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Tuesday, March 23, 2010

आज स्मृति ईरानी का जन्मदिन है

मित्रो, मेरा जन्म और परवरिश दिल्ली में हुई। इस तरह देखा जाए तो मैं दिल्ली की बेटी हूँ। मेरी स्कूल और आगे की पढ़ाई भी दिल्ली में ही हुई है। आज मैं स्पेक्ट्रम के तमाम पाठकों के साथ अपने बचपन के दिनों की कुछ बातें बाँट रही हूँ। दोस्तो,मुझे पता है इन दिनों आपकी एक्जाम खत्म हो चुकी होगी और अब रिजल्ट के आने का इंतजार होगा। मैं आपको अपने दिनों के बारे में बताती हूँ कि जब रिजल्ट आने वाला रहता था तो मुझे भी डर लगा रहता था कि पता नहीं क्या होने वाला है। हालाँकि मेरे सारे पेपर अच्छे जाते थे और मैं हमेशा अच्छा स्कोर करती थी, पर थोड़ा-बहुत रोमांच तो रिजल्ट का रहता ही है। वैसे अगर सालभर ईमानदारी से मेहनत की है तो रिजल्ट अच्छा ही होगा। जिन मित्रों के रिजल्ट अच्छे नहीं रहे उन्हें अगले साल उसे बेहतर करने के बारे में सोचना चाहिए। अभी से मेहनत करना चाहिए और छुट्टियों में अपनी कमजोरियों को दूर करना चाहिए।
मित्रो, अपने स्कूल के दिनों में मैं चुपचाप एक कोने में बैठने वाली लड़की हुआ करती थी। मेरे ज्यादा दोस्त नहीं थे, क्योंकि मैं ज्यादा बातचीत नहीं करती थी। चूँकि मैं स्कूल में कम बोलती थी इसलिए दूसरे मुझसे दोस्ती करना पसंद नहीं करते थे। मैं अपना लंच भी अकेले बैठकर ही करती थी। स्कूल के दिनों में मेरी हल्की-फुल्की रैगिंग भी हुई। मैं चुप रहती थी तो क्लास में यह ऐलान हो गया था कि स्मृति जब तक सभी से बातचीत नहीं करेगी तब तक उसके साथ कोई नहीं बैठेगा। पर यह ऐलान कोई नियम तो था नहीं और बाद में पता नहीं कब टूट गया। स्कूल में ज्यादातर स्टूडेंट्स के ग्रुप बने थे,पर मैं अकेली भी खुश रहती थी। मुझे अपनी किताबों की दुनिया अच्छी लगती थी। वैसे स्कूल के दिनों में मैं शांत और आज्ञाकारी स्टूडेंट थी। मैंने कभी क्लास बंक नहीं की और हर विषय पर पूरा ध्यान दिया। वैसे ज्यादातर बच्चों को गणित और इतिहास जैसे विषय अच्छे नहीं लगते हैं, पर आपको बताती हूँ कि इतिहास स्कूल के दिनों में और आगे भी मेरा पसंदीदा विषय रहा।
दोस्तो,अपने नानाजी निर्मल चंद्र जी के साथ मेरी बहुत खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हैं। बचपन में नानाजी मेरे सबसे अच्छे दोस्त हुआ करते थे। उन्होंने मुझे बहुत-सी अच्छी बातें अच्छी तरह से सिखाईं। वैसे तो बच्चों को उनके नानाजी कहानियाँ सुनाते हैं, पर मेरे साथ उल्टा था। नानाजी मुझे कहानियाँ पढ़ने को देते और फिर मुझे उन कहानियों को ध्यान में रखकर संक्षेप में नानाजी को सुनाना पड़ता था। इस तरह मेरी याददाश्त पक्की होती गई। नानाजी और मैं मिलकर तरह-तरह के खेल खेलते थे। जैसे नानाजी मुझे कहते थे कि अगर तुम एक डाक टिकट होती तो तुम्हारी दिनचर्या क्या होती बताओ। बताओ, अगर तुम एक डाकिया होती तो तुम्हारी दिनचर्या क्या होती। फिर मैं सोचती और उन्हें अपनी दिनचर्या बताती। नानाजी ने ही मुझे तरह-तरह की कल्पना करना सिखाया।
नानाजी मेरे सबसे अच्छे मित्र यूँ भी थे कि वे मुझे बेटे की तरह प्यार करते थे। मुझे याद है कि मैंने जीवन में जो सबसे पहली फिल्म 'साउंड ऑफ म्यूजिक' देखी वह मुझे नानाजी ही दिखाने ले गए थे। यह और बात है कि यह फिल्म देखने के लिए हम दिल्ली के आरतीपुरम से चाणक्यपुरी तक करीब १५ किलोमीटर पैदल चलकर गए थे। पैदल चलते हुए खूब बातें हुईं और रास्ते का पता ही नहीं चला। दोस्तो, नानाजी ने मुझे रोज का यह काम सौंपा था कि मैं अखबार से पाँच बड़ी खबरें उनके लिए चुनकर रखूँ। अखबार पढ़ना और अपनी समझ बढ़ाने का काम भी इस तरह आसानी से आ गया। तो इस तरह मेरी पूरी ट्रेनिंग नानाजी के साथ रहकर ही हुई। आप सभी स्पेक्ट्रम के पाठकों को भी अपने दादा-दादी और नाना-नानी से बहुत कुछ सीखना चाहिए। उनके पास कहानियों, बातों और जानकारियों का खजाना होता है। प्यार से यह खजाना जैसा मेरा हो गया वैसा आपका भी हो सकता है।
दोस्तो, बचपन में मैंने खूब कहानियाँ पढ़ी, स्पोर्ट्स में भी दिलचस्पी ली। जूडो में मैं नेशनल लेवल तक पहुँची। बास्केटबॉल,लॉन्ग जंप सभी में रुचि ली। इतने काम करने के बाद भी मैं पढ़ाई में कभी नहीं पिछड़ी और हर साल फर्स्ट आती रही। तो मेरा आप सभी से यही कहना है कि सारे कामों के बीच पढ़ाई की चिंता थोड़ी-बहुत करो और प्लानिंग के साथ करो। वैसे अब आगे गर्मी की छुट्टियाँ आ रही हैं तो उसकी प्लानिंग करो। गर्मी की छुट्टियों के लिए आप सभी को खूब सारी बधाई।
आपकी सखा
स्मृति ईरानी
(स्पेक्ट्रम,नई दुनिया,19मार्च,2010)

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