स्क्रिप्ट और डायरेक्शन : राजा उन्नीनाथ ।
निर्माता : अमित गर्ग
निर्देशन : राजा उन्नीनाथ
सेंसर सर्टिफिकेट : यू /ए
अवधि : 121 मिनट।
हमारी रेटिंगः *1/2
इस फिल्म के डायरेक्टर ने 70-80 के दशक में फिट कहानी को कुछ मॉडर्न लुक में पेश करने की कोशिश की है। फिल्म के जरिए डायरेक्टर ने महानगरों में रहने वाली मिडल क्लास को यही समझाने की कोशिश की है कि वर्किंग कपल चाहकर भी अपने बच्चों को उतना वक्त नहीं दे पाते , जितना वो चाहते हैं। कुछ यही हाल इस फिल्म का है। एक बड़े शहर में रहने वाले वर्किंग कपल की इकलौती बेटी कविता की दुनिया उसके अपने बेडरूम के अलावा पब में दोस्तों के साथ बस मौजमस्ती करने में सिमटी हुई है। आलम यह है कि बेटी के रूम की चाबी भी मां - बाप के पास नहीं और बेटी के रूम में हॉट विडियो सीडी से लेकर कॉन्डम तक पडे़ हैं।
कहानी : देर रात तक पार्टियों में अपने दोस्तों के साथ मौजमस्ती में लगी कविता ( मुरुन्मयी लागू ) मिडल क्लास की ऐसी लड़की है , जिसकी जिंदगी में अपनों के वास्ते कोई जगह नहीं। कविता का दर्द है कि बचपन से उसकी मां ( नीना गुप्ता ) और डैड ( कंवलजीत सिंह ) से उसे उतना प्यार नहीं मिला , जितना मिलना चाहिए। कविता जानती है कि कई सालों से उसके मां - बाप अलग - अलग रूम में सोते हैं , तो उसकी प्रफेसर मां का कॉलेज के किसी और प्रफेसर से अफेयर है। इस अफेयर से उसके डैड टूट चुके हैं। राह से भटकी कविता को मां - बाप ने कई बार समझाने की कोशिश भी की। लेकिन अपनी दुनिया में मस्त कविता को किसी की परवाह नहीं और एक दिन कविता अपना घर छोड़कर अपने दोस्त के घर चली जाती है। इसी बीच कविता के डैड की मौत हो जाती है। कविता जब घर लौटती है , तो उसकी मां उससे मुंह मोड़ लेती है। अब कविता को अपनी फैमिली डॉक्टर साधना ( किट्टू गिडवानी ) से ऐसी दुनिया मिलती है , जहां वह रिलैक्स फील करती है।
स्क्रिप्ट : स्क्रिप्ट में दम नहीं है। अगर लेखक चाहते , तो इस सब्जेक्ट पर ऐसी स्क्रिप्ट तैयार करते , जिसमें महानगरों में रहने वाले उन मां - बाप का दर्द नजर आता , जो अपनी औलाद के बेहतर भविष्य की खातिर अपने सपनों को भूल जाते हैं। कविता का मां - बाप के प्रति हर वक्त आक्रोश में रहना समझ से परे है।
निर्देशन : फिल्म पूरी तरह से बिखरी हुई है। फिल्म के कई दृश्यों को देखकर लगता है , जैसे डायरेक्टर सीट पर आराम फरमाते रहे और सहायकों ने उनका काम निपटाया।
ऐक्टिंग : श्रीराम लागू और रीमा लागू के बाद अब इस फैमिली की मुरुन्मयी लागू ने अपने रोल में मेहनत की है। फिल्म में टीवी के कई जाने - माने आर्टिस्ट हैं , लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के सामने सभी खुद को लाचार पाते हैं।
संगीत : रही सही कसर फिल्म के कमजोर संगीत ने पूरी कर दी। पूरी फिल्म में ऐसा कोई ऐसा गाना नहीं , जिसका पहला अंतरा भी हॉल से निकलते वक्त दर्शक को याद रह पाए।
क्यों देखें : अगर कोई और विकल्प नहीं है , तो इस फिल्म का टिकट लेकर हॉल में रेस्ट कीजिए।
(चंद्रमोहन शर्मा,नभाटा,दिल्ली)
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