हिंदी सिनेमा जगत में रेखा एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अभिनेत्रियों को फिल्मों में परंपरागत रूप से पेश किए जाने के तरीके को बदलकर अपने बिंदास अभिनय से दर्शकों के बीच अपनी खास पहचान बनाई।
10 अक्टूबर 1954 को मद्रास में जन्मी रेखा (मूल नाम भानुरेखा गणेशन) को अभिनय की कला विरासत में मिली। उनके पिता जैमिनी गणेशन (अभिनेता) और मां पुष्पावली जानी मानी फिल्म अभिनेत्री थीं। घर में फिल्मी माहौल से रेखा का रूझान फिल्मों की ओर हो गया और वह भी अभिनेत्री बनने के ख्वाब देखने लगीं।
रेखा ने अपने करियर की शुरूआत बाल कलाकार के रुप में 1966 में प्रदर्शित तेलुगु फिल्म 'रंगुला रतनम' से की। अभिनेत्री के रुप में उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत कन्नड़ फिल्म 'गोदाली सी.आई.डी 999ट से की। फिल्म में उनके नायक की भूमिका सुपरस्टार डा.राजकुमार ने निभाई थी।
हिंदी फिल्मों में रेखा ने 'अनजाना' फिल्म से अपने अभिनय की शुरूआत की। इस फिल्म में अभिनेता विश्वजीत के साथ उनका चुंबन दृश्य विवाद में पड़ गया जिसे देखते हुए फिल्म को सेंसरबोर्ड द्वारा स्वीकृत नहीं किया गया। अरसे बाद यह फिल्म 'दो शिकारी' के नाम से प्रदर्शित हुई। फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई।
अभिनेत्री के रुप में उनके सिने कैरियर की शुरूआत 1970 में प्रदर्शित फिल्म 'सावन भादो' से हुई। फिल्म में उनके नायक की भूमिका नवीन निश्चल ने निभाई। यह फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई और रेखा के अभिनय को भी सराहा गया।
'सावन भादो' की सफलता के बाद रेखा ने 'रामपुर का लक्ष्मण', 'गोरा और काला', 'कहानी किस्मत की', 'नमक हराम', 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' और 'धर्मात्मा' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में भी अभिनय किया। इन फिल्मों को दर्शकों ने पसंद तो किया लेकिन कामयाबी का श्रेय उनके बजाय फिल्म अभिनेताओं को अधिक दिया गया।
वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म 'दो अनजाने' उनके कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। सही मायनों में अभिनेत्री के रुप में उनकी यह पहली फिल्म थी। इस फिल्म में पहली बार उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का मौका मिला। वर्ष 1978 में प्रदर्शित फिल्म 'घर' रेखा के सिने कैरियर के लिए अहम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए वह पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित की गईं।
वर्ष 1978 में ही रेखा की सुपरहिट फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' प्रदर्शित हुई। प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में रेखा ने जोहराबाई को किरदार निभाया। इस फिल्म में उन्हें एक बार फिर अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर मिला। इसमें उनपर फिल्माया गीत 'सलामे इश्क मेरी जां ज़रा कबूल कर लो' सिने दर्शक आज भी नहीं भूल पाए हैं। इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार से नामांकित की गई।
वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म 'खूबसूरत' रेखा की एक और सुपरहिट फिल्म रही। ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गई। वर्ष 1981 मेंरेखा की एक और महत्वपूर्ण फिल्म 'उमराव जान' प्रदर्शित हुई। मिर्जा हादी रूसवा के मशहूर उर्दू उपन्यास 'उमराव जान' पर आधारित इस फिल्म में उन्होंने उमराव जान का किरदार निभाया। इस किरदार को रेखा ने इतनी संजीदगी से निभाया कि सिने दर्शक आज भी उसे भूल नहीं पाए हैं। इस फिल्म के सदाबहार गीत आज भी दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
खय्याम के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले की मदभरी आवाज़ में रचा बसा गीत 'इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं', 'दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए' आज भी श्रोताओं के बीच शिद्दत के साथ सुने जाते हैं। इस फिल्म के लिए रेखा और आशा भोंसले को अपने कैरियर का पहला राष्ट्रीय पुरस्कार और खय्याम को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म 'सिलसिला' रेखा की उल्लेखनीय फिल्मों में शामिल की जाती है। माना जाता है यश चोपडा के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और रेखा के बीच रिश्ते को रूपहले पर्दे पर पेश किया गया। फिल्म टिकट खिड़की पर अधिक कामयाब नहीं रही लेकिन दर्शकों का मानना है कि यह उनकी उत्कृष्ट फिल्मों में एक है।
वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म 'खून भरी मांग' रेखा की सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है। राकेश रौशन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए रेखा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित की गईं और उत्कृष्ट निर्देशन के लिए राकेश रौशन सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किए गए(हिंदुस्तान,दिल्ली,9.10.2010)।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
ReplyDeleteया देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी
रेखा..सीधी सरल,आडी तिरछी,वक्र..पर बस रेखा.जिसके बिना ना शब्दों की रचना संभव ना किसी चित्र की.
ReplyDeleteभद्दी बदसूरत सी..ऐसी निखरी कि ख़ूबसूरती और अभिनय की मिसाल बन गई.भारतीय खूबसूरत महिला का प्रतिनिधित्त्व करती रेखा जिनका 'ग्रेसफुल' पहनावा मुझे भाता है महारानी गायत्री देवी के बाद.