत आया, हीरोइन पर जवानी आई।
यानी बसंत, पार्ट- एक हीरोइन को जवान बनाने के लिए आता है। इसलिए पूरी फिल्म में उपरोक्त बसंत एक बार आता है। वैसे तो हर हीरोइन बसंत के आने पर ही जवान होती है, लेकिन कोई बसंत के आने से पहले जवान हो जाए तो फिर बसंत, पार्ट- एक उस फिल्म में नहीं आता, क्योंकि जिस काम के लिए उसे आना था, वह काम तो हो गया।
कार का ब्रेक फेल होना
फिल्मों में हीरो के खिलाफ विलैन द्वारा किए षडयंत्रों की एक लंबी लिस्ट है। उनमें से एक षडयंत्र है, हीरो की कार के ब्रेक फेल कर देना। वह कार स्टार्ट करके रवाना होता है, तब उसे पता नहीं चलता कि ब्रेक काम नहीं कर रहे हैं। गाडी शहर से निकालकर वह सुनसान सडक तक ले आता है, तब तक उसे पता नहीं चलता कि ब्रेक काम नहीं कर रहे हैं। अब किसी पहाडी की ढलान पर हीरो को मालूम पडता है कि गाडी के ब्रेक फेल हो गए हैं।
विलैन का काम है ब्ा्रेक फेल कर देना। दुर्घटना के लिए पहाडी की ढलान खोजना खुद हीरो का काम है। हैलीकॉप्टर से जंप लगाने वाला हीरो न कार रोक पाता है, न चलती कार से कूद पाता है। बचने की कोशिशों के बाद सीधा हॉस्पिटल में पडा मिलता है।
होली गीत
एक गरीब गांव का सैट लगा हुआ है। पूरा गांव किसी ठाकुर या डाकू के आतंक के साए में जी रहा है। अभी-अभी एक सीन में एक गरीब ने इस गांव की गरीबी का रोना रोते हुए कहा था कि लोग भूखों मर रहे हैं। खाने के लिए अनाज का दाना तक नहीं है, तभी होली का सीन आता है। वे ही गरीब लोग हीरो के साथ होली का गीत गाते हैं और इतना रंग बर्बाद करते हैं, इतना रंग उडाते हैं कि हैरानी होती है, इतना रंग आया कहां से अभी-अभी तो तुम्हारे पास खाने को अनाज का दाना तक नहीं था और छोकरियां कतारबद्ध होकर, रंगीन और मैचिंग ड्रेस पहनकर ऎसे नाच रही हैं, जैसे इस गांव में बडी खुशहाली है। एक होली का गीत सब कुछ बदल देता है। गरीब को अमीर बना देता है।
होली के गीत में एक और खासियत होती है। रंग उड रहे हैं, पिचकारियां छूट रही हैं, गाल रंगे जा रहे हैं, जो कि सिर्फ होली में ही होता है, फिर भी गीत में एक पंक्ति जरूर होती है, 'होली है', ताकि दर्शक समझ जाएं कि होली है।
कपडे चेंज होना
फिल्मों में कमालों का कमाल है हीरो-हीरोइन के कपडे चेंज होना। खासकर नाच-गानों के दौरान वे इतने कपडे बदलते हैं, जितना गिरगिट भी रंग नहीं बदलता। हीरो ने लाल कपडों में आसमान की तरफ छलांग लगाई और जब वह वापस जमीन पर आया, तो ब्ल्यू रंग में था। कपडे चेंज, भैये, इतनी देर में आसमान में तुम्हारे कपडे चेंज हुए कैसे । चलो ड्रेस चेंज कैसे हुई, यह छोडो, लेकिन इतना तो बता दो कि जरूरत क्या थी ड्रेस चेंज करने की कहानी तो चेंज करते नहीं।
तुम्हारी फिल्म की कहानी तो वही बीस बार दोहराई हुई घिसी-पिटी है। उसको तो बदलते नहीं। ड्रेस पर ड्रेस चेंज किए जा रहे हो। ऎसा कब तक चलेगा
पार्ट- दो
बसंत, पार्ट- दो वह बसंत है, जो एक बार आ गया, तो बस, आ गया, फिर वापस नहीं जाता। एकदम हजरते दाग की तरह। जहां बैठ गए, वहां बैठ गए। हीरोइन जवान हुई, तब बसंत था। चार महीने बाद जब हीरोइन गाना गा रही थी, 'बाग में कली खिली बगिया महकी, पर हाय रे अभी इधर भंवरा नहीं आया' तब बसंत था, क्योंकि यह कली, भंवरा, तितली वगैरह सब बसंत के लक्षण हैं, फिर चार महीने बाद जब हीरोइन की हीरो से मुलाकात हुई, तब बसंत था, क्योंकि हीरो ने हीरोइन पर वे फूल फेंके थे, जो बसंत में ही खिलते हैं।
यानी बसंत, पार्ट- दो एक तरह से फिल्म वालों के लिए बंधुआ मजदूर की तरह बंधुआ बसंत है। हर वक्त फूल खिला के इस बसंत को रेडी रहना पडता है। पता नहीं, हीरो कब आदेश दे दे, 'बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है।'
पार्ट- तीन
बसंत, पार्ट- तीन वह बसंत है, जो एक जेनुइन बसंत होता है। यह बसंत मनोज कुमार की तकरीबन हर फिल्म में, पीली पगडी, पीली चुनरिया और पीली-पीली सरसों के संग आता रहा है।
यह बसंत, सार्वजनिक बसंत जैसा लगता है। किसी हीरो का गुलाम नहीं लगता। पूरे गांव और माहौल पर एक साथ आता है। वैसे एक तरह से ऎसा बसंत ही असली बसंत का आभास देता है। भले ही साल में एक ही बार आए। यह क्या कि हीरो ने आलाप लिया, कोयल कुहकी और बसंत आ गया! हीरोइन ने अंगडाई ली, तितली उडी और बसंत आ गया! फिल्मी बसंत का कोई ठिकाना नहीं। बसंत तो वैसे रंग-बिरंगा, अद्भुत, अनोखा, स्वर्गिक आनंद देने वाला होता है। अब अगर वह किसी फिल्म में आ गया हो, तो फिर देखिए आर्ट डायरेक्टर की परिकल्पना। बसंत को ऎसा बनाकर पेश करेंगे कि कभी धरती पर न देखा हो, न सुना हो। उस पर रोमांस में डूबे नायक-नायिका पर चलते कामदेव के बाण, खुदा की पनाह!
पार्ट- एक
बरसात के मौसम की तरह बसंत भी फिल्म वालों का प्रिय मौसम माना जाता है। इसलिए साल में एक से अधिक बार आता है। बसंत को भी तीन पार्ट में बांटकर समझेंगे, तो सहूलियत रहेगी।
बसंत, पार्ट- एक, एक छोटी सी बालिका भागी जा रही है। कैमरा उसे फॉलो कर रहा है। थोडी देर में कैमरा सरसों के खेत में पहुंच जाता है। जहां सरसों में फूल आ चुके हैं। कैमरा वापस पलटकर उसी बालिका पर आता है, जो अब बालिका नहीं रही। युवती बन गई है। खेतों में बसंत आया, हीरोइन पर जवानी आई।
यानी बसंत, पार्ट- एक हीरोइन को जवान बनाने के लिए आता है। इसलिए पूरी फिल्म में उपरोक्त बसंत एक बार आता है। वैसे तो हर हीरोइन बसंत के आने पर ही जवान होती है, लेकिन कोई बसंत के आने से पहले जवान हो जाए तो फिर बसंत, पार्ट- एक उस फिल्म में नहीं आता, क्योंकि जिस काम के लिए उसे आना था, वह काम तो हो गया।
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