कलाकार : अंशुमान झा, नेहा चौहान, श्रुति, राज कुमार यादव, आर्य देव दत्ता
निर्माता : बालाजी टेलीफिल्म्स और एकता कपूर
डायरेक्टर : दिबाकर बनर्जी
संगीत : स्नेहा खानवेलकर
सेंसर सर्टिफिकेट : एडल्ट
अवधि : 102 मिनट
निर्माता : बालाजी टेलीफिल्म्स और एकता कपूर
डायरेक्टर : दिबाकर बनर्जी
संगीत : स्नेहा खानवेलकर
सेंसर सर्टिफिकेट : एडल्ट
अवधि : 102 मिनट
रेटिंग :
बेशक हिंदी सिनेमा बदलने लगा है। कभी जिन सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने के बारे में कोई सोच नहीं पाता उन बोल्ड सब्जेक्ट्स पर अब फिल्म बनने लगी हैं। इसमें सोशल लाइफ में घटती वे घटनाएं भी शामिल हैं जो पेज थ्री कल्चर, या फिर रईसों की महफिलों में मजाक में उड़ा करती थीं।
इस फिल्म के डायरेक्टर ने अपनी पिछली फिल्मों 'खोसला का घोंसला' और 'ओये लकी, लकी ओये' में साबित किया कि उनमें इंडस्ट्री में जमे मेकर्स की भीड़ से कुछ हटकर अलग और नया करने का जज्बा है। इस बार जब उन्हें उनके वेरी हॉट सब्जेक्ट पर एकता कपूर ने फिल्म बनाने का ग्रीन सिग्नल दिया तो दिबाकर बनर्जी ने कुछ ऐसा कर दिखाया जो परंपरागत बॉलिवुड सिनेमा में कम ही दिखाई देता है। अपनी पिछली फिल्मों से हटकर बनर्जी ने इस बार पौने दो घंटे से भी कम अवधि की फिल्म में एक दो नहीं बल्कि अलग अलग मूड की तीन बोल्ड कहानियां पेश की है । इन कहानियों में आपको नितीश कटारा हत्याकांड, नई दिल्ली के एक नामी स्कूल में हुए एमएमएस कांड की याद ताजा होती है और तीसरी कहानी आपको किसी जाने माने पॉप सिंगर की याद दिलाती है तो निश्चित तौर से इसे बनर्जी की काबलियत कहा जाएगा।
कहानी : फिल्म में तीन कहानियां हैं, जिनका एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं, लेकिन इसके बावजूद थिएटर में बैठे दर्शक को तीनों कहानियां ऐसे किसी हादसे की याद जरूर दिलाती हैं जिसने शहर ही देश को भी झकझोर कर रख दिया। फिल्म की पहली कहानी नाकाम प्यार की है जिसे जमाने की नजर लगी है। करोड़पति और सोशल लाइफ में अपना अलग मुकाम रखने वाली फैमिली की बेटी का किसी आम इंसान से रिश्ता। भला फैमिली को कैसे मंजूर होगा, नतीजा, प्रेमी की बेरहमी से हत्या। दूसरी कहानी सेक्स से जुड़ी है, जो इन दिनों टीन एजर्स के बीच लेटेस्ट तकनीक के मिसयूज को दर्शाती है। नई दिल्ली के एक नामी पब्लिक स्कूल में हुई एमएमएस घटना की याद ताजा कराती है इस कहानी में बनर्जी ने सेक्स को आज के नजरिए में पेश किया है। तीसरी कहानी पंजाब के एक जाने माने सिंगर से जुड़ी एक घटना की याद ताजा कराती है। इस गायक का सुपर हिट गाना है तू नंगी अच्छी लगती है और सिंगर साहब को इस गाने की विडियो ऐल्बम के लिए हीरोइन चाहिए। इसी पंजाबी को बेनकाब करने के लिए एक लड़की की मदद से किए स्टिंग ऑपरेशन की कहानी में हर कोई किसी ना किसी ना किसी को धोखा देता मिलेगा।
डायरेक्शन : पूरी फिल्म पर डायरेक्टर की अच्छी पकड़ है। घटनाक्रम इतनी तेज रफ्तार से आगे खिसकता है कि दर्शक को एक पल भी सोचने को नहीं मिलता। लगता है, बनर्जी ने पहले ही तय कर लिया था कि वह किस क्लास के लिए फिल्म बना रहे हैं। यही वजह है कि फ्रंट क्लास फिल्म में लंबे बोल्ड सेक्सी सीन देखने की चाह में हॉल में चली जाए तो उनकी कसौटी पर फिल्म शायद ही खरी उतर पाए।
ऐक्टिंग : इस कहानी की डिमांड भी यही थी कि ऐसे पात्रों को लिया जाए जिनकी अपनी कोई इमेज न बन चुकी हो। इसलिए अंशुमान झा, नेहा, श्रुति हर कोई अपने पात्र में खूब जमा है।
संगीत : फिल्म में गानों की कोई गुंजाइश भी नहीं थी और न ही बनर्जी ने बेवजह कोई गाना फिट किया। हां, फिल्म के बीच चलता टाइटिल ट्रैक कहानी का हिस्सा बना है।
क्यों देखें : लीक से हटकर बनी यह फिल्म कुछ अलग और नया देखने वालों की कसौटी खरी उतरने का दम रखती है। सेंसर ने फिल्म को ए सर्टिफिकेट तो दिया लेकिन बहुत बोल्ड सीन्स पर कैंची चलाने की जहमत नहीं उठाई। फैमिली क्लास के लिए फिल्म में कुछ नहीं है।
(चंद्रमोहन शर्मा,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,19.3.2010)
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दैनिक भास्कर मे राजेश यादव ने महज डेढ स्टार देते हुए लिखा हैः
रियलिस्टिक सिनेमा की जिस नई धुन पर बॉलीवुड के नए निर्देशक दौड़ लगा रहे हैं उसी की अगली कड़ी में फिल्म लव सेक्स और धोखा को भी गिना जा सकता है। लेकिन यह फिल्म ना तो सार्थक सिनेमा की बात करती है और ना ही वास्तविक सिनेमा की। दिबाकर बनर्जी ने दर्शनरति की जिस वास्तविकता को कैमरे में कैद करने का प्रयास किया है उसमें वह दम नहीं आ पाया है जो एक छाप छोड़ता हो, मनोरंजन तो बहुत दूर की बात है। दिबाकर का उद्देश्य तो बेहतर नजर आता है लेकिन कहानी कहने का अंदाज कुछ और होता तो बात कुछ हटके होती। रियलिस्टिक सिनेमा की फिल्मों के लिए पूर्व में आई अनुराग कश्यप की फिल्म देव डी ने एक आईना दिखाया था लेकिन उस परी पाटी पर दिबाकर बनर्जी की लव सेक्स और धोखा चलती नजर नहीं आती है।
फिल्म में गीत, संगीत तो बेदम है ही उस पर पटकथा में कसावट न होने से बात और बिगड़ गई। दरअसल रियलिस्टिक सिनेमा की जिस नई डपली को आधार बनाकर इस फिल्म को बनाया गया है उस पर यह फिल्म खरी नई उतरती है। युवा मानस, कैमरे की दुनिया और प्यार में शारीरिक संबंधो के नाम पर धोखे की दास्तान बयां करती यह फिल्म आम दर्शकों को निराश करती है और सच को दिखाने के अंदाज पर भी नई बहस को जन्म दे सकती है।
फिल्म में छोटी -छोटी तीन कहानियां है जिसे देखकर आप को वास्तविक समाज की कुछ कहानियां याद आ सकती है। ये कहानियां स्कूल कॉलेजों में आए दिन हो रहे एमएमएस कांड, मीडिया में आ रहे स्टिंग ऑपरेशन के कड़वे सच और सिनेमा की रंगीन संसार के परदे के पीछे का चरित्र उजागर करने का प्रयास है। पहली फिल्म में एक कॉलेज के लड़के और एक करोड़पति घराने की लड़की के प्यार की ऐसी कहानी है जिसे परिवार पसंद नहीं करता है और दोनों ऑनर किलिंग के शिकार हो जाते हैं। दूसरी फिल्म नई तकनीकी और प्यार में धोखे की कहानी कहती है जो आजकल के किशोर वय प्रेम में देखी जा रही है। तीसरी कहानी एक ऐसे सिंगर के स्टिंग ऑपरेशन से जुड़ी है जो अपनी ख्याति के बल पर अवसर देने की बात कहकर नई लड़कियों के शरीर से खेलता है और इस खेल को एक्सपोज करने में मीडिया के लोगों के खास अंदाज और सोच पर भी सवाल उठाया गया है।
फिल्म में जो कहानियां ली गई है उसकी थीम में तो दम नजर आता है लेकिन पटकथा में वह बात नहीं आ पाई है। निर्देशन में भी दिबाकर प्रभाव नहीं छोड़ पाएं है। जिस सच को निर्देशक दिखाने की बात कर रहा है उसे कहने का अंदाज उतना खूबसूरत नहीं बन पाया। दरअसल दिबाकर बॉलीवुड के उन युवा निर्देशकों में से है जो रियलिस्टिक सिनेमा के नाम पर सेंसर की कैंची को पसंद नहीं करते और सच को दिखाने में वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। फिल्म एक ऐसी कला है जिसमें कैमरे के माध्यम से बिना नंगेपन और भाषा में गालियों के शोर से बचकर भी सच को बयां किया जा सकता है और इस मामले में दिबाकर की लव सेक्स और धोखा खरी नहीं उतरती है।
सच को कहने के लिए जिस साहस की जरूरत होती है वह तो निर्देशक ने दिखाया लेकिन सलीका इससे बेहतर हो सकता था, नाम में बोल्डनेस से चौंकाया तो जा सकता है लेकिन प्रभाव तो बस बेहतर फिल्म ही छोड़ती है चाहे वह किसी भी कैमरे से क्यों ना खींची गई हो। बॉक्स ऑफिस पर लव, सेक्स और धोखेबाजी पर बनी फिल्मों को दर्शक मिलते रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि लव सेक्स और धोखा दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरेगी। कुल मिलाकर फिल्म लव सेक्स और धोखा बोल्ड फिल्म जरूर है लेकिन खूबसूरत फिल्म नहीं है , इन सब बातों के बावजूद दिबाकर बनर्जी के लिए एक बात कही जा सकती है कि उन्होंने कुछ नया करने का प्रयास जरूर किया है भले ही वे इसमें असफल हो गए हों।
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साढे तीन रेटिंग के साथ वेबदुनिया की टिप्पणीः
‘लव सेक्स और धोखा’ एक एक्सपरिमेंटल फिल्म है, जो कैमरे और टेक्नालॉजी की पर्सनल लाइफ में दखल को दिखाती है। हर आदमी के पास इन दिनों कैमरा है और जब चाहे वो इसका उपयोग/दुरुपयोग कर रहा है।
कैमरे की आँख हम पर लगातार नजर रखे हुए है। मीडिया इसके जरिये स्टिंग ऑपरेशन कर रहा है। लेकिन उसका उद्देश्य सच्चाई को समाने लाने की बजाय सनसनी फैलाना और प्राइम टाइम में मनोरंजन देना है।
अश्लील एमएमएस की इन दिनों डिमांड है क्योंकि दूसरों के निजी क्षणों को देखना बड़ा अच्छा लगता है। हर कोई रियलिटी देखना चाहता है। कई बार लोगों को पता ही नहीं चलता और ये वेबसाइट पर अपलोड कर दिए जाते हैं।
निर्देशक दिबाकर बैनर्जी ने अपनी फिल्म को तीन कहानियों में बाँटा है। पहली स्टोरी में लव दिखाया गया है। फिल्म इंस्टीट्यूट का स्टुडेंट डिप्लोमा फिल्म बनाते हुए हीरोइन से प्यार कर बैठता है।
टीनएज में प्यार को लेकर तरह-तरह की कल्पनाएँ होती हैं। ‘डीडीएलजे’ जैसी फिल्मों का नशा दिमाग पर छाया रहता है। इस कहानी के किरदार भी राज और सिमरन की तरह व्यवहार करते हैं, लेकिन उनकी लव स्टोरी का ‘द एंड’ राज और सिमरन की तरह नहीं होता है क्योंकि रियलिटी और कल्पना में बहुत डिफरेंस है। तीनों कहानी में ये वीक है क्योंकि इसमें नाटकीयता कुछ ज्यादा हो गई है। इस स्टोरी को हाथ में कैमरा लेकर फिल्माया गया है।
दूसरी कहानी डिपार्टमेंटल स्टोर में लगे सिक्यूरिटी कैमरे की नजर से दिखाई गई है। इस कैमरे की मदद से वहाँ काम करने वाला आदर्श एक पोर्न क्लिप बनाना चाहता है। रश्मि नामक सेल्सगर्ल का वह पहले दिल जीतता है और फिर स्टोर में उसके साथ सेक्स कर वह क्लिप को महँगे दामों में बेच देता है। यहाँ बताने की कोशिश की गई है कि हर ऊँची दुकान या मॉल्स में आप पर कड़ी नजर सिक्यूरिटी के बहाने रखी जा रही है, लेकिन इसका दुरुपयोग भी हो सकता है।
तीसरी कहानी को स्पाय कैमरे के जरिये दिखाया गया है। एक डांसर को म्यूजिक वीडियो में मौका देने के बहाने एक प्रसिद्ध पॉप सिंगर उसका शारीरिक शोषण करता है। डांसर की मुलाकात एक जर्नलिस्ट से होती है, जिसकी मदद से वे सिंगर का स्टिंग ऑपरेशन करते हैं।
यहाँ मीडिया को आड़े हाथों लिया गया है, जो इस फुटेज के जरिये सच्चाई को सामने लाने के बजाय अपनी टीआरपी को ध्यान रखता है। वे इस कहानी को सीरियल की तरह खींचकर पैसा बनाना चाहते हैं।
तीनों कहानियों को बेहतरीन तरीके से जोड़ा गया है और आपको अलर्ट रहना पड़ता है कि कौन-सा कैरेक्टर किस स्टोरी का है और इस स्टोरी में कैसे आ गया है।
फिल्म के सारे कलाकार अपरिचित हैं, लेकिन उनकी एक्टिंग सराहनीय है। कभी नहीं लगता कि वे एक्टिंग कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि वे हमारे आसपास मौजूद हैं और हम कैमरे के माध्यम से उन पर नजर रखे हुए हैं।
डायरेक्टर दिबाकर बैनर्जी की पकड़ पूरी फिल्म पर है। एक्सपरिमेंटल और रियलिटी के करीब होने के बावजूद फिल्म इंट्रस्टिंग लगती है। अपने एक्टर्स से उन्होंने बखूबी काम लिया। सिनेमाटोग्राफर निकोस ने कैमरे को एक कैरेक्टर की तरह यूज़ किया है। नम्रता राव की एडिटिंग तारीफ के काबिल है।
‘लव सेक्स और धोखा’ उन लोगों के लिए नहीं है जो टिपिकल मसाला फिल्म देखना पसंद करते हैं। आप कुछ डिफरेंट की तलाश में हैं तो इसे देखा जा सकता है।
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दैनिक भास्कर मे राजेश यादव ने महज डेढ स्टार देते हुए लिखा हैः
रियलिस्टिक सिनेमा की जिस नई धुन पर बॉलीवुड के नए निर्देशक दौड़ लगा रहे हैं उसी की अगली कड़ी में फिल्म लव सेक्स और धोखा को भी गिना जा सकता है। लेकिन यह फिल्म ना तो सार्थक सिनेमा की बात करती है और ना ही वास्तविक सिनेमा की। दिबाकर बनर्जी ने दर्शनरति की जिस वास्तविकता को कैमरे में कैद करने का प्रयास किया है उसमें वह दम नहीं आ पाया है जो एक छाप छोड़ता हो, मनोरंजन तो बहुत दूर की बात है। दिबाकर का उद्देश्य तो बेहतर नजर आता है लेकिन कहानी कहने का अंदाज कुछ और होता तो बात कुछ हटके होती। रियलिस्टिक सिनेमा की फिल्मों के लिए पूर्व में आई अनुराग कश्यप की फिल्म देव डी ने एक आईना दिखाया था लेकिन उस परी पाटी पर दिबाकर बनर्जी की लव सेक्स और धोखा चलती नजर नहीं आती है।
फिल्म में गीत, संगीत तो बेदम है ही उस पर पटकथा में कसावट न होने से बात और बिगड़ गई। दरअसल रियलिस्टिक सिनेमा की जिस नई डपली को आधार बनाकर इस फिल्म को बनाया गया है उस पर यह फिल्म खरी नई उतरती है। युवा मानस, कैमरे की दुनिया और प्यार में शारीरिक संबंधो के नाम पर धोखे की दास्तान बयां करती यह फिल्म आम दर्शकों को निराश करती है और सच को दिखाने के अंदाज पर भी नई बहस को जन्म दे सकती है।
फिल्म में छोटी -छोटी तीन कहानियां है जिसे देखकर आप को वास्तविक समाज की कुछ कहानियां याद आ सकती है। ये कहानियां स्कूल कॉलेजों में आए दिन हो रहे एमएमएस कांड, मीडिया में आ रहे स्टिंग ऑपरेशन के कड़वे सच और सिनेमा की रंगीन संसार के परदे के पीछे का चरित्र उजागर करने का प्रयास है। पहली फिल्म में एक कॉलेज के लड़के और एक करोड़पति घराने की लड़की के प्यार की ऐसी कहानी है जिसे परिवार पसंद नहीं करता है और दोनों ऑनर किलिंग के शिकार हो जाते हैं। दूसरी फिल्म नई तकनीकी और प्यार में धोखे की कहानी कहती है जो आजकल के किशोर वय प्रेम में देखी जा रही है। तीसरी कहानी एक ऐसे सिंगर के स्टिंग ऑपरेशन से जुड़ी है जो अपनी ख्याति के बल पर अवसर देने की बात कहकर नई लड़कियों के शरीर से खेलता है और इस खेल को एक्सपोज करने में मीडिया के लोगों के खास अंदाज और सोच पर भी सवाल उठाया गया है।
फिल्म में जो कहानियां ली गई है उसकी थीम में तो दम नजर आता है लेकिन पटकथा में वह बात नहीं आ पाई है। निर्देशन में भी दिबाकर प्रभाव नहीं छोड़ पाएं है। जिस सच को निर्देशक दिखाने की बात कर रहा है उसे कहने का अंदाज उतना खूबसूरत नहीं बन पाया। दरअसल दिबाकर बॉलीवुड के उन युवा निर्देशकों में से है जो रियलिस्टिक सिनेमा के नाम पर सेंसर की कैंची को पसंद नहीं करते और सच को दिखाने में वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। फिल्म एक ऐसी कला है जिसमें कैमरे के माध्यम से बिना नंगेपन और भाषा में गालियों के शोर से बचकर भी सच को बयां किया जा सकता है और इस मामले में दिबाकर की लव सेक्स और धोखा खरी नहीं उतरती है।
सच को कहने के लिए जिस साहस की जरूरत होती है वह तो निर्देशक ने दिखाया लेकिन सलीका इससे बेहतर हो सकता था, नाम में बोल्डनेस से चौंकाया तो जा सकता है लेकिन प्रभाव तो बस बेहतर फिल्म ही छोड़ती है चाहे वह किसी भी कैमरे से क्यों ना खींची गई हो। बॉक्स ऑफिस पर लव, सेक्स और धोखेबाजी पर बनी फिल्मों को दर्शक मिलते रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि लव सेक्स और धोखा दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरेगी। कुल मिलाकर फिल्म लव सेक्स और धोखा बोल्ड फिल्म जरूर है लेकिन खूबसूरत फिल्म नहीं है , इन सब बातों के बावजूद दिबाकर बनर्जी के लिए एक बात कही जा सकती है कि उन्होंने कुछ नया करने का प्रयास जरूर किया है भले ही वे इसमें असफल हो गए हों।
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साढे तीन रेटिंग के साथ वेबदुनिया की टिप्पणीः
‘लव सेक्स और धोखा’ एक एक्सपरिमेंटल फिल्म है, जो कैमरे और टेक्नालॉजी की पर्सनल लाइफ में दखल को दिखाती है। हर आदमी के पास इन दिनों कैमरा है और जब चाहे वो इसका उपयोग/दुरुपयोग कर रहा है।
कैमरे की आँख हम पर लगातार नजर रखे हुए है। मीडिया इसके जरिये स्टिंग ऑपरेशन कर रहा है। लेकिन उसका उद्देश्य सच्चाई को समाने लाने की बजाय सनसनी फैलाना और प्राइम टाइम में मनोरंजन देना है।
अश्लील एमएमएस की इन दिनों डिमांड है क्योंकि दूसरों के निजी क्षणों को देखना बड़ा अच्छा लगता है। हर कोई रियलिटी देखना चाहता है। कई बार लोगों को पता ही नहीं चलता और ये वेबसाइट पर अपलोड कर दिए जाते हैं।
निर्देशक दिबाकर बैनर्जी ने अपनी फिल्म को तीन कहानियों में बाँटा है। पहली स्टोरी में लव दिखाया गया है। फिल्म इंस्टीट्यूट का स्टुडेंट डिप्लोमा फिल्म बनाते हुए हीरोइन से प्यार कर बैठता है।
टीनएज में प्यार को लेकर तरह-तरह की कल्पनाएँ होती हैं। ‘डीडीएलजे’ जैसी फिल्मों का नशा दिमाग पर छाया रहता है। इस कहानी के किरदार भी राज और सिमरन की तरह व्यवहार करते हैं, लेकिन उनकी लव स्टोरी का ‘द एंड’ राज और सिमरन की तरह नहीं होता है क्योंकि रियलिटी और कल्पना में बहुत डिफरेंस है। तीनों कहानी में ये वीक है क्योंकि इसमें नाटकीयता कुछ ज्यादा हो गई है। इस स्टोरी को हाथ में कैमरा लेकर फिल्माया गया है।
दूसरी कहानी डिपार्टमेंटल स्टोर में लगे सिक्यूरिटी कैमरे की नजर से दिखाई गई है। इस कैमरे की मदद से वहाँ काम करने वाला आदर्श एक पोर्न क्लिप बनाना चाहता है। रश्मि नामक सेल्सगर्ल का वह पहले दिल जीतता है और फिर स्टोर में उसके साथ सेक्स कर वह क्लिप को महँगे दामों में बेच देता है। यहाँ बताने की कोशिश की गई है कि हर ऊँची दुकान या मॉल्स में आप पर कड़ी नजर सिक्यूरिटी के बहाने रखी जा रही है, लेकिन इसका दुरुपयोग भी हो सकता है।
तीसरी कहानी को स्पाय कैमरे के जरिये दिखाया गया है। एक डांसर को म्यूजिक वीडियो में मौका देने के बहाने एक प्रसिद्ध पॉप सिंगर उसका शारीरिक शोषण करता है। डांसर की मुलाकात एक जर्नलिस्ट से होती है, जिसकी मदद से वे सिंगर का स्टिंग ऑपरेशन करते हैं।
यहाँ मीडिया को आड़े हाथों लिया गया है, जो इस फुटेज के जरिये सच्चाई को सामने लाने के बजाय अपनी टीआरपी को ध्यान रखता है। वे इस कहानी को सीरियल की तरह खींचकर पैसा बनाना चाहते हैं।
तीनों कहानियों को बेहतरीन तरीके से जोड़ा गया है और आपको अलर्ट रहना पड़ता है कि कौन-सा कैरेक्टर किस स्टोरी का है और इस स्टोरी में कैसे आ गया है।
फिल्म के सारे कलाकार अपरिचित हैं, लेकिन उनकी एक्टिंग सराहनीय है। कभी नहीं लगता कि वे एक्टिंग कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि वे हमारे आसपास मौजूद हैं और हम कैमरे के माध्यम से उन पर नजर रखे हुए हैं।
डायरेक्टर दिबाकर बैनर्जी की पकड़ पूरी फिल्म पर है। एक्सपरिमेंटल और रियलिटी के करीब होने के बावजूद फिल्म इंट्रस्टिंग लगती है। अपने एक्टर्स से उन्होंने बखूबी काम लिया। सिनेमाटोग्राफर निकोस ने कैमरे को एक कैरेक्टर की तरह यूज़ किया है। नम्रता राव की एडिटिंग तारीफ के काबिल है।
‘लव सेक्स और धोखा’ उन लोगों के लिए नहीं है जो टिपिकल मसाला फिल्म देखना पसंद करते हैं। आप कुछ डिफरेंट की तलाश में हैं तो इसे देखा जा सकता है।
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