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Saturday, October 23, 2010

फ़िल्मकार की बीन पर सर्पनृत्य

मल्लिका शेरावत ने हॉलीवुड में बनी ‘हिस्स’ (सांप की फुफकार) नामक फिल्म में अभिनय किया है, जो भारत में प्रदर्शित हुई है। इस तरह की फिल्म को प्रदर्शन के लिए अमेरिका में सिनेमाघर नहीं मिलेंगे। उन्हें हिंदुस्तानी फिल्में दिखाने वाले सिनेमाघरों से संतोष करना होगा। मल्लिका का सांप के रूप में हॉलीवुड में सेंध मारने का सपना शेखचिल्ली के सपनों की तरह है।

हॉलीवुड में बहुत बड़े बजट की ‘एनाकोंडा’ सरीखी फिल्में बनती हैं। तमाम देशों में सांप को लेकर अनेक किंवदंतियां गढ़ी गई हैं और सांप धार्मिक प्रतीक भी है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में भी दो सांपों का गलबहियां करने का चित्र प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ग्रीक किंवदंती है कि एक सांप पत्तियों के द्वारा अपने बीमार साथी का इलाज कर रहा है।

हमारे सिनेमा ने धार्मिक आख्यानों पर फिल्में बनाकर अपने प्रारंभिक दौर में जड़ें जमाने के बाद अपने ही आख्यान गढ़े। शशधर मुखर्जी ने वैजयंती माला और प्रदीप कुमार को लेकर ‘नागिन’ बनाई, जिसमें सपेरे की बीन की ध्वनि कल्याणजी-आनंदजी ने अपने नए आयात किए क्ले वायलिन पर रची। इस फिल्म के संगीतकार हेमंत कुमार थे। उस दौर में इस फिल्म का ‘मन डोले मेरा तन डोले, मेरे दिल का गया करार..’ गीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ। यह भ्रम रचा गया कि सांप बीन की ध्वनि पर डोलता है। हकीकत यह है कि सांप केवल धरती के कंपन को महसूस करता है और अन्य प्राणियों की तरह उसके कान नहीं होते। दरअसल सांप सपेरे के हिलने-डुलने पर प्रतिक्रिया देता है।

इसी तरह कीड़े-मकोड़े, मेंढक इत्यादि खाने वाला सांप दूध नहीं पीता, परंतु हमारी किंवदंती के अनुरूप नागपंचमी पर उसे दूध पिलाया जाता है। भारतीय सिनेमा ने तो हद कर दी। एक ऐसी ही फिल्म में अरुणा ईरानी सांप को अपना दूध पिलाती हैं और वह खलनायक को मारकर मां के दूध का कर्ज उतारता है। यह भी भ्रम रचा गया है कि सांप की आंख में चित्र कैद हो जाता है और वह बदला लेता है। इसी भ्रम पर राजकुमार कोहली ने एक फिल्म बनाई थी। इस फिल्म में जीतेंद्र, सुनील दत्त सरीखे कलाकार थे और रीना राय बदला लेने वाली नागिन बनी थीं।

सांप आधारित फिल्मों में एक मोड़ उस समय आया जब हरमेश मल्होत्रा ने ऋषि कपूर और श्रीदेवी को लेकर ‘नगीना’ (1976) बनाई, जिसमें एक नागिन स्त्री रूप धरकर विवाह करती है और अपने पति के जीवन की रक्षा करती है गोयाकि सांप की किंवदंती के साथ सती सावित्री की कथा भी जोड़ दी गई। इस फिल्म को बॉक्स-ऑफिस पर भारी सफलता मिली। इसी तरह यह भी भ्रम है कि सांप के माथे पर एक मणि होती है। इच्छाधारी नाग किसी भी स्वरूप में प्रस्तुत हो सकता है। धार्मिक आख्यानों में एक नागलोक की कल्पना भी है।

इस धरती पर मनुष्य के बाद सबसे अधिक किंवदंतियां सांप को लेकर रची गई हैं। साहित्य में भी रचनाएं हैं। रबिंद्रनाथ टैगोर की एक कथा में एक अत्यंत लोभी व्यक्ति गलतफहमी के कारण अपने ही पोते को तलघर में बंद कर देता है क्योंकि उसे कहा गया है कि इस तरह की बलि वाला अबोध बालक सांप बनकर उसके खजाने की रक्षा करेगा। इस कहानी का प्रभाव इतना जबरदस्त है कि अंतिम पंक्तियां पढ़कर दिल थम सा जाता है। एक कहानी में सपेरे का विवाह हो जाता है तो डाह की मारी उसकी पाली हुई नागिन उसे ही डस लेती है।

यह भी माना जाता है कि नागिन एक कतार में दर्जनों अंडे देती है और पेट खाली होने पर वापसी में वह अपने ही अंडों को खा जाती है। किसी कारण से कतार से लुढ़के कुछ अंडे बच जाते हैं। सिनेमा भी टेक्नोलॉजी की सर्पिणी का ऐसा ही अंडा है, जो कतार से लुढ़कने के कारण बच गया है(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,23.10.2010)।

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