एक तरफ उम्र की ढलान पर फिसलती शिल्पा शेट्टी,प्रीति जिंटा और रानी मुखर्जी कह रही हैं कि उनकी पारी अभी समाप्त नहीं हुई है। दूसरी ओर उनसे कहीं अधिक वय वाली जीनत अमान फिल्म 'डूयूनो वाय न जाने क्यों' से वापसी कर रही हैं। 'उमराव जान' रेखा भी टेलीविजन पर एक कार्यक्रम करने जा रही हैं। हर वह राह जिस पर अमिताभ बच्चन चलते हैं,रेखा को उसे आजमाना ही है। कुछ सिलसिले हमेशा बदस्तूर जारी रहते हैं। बाबूराम इशारा की 1966 में प्रदर्शित फिल्म 'चेतना' में युवा तवायफ रेहाना सुल्तान को वृद्ध तवायफ नादिरा कहती हैं,'मैं तुममें अपना गुजरा हुआ कल देखती हूं और तुम मुझमें अपना आने वाला कल देख सकती हो। अभिनेत्रियां तवायफ नहीं हैं, परंतु मनोरंजन उद्योग में वय पूंजी होती है। स्वयं जीनत अमान कहती हैं कि महिला कलाकारों की एक 'एक्सपायरी डेट' होती है, परंतु पुरुष कलाकार लंबी पारी खेलते हैं।
दरअसल हमारे सिनेमा में ऐसे लेखक-फिल्मकार नहीं हैं जो चालीस पार की प्रतिभाशाली अभिनेत्री के लिए केंद्रीय भूमिका लिख सकें। प्रतिभाशाली चालीस पार महिला चालीस कैरेट का हीरा होती है,परंतु जौहरी कहां से खोजेंगे?गुलजार ने चालीस पार की सुचित्रा सेन को लेकर कमलेश्वर के उपन्यास पर फिल्म 'आंधी'बनाई थी। इसमें संजीव कुमार और सुचित्रा सेन की जुगलबंदी देखते ही बनती थी। दरअसल मनोरंजन क्षेत्र मुर्गियों के दड़बे की तरह है,जिसका पट खुलते ही अर्थात अवसर मिलते ही चूजे बाहर आने लगते हैं। इस खेल में प्राय: सफलता मिलते ही तेज रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं और कलाकार स्वयं को तेजी से खर्च करने लगता है। वह इस प्रक्रिया को धन कमाना कहता है। प्रतिस्पर्धा का तनाव और काम का दबाव भीतरी ताकत को निरंतर आजमाता रहता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि सफलता आपके चारों ओर भ्रम रचती है और प्राय: युवा शरीर की नुमाइश को अभिनय प्रतिभा समझ लिया जाता है। जीनत अमान सौंदर्य प्रतियोगिता के रैंप पर चलकर अपने इंच टेप से नपे-तुले जिस्म को लेकर अभिनय क्षेत्र में आई थीं। उस दौर में उनके द्वारा प्रस्तुत खुलापन भारतीय दर्शक के लिए नया अनुभव था। उस दौर के दर्शक ने पहली बार नायिका का चेहरा देखने से पहले उसका वक्ष और कमर देखना शुरू किया। इसके साथ ही वह उस रूमानी नजाकत से बाहर आया जिसमें नायक कहता है कि अपने खूबसूरत पैर जमीन पर मत रखना। (मसलन, फिल्म 'पाकीजा') जीनत के कामयाब होने के दौर में ही परवीन बॉबी ने भी सफलता अर्जित की। उसी दौर में क्लासिकल सौंदर्य के मानदंड पर खरी राखी ने भी कदम रखा था। जिस्म की नुमाइश के उस दौर में उन्होंने अपने चेहरे और आंखों से बाजी मार ली थी। मौजूदा दौर की करीना कपूर,दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा सुंदर होने के साथ ही जिस्म की नुमाइश से कोई परहेज नहीं करतीं। यह दौर ही कुछ ऐसा है कि सुंदरता और प्रतिभा होने पर भी चमड़ी दिखाए बिना दमड़ी नहीं मिलती(मैट्रिक्स,दैनिक भास्कर,21.10.2010)।
मजा आ गया।
ReplyDeleteआप हरफनमौला हैं भाई !
ReplyDeleteसत्य वचन
ReplyDeleteबधाई