यशराज फिल्म्स ने शाहरुख खान के साथ अनेक फिल्में करते हुए भी अपनी तटस्थता बनाए रखी है। इस बैनर ने ऋतिक रोशन, आमिर खान तथा सैफ अली खान के साथ भी फिल्में बनाई हैं। उन्होंने सलमान खान को लेने के प्रयास भी किए हैं। फिल्म ‘चक दे इंडिया’ पहले सलमान को ही दी गई थी। ऐसा उद्योग में पहली बार हो रहा है कि पिता यश चोपड़ा और पुत्र आदित्य चोपड़ा निरंतर फिल्में बना रहे हैं। राज कपूर और रणधीर कपूर ने भी ‘मेरा नाम जोकर’, ‘कल आज और कल’, ‘बॉबी’ और ‘धरम करम’ एक ही दशक में बनाई थीं। हालांकि रणधीर कपूर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद केवल ‘हिना’ बनाई।
खबर है कि यश चोपड़ा और आदित्य आमिर खान और शाहरुख खान के साथ दो अलग-अलग फिल्में अगले वर्ष शुरू करने जा रहे हैं। इसके लिए आमिर खान ने अपनी स्वीकृति दे दी है। इस कंपनी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि आदित्य बहुत अच्छे लेखक हैं। उनकी लिखी हुई ‘वीर जारा’ अच्छी फिल्म थी।
इसकी अंतिम रील में शाहरुख द्वारा अदालत में बोला गया लंबा संवाद तो कमाल का लिखा था। इसी कंपनी से फूटी एक शाखा करण जौहर हैं, परंतु उन्होंने तटस्थता कायम नहीं रखी। करण ने शाहरुख खान को अपने ईश्वर की तरह ही बार-बार पूजा है। करण को खूब बतियाने का शौक है, जबकि आदित्य चोपड़ा कभी कुछ बोलते ही नहीं और उनकी यह खामोशी अत्यंत गरिमापूर्ण है। करण जौहर निरंतर उजागर होते रहते हैं और कुछ बयां भी नहीं होता।
आमिर खान ने अपना फैसला पूरी तरह इस बात पर किया है कि उन्हें पटकथा पसंद है। वह फरहान अख्तर जैसे नए फिल्मकार के साथ ‘दिल चाहता है’ केवल पटकथा के आधार पर कर चुके हैं। उन्हें पटकथा पसंद आने का यह अर्थ भी है कि अब उसमें अपना योगदान दिया जा सकता है। इस मामले में वह दिलीप कुमार का अनुकरण करते हैं। विगत साठ वर्षो में संजीव कुमार को छोड़कर सारे अभिनेता दिलीप कुमार से प्रभावित रहे हैं।
यश चोपड़ा एकमात्र फिल्मकार हैं जो उम्रदराज होने के बावजूद सक्रिय हैं और युवा पीढ़ी को समझते हैं। प्राय: बुढ़ाते हुए फिल्मकार युवा पीढ़ी को अनदेखा करते हैं। सिनेमा का सबसे बड़ा दर्शक वर्ग हमेशा युवा लोगों का ही रहा है। आदित्य चोपड़ा ने अनेक युवा निर्देशकों को अवसर दिए हैं, परंतु उनकी अपेक्षाओं पर कोई खरा नहीं उतरा। यशराज फिल्म्स संगीत व्यापार और विदेश वितरण क्षेत्र में सफलता अर्जित नहीं कर पाया और टेलीविजन के क्षेत्र में भी वे विफल रहे हैं। यह आशा की जा सकती है कि टेलीविजन क्षेत्र में अपनी असफलता से सबक लेकर वे दूसरी पारी अवश्य खेलेंगे।
इस कंपनी ने कभी नए सितारे गढ़ने का प्रयास नहीं किया, क्योंकि उन्हें सारे स्थापित सितारे आसानी से उपलब्ध हैं। उदय चोपड़ा को प्रस्तुत करना पारिवारिक काम था, परंतु उद्योग के लिए नए सितारे गढ़ना अलग किस्म का काम है। यशराज कंपनी की निगाह हमेशा बॉक्स ऑफिस पर रहती है जो व्यावहारिक है, परंतु सिनेमा उसके परे भी है और उसकी कोशिश कभी-कभी तो की जानी चाहिए(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,30.10.2010)।
खबर है कि यश चोपड़ा और आदित्य आमिर खान और शाहरुख खान के साथ दो अलग-अलग फिल्में अगले वर्ष शुरू करने जा रहे हैं। इसके लिए आमिर खान ने अपनी स्वीकृति दे दी है। इस कंपनी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि आदित्य बहुत अच्छे लेखक हैं। उनकी लिखी हुई ‘वीर जारा’ अच्छी फिल्म थी।
इसकी अंतिम रील में शाहरुख द्वारा अदालत में बोला गया लंबा संवाद तो कमाल का लिखा था। इसी कंपनी से फूटी एक शाखा करण जौहर हैं, परंतु उन्होंने तटस्थता कायम नहीं रखी। करण ने शाहरुख खान को अपने ईश्वर की तरह ही बार-बार पूजा है। करण को खूब बतियाने का शौक है, जबकि आदित्य चोपड़ा कभी कुछ बोलते ही नहीं और उनकी यह खामोशी अत्यंत गरिमापूर्ण है। करण जौहर निरंतर उजागर होते रहते हैं और कुछ बयां भी नहीं होता।
आमिर खान ने अपना फैसला पूरी तरह इस बात पर किया है कि उन्हें पटकथा पसंद है। वह फरहान अख्तर जैसे नए फिल्मकार के साथ ‘दिल चाहता है’ केवल पटकथा के आधार पर कर चुके हैं। उन्हें पटकथा पसंद आने का यह अर्थ भी है कि अब उसमें अपना योगदान दिया जा सकता है। इस मामले में वह दिलीप कुमार का अनुकरण करते हैं। विगत साठ वर्षो में संजीव कुमार को छोड़कर सारे अभिनेता दिलीप कुमार से प्रभावित रहे हैं।
यश चोपड़ा एकमात्र फिल्मकार हैं जो उम्रदराज होने के बावजूद सक्रिय हैं और युवा पीढ़ी को समझते हैं। प्राय: बुढ़ाते हुए फिल्मकार युवा पीढ़ी को अनदेखा करते हैं। सिनेमा का सबसे बड़ा दर्शक वर्ग हमेशा युवा लोगों का ही रहा है। आदित्य चोपड़ा ने अनेक युवा निर्देशकों को अवसर दिए हैं, परंतु उनकी अपेक्षाओं पर कोई खरा नहीं उतरा। यशराज फिल्म्स संगीत व्यापार और विदेश वितरण क्षेत्र में सफलता अर्जित नहीं कर पाया और टेलीविजन के क्षेत्र में भी वे विफल रहे हैं। यह आशा की जा सकती है कि टेलीविजन क्षेत्र में अपनी असफलता से सबक लेकर वे दूसरी पारी अवश्य खेलेंगे।
इस कंपनी ने कभी नए सितारे गढ़ने का प्रयास नहीं किया, क्योंकि उन्हें सारे स्थापित सितारे आसानी से उपलब्ध हैं। उदय चोपड़ा को प्रस्तुत करना पारिवारिक काम था, परंतु उद्योग के लिए नए सितारे गढ़ना अलग किस्म का काम है। यशराज कंपनी की निगाह हमेशा बॉक्स ऑफिस पर रहती है जो व्यावहारिक है, परंतु सिनेमा उसके परे भी है और उसकी कोशिश कभी-कभी तो की जानी चाहिए(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,30.10.2010)।