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Monday, March 29, 2010

वेल डन अब्बाःफिल्म-समीक्षा

कलाकार : बोमन ईरानी, समीर दत्तानी, मिनिषा लांबा, ईला अरुण, सोनाली कुलकर्णी, रजत कपूर, रवि किशन, यशपाल शर्मा
निर्माता: बिग पिक्चर्स
डायरेक्टर: श्याम बेनेगल
म्यूजिक: शांतनु मोइत्रा
गीतः स्वानंद किरकिरे
सेंसर सर्टिफिकेट : यू
अवधि: 134 मिनट
रेटिंगः 3+1/5

लीक से हटकर दमदार फिल्मों के लिए अपनी पहचान बना चुके श्याम बेनेगल की इस फिल्म में भी उन दर्शकों के लिए बहुत कुछ है, जो मनोरंजन के साथ कुछ नया और अलग देखना चाहते हैं। बेनेगल के फिल्मी करियर की यह 26वीं फिल्म है। अपनी पिछली फिल्मों की तरह उन्होंने इस बार भी मनोरंजन के साथ कुछ सटीक मेसेज दिया है। अगर कहा जाए तो सरकार को जो मेसेज देना चाहिए था, उसे बेनेगल ने अपने दम पर ऐसे असरदार ढंग से पेश किया है, जिसकी तारीफ करनी चाहिए।


बेनेगल की पिछली फिल्म 'वेलकम टु सज्जनपुर' को बड़े शहरों और मल्टिप्लेक्सों में ज्यादा कामयाबी भले ही न मिली हो, लेकिन छोटे सेंटरों में फिल्म इस कदर हिट रही कि निर्माता कंपनी ने लागत के बाद मुनाफा भी कमाया। बेनेगल के बारे में कहा जाता है कि वह फिल्म बनाने में प्रॉडक्शन कंपनी की शर्तों को नहीं मानते और न ही किसी तरह का समझौता करते हैं। यही वजह रही कि हैदराबाद के आसपास घूमती इस कहानी को शूट करने के लिए बेनेगल और उनकी यूनिट के लोगों ने साउथ के कई छोटे गांवों में डेरा डाला। फिल्म के टाइटल से आप समझ सकते हैं कि पूरी फिल्म में अब्बा का राज है। 'थ्री इडियट' के बाद बोमन ईरानी ने एक बार फिर साबित किया कि कहानी के किरदार में खुद को कैसे फिट किया जा सकता है। फिल्म में बोमन का डबल रोल दर्शकों को और अधिक चौंकाता है। उन्होंने हैदराबाद की बोली और साउथ के गांव में रहने वाले उन लोगों की बेबसी को सिल्वर स्क्रीन पर ऐसे असरदार ढंग से उतारा है कि हॉल में बैठे दर्शक उनकी वाहवाही किए बिना खुद को नहीं रोक पाते।


कहानी: करीब तीन महीने की छुट्टी के बाद ड्राइवर अरमान अली (बोमन ईरानी) अपने गांव से मुंबई वापस लौटता है, तो उसका मालिक उसे किसी भी सूरत में नौकरी पर वापस रखने को राजी नहीं होता। दरअसल, अरमान अपने मालिक से एक महीने की छुट्टी लेकर गया था और वापस आया तीन महीने में। बस यही वजह है कि इस बार मालिक अरमान का कोई बहाना सुनने को तैयार नहीं होता। लेकिन अचानक मालिक को जरूरी काम से पुणे जाना पड़ता है, तो वह अरमान को एक बार फिर कार चलाने का मौका देता है। इसी सफर में अरमान उसे अपनी आपबीती सुनाता है। इस आपबीती में अरमान का जुड़वां निठल्ला भाई रहमत अली (बोमन ईरानी) और उसकी बेगम सलमा (ईला अरुण) से लेकर साउथ में अरमान का ऐसा गांव है, जहां इंसानी जिंदगी से पानी ज्यादा महंगा है। गांव में अपने चाचा चाची के साथ रह रही अरमान की बेटी मुस्कान (मिनिषा लांबा) बारहवीं क्लास में पढ़ती है और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने का दम रखती है। अरमान अपनी पुश्तैनी जमीन को खेती के लायक बनाने के मकसद से पानी की बावड़ी बनाने के लिए सरकारी अनुदान लेता है। पर इस चक्कर में वह ऐसे चक्रव्यूह में फंसता है, जहां सिर्फ अफसरशाही, भ्रष्टाचार और सरकार द्वारा गरीबों के लिए बनी योजनाओं की रकम डकारते अफसर से लेकर मंत्री तक शामिल हैं।


ऐक्टिंग: पूरी फिल्म बोमन ईरानी पर टिकी है और डबल रोल में बोमन छाए हुए हैं। मिनिषा लांबा ने 'यहां' के बाद एक बार फिर साबित किया कि अगर काबिल डायरेक्टर का साथ मिले, तो उनकी गिनती इंडस्ट्री की टॉप हीरोइनों में हो सकती है। ईला अरुण फिर से अपने पुराने 'वेलकम टु सज्जनपुर' स्टाइल में नजर आईं। वहीं, ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में रजत कपूर और भ्रष्ट और रंगीन मिजाज इंजिनियर की भूमिका में रवि किशन जमे हैं।


डायरेक्शन: बेनेगल की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया और बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ मसालों का मोह त्यागकर साफ सुथरी फिल्म बनाई। इंटरवल से पहले फिल्म की रफ्तार कुछ धीमी है, तो वहीं आखिर में फिल्म को आठ दस मिनट बेवजह बढ़ाया गया है।


म्यूजिक: फिल्म का म्यूजिक अच्छा है। पानी को तरसते पानी को झपटते चेहरे, रहिमन इश्क का धागा रे, मेरी बन्नो होशियार... गीत हॉल से बाहर आकर भी याद रहते हैं।


क्यों देखें: अगर आप श्याम बेनेगल की फिल्मों के शौकीन हैं, तो फिल्म आपके लिए है। बोमन ईरानी न भूलने वाले डबल रोल में हैं और भ्रष्ट सरकारी तंत्र का पर्दाफाश फिल्म की खासियत है।

(चंद्रमोहन शर्मा,नवभारत टाइम्स)

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इसी फिल्म की रामकुमार सिंह जी की समीक्षा राजस्थान पत्रिका से-

निर्देशक श्याम बेनेगल एक बार फिर अपने पूरे रंग में हैं। 'वेलकम टु सज्जनपुर' के बाद उनकी अगली फिल्म 'वेल डन अब्बा' सिनेमाघरों में है। गांव की एक कहानी को आधार बनाकर उसे छिछली कॉमेडी से ऊपर उठाते हुए व्यवस्था पर एक तंज करती हुई वेल डन अब्ब्ाा एक तरह से सार्थक सिनेमा की वापसी है। यह लगभग हरिशंकर परसाई और शरद जोशी का एक तरह से सिनेमाई संस्करण है। यह संयोग ही है कि इस फिल्म के कहानी के हिंदी लेखक संजीव की कहानी फुलवा का पुल, उर्दू लेखक जिलानी बानो की नरसियां की बावडी और स्क्रीनप्ले ट्रीटमेंट में जयंत कृपलानी की स्टिल वाटर्स को श्रेय दिया गया है।
फिल्म की कहानी मुंबई में काम करने वाले ड्राइवर अरमान अली की है, जो अपने गांव से लौटकर मुंबई जाता है तो उसका बॉस उसे रखने से मना करता है कि वह एक महीने की छुट्टी लेकर पूरे तीन महीने क्यों गायब रहा। वह अजीब तरीके से किस्सा सुनाता है। सरकार की ओर से कपिलधारा योजना में वह मुफ्त में बावडी की खुदाई करने के लिए सरकारी अनुदान की मांग करता है, लेकिन बावडी नहीं बनी। जबकि सरकार के कागजों में चित्र और वैरिफिकेशन के हस्ताक्षर के साथ मौजूद है। अरमान अली अपनी बेटी मुस्कान अली के साथ पुलिस में इस बात की रिपोर्ट दर्ज कराता है कि उसकी बावडी चोरी हो गई है। पता चला न केवल अरमान अली, बल्कि इलाके के ज्यादातर किसानों की बावडियां चोरी हो गई हैं। अरमान अली यहां एक नेता बनकर उभरते हैं। अरमान अली कहते हैं, मैं बावडी के लिए पैसा लेने गया तो इन लोगों से डरता था, लेकिन अब देख लिया कि ये सब मक्कार लोग हैं। पटकथा की उपकथाओं में मिनिषा लांबा और समीर दत्तानी के रोमांस के ट्रेक हैं और अरमान अली के जुडवां भाई रहमान अली और उनकी पत्नी यानी डबल रोल में बोमन इरानी और इला अरूण भी हैं। इंस्पेक्टर की भूमिका में रजित कपूर, उनके सहयोगी यशपाल और रवि झांकल, इंजीनियर की भूमिका में रवि किशन हैं। सभी ने अच्छा अभिनय किया है, लेकिन सारे नंबर बोमन इरानी को जाते हैं।
श्याम बेनेगल की इस फिल्म की खासियत यह है कि फिल्म विकास में बाधा डालने वाले उस सरकारी तंत्र पर एक तमाचा जडती है। सूचना के अधिकार की ताकत का बेहतरीन इस्तेमाल इस फिल्म में किया गया है। शांतनु मोइत्रा का संगीत अच्छा है। आम आदमी की ताकत की कहानी है वेल डन अब्बा।
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नई दुनिया में मृत्युंजय प्रभाकरः

अच्छे अभिनेताओं की कद्र हमेशा रही है और रहेगी। बोमन ईरानी ने अपनी अभिनय प्रतिभा से अपनी खास पहचान बनाई है और एक अच्छा-खासा दर्शक वर्ग भी। वह जितने सहज तरीके से अपनी भूमिका उत्कृष्टता से निभा ले जाते हैं इस हफ्ते प्रदर्शित दोनों ही फिल्में इस बात की गवाह हैं। दो फिल्में और भूमिकाएं तीन। श्याम बेनेगल निर्देशित फिल्म "वेल डन अब्बा" में बोमन जु़ड़वा भाइयों की दोहरी भूमिका में हैं तो कबीर कौशिक की फिल्म "हम, तुम और घोस्ट" में भूत की भूमिका में। तीनों पात्रों को बोमन ने जितने नेचुरल तरीके से प्ले किया है वह देखने लायक है। बोमन के दर्शकों के लिए यह हफ्ता सच में खास है।

श्याम बेनेगल की फिल्मों में गांव और कस्बायी समाज हमेशा से प्रमुखता से रहा है। उनकी पिछली फिल्म "वेलकम टू सज्जनपुर" भी कस्बायी धरातल की फिल्म थी और लोगों को पसंद आई थी। "वेल डन अब्बा" में बेनेगल एक बार फिर गांव की ओर लौटे हैं और सरकारी लोककल्याणकारी योजनाओं की जो हालत है उसका परीक्षण किया है। हाल ही में आई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुस्लिम समाज का जो अक्स दिखाया गया है फिल्म उसकी पुष्टि करती है। बहुत दिनों बाद बॉलीवुड में ऐसी फिल्म आई है जिसका मुख्य पात्र एक मुस्लिम किरदार है। फिल्म हल्के-फुल्के संवादों और दृश्यों के माध्यम से आगे ब़ढ़ती है पर कहीं-कहीं खिंच गई है। इस फिल्म की खोज मिनिषा लांबा हैं जिन्होंने अपने काम से सबको प्रभावित किया है। रवि किशन, राजेंद्र गुप्ता, ईला अरुण, यशपाल शर्मा, रजित कपूर आदि भी अपनी भूमिकाओं में जमे हैं।

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और अंत मे,साढे तीन स्टार के साथ समय ताम्रकार वेबदुनिया परः

श्याम बेनेगल का कहना है कि वे युवाओं को गाँव से जोड़ना चाहते हैं क्योंकि भारतीयों का एक बहुत बड़ा हिस्सा गाँवों में बसता है जो शाइनिंग इंडिया से बहुत दूर है। इसलिए उन्होंने ‘वेल डन अब्बा’ में चिकटपल्ली नामक गाँव को दिखाया है। ग्रामीण जीवन और उनकी समस्याओं को यह फिल्म बारीकी से दिखाती है।

इस फिल्म के जरिये उन्होंने उन सरकारी योजनाओं पर प्रहार किया है जो गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए बनाई जाती है। मुफ्त का घर, मुफ्त का कुआँ, मुफ्त की शिक्षा, चिकित्सा जैसी योजनाएँ सरकार से गरीब तक पहुँचने में कई लोगों के हाथ से गुजरती है और लाख रुपए सैकड़े में बदल जाते हैं।

अरमान अली (बोमन ईरानी) मुंबई में ड्रायवर है। छुट्टी लेकर वह अपनी बेटी मुस्कान (मिनिषा लांबा) के लिए लड़का ढूँढने चिकटपल्ली जाता है। मुस्कान अपने चाचा-चाची के साथ रहती है जो मस्जिद से जूते भी चुराते हैं और बावड़ियों से पानी भी क्योंकि गाँव में पानी का संकट है।
अरमान को पता चलता है कि कपिल धारा योजना के अंतर्गत सरकार गरीबों को बावड़ी के लिए मुफ्‍त में धन दे रही है। वह अपनी जमीन पर बावड़ी बनवाना चाहता है ताकि थोड़ी-बहुत फसल पैदा कर सके। गरीबी रेखा के नीचे होने का वह झूठा प्रमाण-पत्र बनवाता है और बावड़ी के लिए आवेदन करता है।

उसका सामना भ्रष्ट अफसर, बाबू, मंत्री और इंजीनियर से होता है जो उसे मिलने वाले अनुदान में से अपना हिस्सा माँगते हैं। आखिर में अरमान के हाथों में चंद हजार रुपए आते हैं जिससे बावड़ी नहीं बनाई जा सकती।

उदास अरमान को उसकी 12 वीं कक्षा में पढ़ रही बेटी मुस्कान अनोखा रास्ता बताती है। वे बावड़ी की चोरी की रिपोर्ट दर्ज करवाते हैं। उनका साथ वे लोग भी देते हैं जिनके साथ भी बावड़ी के नाम पर हेराफेरी की गई। मामला विधानसभा तक पहुँच जाता है और सरकार बचाने के लिए रातो-रात बावड़ी बना दी जाती है।

इस कहानी को ‘नरसैय्या की बावड़ी’ (जीलानी बानो), ‘फुलवा का पुल’ (संजीव) और ‘स्टिल वॉटर्स’ को आधार बनाकर तैयार किया गया है। इस तरह की कहानी पर कुछ क्षेत्रीय भाषाओं में भी फिल्म बनी है और कुछ दिनों पहले ‘लापतागंज’ टीवी धारावाहिक के एक एपिसोड में भी ऐसी कहानी देखने को मिली थी। लेकिन श्याम बेनेगल का हाथ लगने से यह कहानी ‘वेल डन अब्बा’ में और निखर जाती है।

बेनेगल ने सरकारी सिस्टम और इससे जुड़े भ्रष्ट लोगों को व्यंग्यात्मक और मनोरंजक तरीके से स्क्रीन पर पेश किया है कि किस तरह इन योजनाओं को मखौल बना दिया गया है और गरीबों का हक अफसर/मंत्री/पुलिस छीन रहे हैं। कई ऐसे दृश्य हैं जो चेहरे पर मुस्कान लाते हैं साथ ही सोचने पर मजबूर करते हैं। ये सारी बातें बिना लाउड हुए दिखाई गई हैं।

मुख्‍य कहानी के साथ-साथ मुस्कान और आरिफ का रोमांस और शेखों द्वारा गरीब लड़कियों को खरीदने वाला प्रसंग भी उल्लेखनीय है। फिल्म की धीमी गति और लंबे क्लायमेक्स से कुछ लोगों को शिकायत हो सकती है, लेकिन इसे अनदेखा भी किया जा सकता है।

गाँव की जिंदगी में एक ठहराव होता है और इसे फिल्म के किरदारों के जरिये महसूस किया जा सकता है। फिल्म में कई ऐसे कैरेक्टर हैं जो फिल्म खत्म होने के बाद भी याद रहते हैं। चाहे वो भला आदमी अरमान हो, उसकी तेज तर्रार बेटी मुस्कान हो या इंजीनियर झा हो जिसके दिमाग में हमेशा सेक्स छाया रहता है।
अरमान अली के रूप में बोमन ईरानी की एक्टिंग बेहतरीन है, लेकिन अरमान के जुड़वाँ भाई के रूप में उन्होंने थोड़ी ओवर एक्टिंग की है। मिनिषा लांबा का यह अब तक सबसे उम्दा अभिनय कहा जा सकता है। रवि किशन, रजत कपूर, इला अरुण, समीर दत्ता, राजेन्द्र गुप्ता ने भी अपना काम अच्छे से किया है। सोनाली कुलकर्णी को ज्यादा अवसर ‍नहीं मिल पाए।

‘वेल डन अब्बा’ एक वेल मेड फिल्म है और इसे देखा जा सकता है।

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