तमाम भोजपुरी एलबम में अपने चुटीले गीतों की वजह से सुर्खियों में आए गीतकार डॉ. प्रमोद कुमार पेशे से प्राध्यापक हैं। गीतकार के रूप में सफलता अर्जित करने के बाद अब वे हिंदी फिल्मों के पटकथा लेखक भी बन गए हैं। अभी वे हिंदी फिल्म देवी मेरा नाम की पटकथा लिखने में व्यस्त हैं। पिछले दिनों प्रमोद कुमार से बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश..
प्राध्यापक, गीतकार और अब पटकथा लेखन। कैसा लगता है?
हर चीज एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। कॉलेज में शिक्षक हूं और कॉलेज के बाहर गीतकार और कहानीकार। कम लोग जानते होंगे कि मैं गीतकार के साथ-साथ कहानीकार भी हूं। लघुकथाओं का एक संग्रह बात आधी सी प्रकाशित हो चुका है। मैं अपने हर काम से खुश हूं और आशा है कि खुशियां मेरा साथ हमेशा देंगी।
फूहड़पन और अश्लीलता फिल्मों में खूब है?
आज बाजारवाद देश और दुनिया पर हावी है। आज हर चीज का बिकना ही एक मात्र मूल्य है। अब यदि अश्लीलता और फूहड़पन बिक रहा है, तो इसे रोकना मुश्किल है। समाज की रुचि जब बदलेगी, तभी यह रुकेगा, वर्ना नहीं।
देवी मेरा नाम को लेकर आपकी चर्चा है?
मैं इसकी पटकथा और संवाद लिख रहा हूं। यह एक अलग तरह की हिंदी फिल्म साबित होगी। आज हर भाषा में अच्छी और बुरी तमाम फिल्में बन रही हैं। जब हमने फिल्मों में प्रवेश किया है, तो हमारी एक अलग पहचान तो होनी ही चाहिए यहां। आज की फिल्मों से मैं संतुष्ट नहीं हूं। देवी मेरा नाम की जो स्क्रिप्ट है, उस पर मैं मन से काम कर रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि यह अलग फिल्म साबित होगी।
स्क्रिप्ट फिट है, तो फिल्म के हिट होने की उम्मीद की जाए?
स्क्रिप्ट के साथ-साथ यदि अभिनेता और निर्देशक भी कमाल के हों, तो फिर सोने पर सुहागा वाली बात चरितार्थ हो सकती है।
फिल्मों का दौर, यानी तब और अब के बारे में कुछ कहेंगे?
पहले राजकपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजकुमार, गुरुदत्त, बी आर चोपड़ा, मनोज कुमार, कमाल अमरोही, मीना कुमारी जैसे दिग्गजों की फिल्म जगत में तूती बोलती थी। एक से बढ़कर एक संगीतकार-गीतकार और गायक अपनी कला से लोगों को मुग्ध करते थे। वैसा युग तो अब शायद ही आए। कला की बारीकियां उनकी आत्मा में बसती थीं। आज की विडंबना यह है कि साधारण प्रतिभा के लोग ही ऊपर आ गए हैं। यही वजह है कि आज हिट
फिल्मों की लाइफ चंद दिनों की हो गई है।
कोई ख्वाब है?
खुद को औरों से अलग साबित करना चाहता हूं। यही मेरा ख्वाब है(दैनिक जागरण)।
प्राध्यापक, गीतकार और अब पटकथा लेखन। कैसा लगता है?
हर चीज एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। कॉलेज में शिक्षक हूं और कॉलेज के बाहर गीतकार और कहानीकार। कम लोग जानते होंगे कि मैं गीतकार के साथ-साथ कहानीकार भी हूं। लघुकथाओं का एक संग्रह बात आधी सी प्रकाशित हो चुका है। मैं अपने हर काम से खुश हूं और आशा है कि खुशियां मेरा साथ हमेशा देंगी।
फूहड़पन और अश्लीलता फिल्मों में खूब है?
आज बाजारवाद देश और दुनिया पर हावी है। आज हर चीज का बिकना ही एक मात्र मूल्य है। अब यदि अश्लीलता और फूहड़पन बिक रहा है, तो इसे रोकना मुश्किल है। समाज की रुचि जब बदलेगी, तभी यह रुकेगा, वर्ना नहीं।
देवी मेरा नाम को लेकर आपकी चर्चा है?
मैं इसकी पटकथा और संवाद लिख रहा हूं। यह एक अलग तरह की हिंदी फिल्म साबित होगी। आज हर भाषा में अच्छी और बुरी तमाम फिल्में बन रही हैं। जब हमने फिल्मों में प्रवेश किया है, तो हमारी एक अलग पहचान तो होनी ही चाहिए यहां। आज की फिल्मों से मैं संतुष्ट नहीं हूं। देवी मेरा नाम की जो स्क्रिप्ट है, उस पर मैं मन से काम कर रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि यह अलग फिल्म साबित होगी।
स्क्रिप्ट फिट है, तो फिल्म के हिट होने की उम्मीद की जाए?
स्क्रिप्ट के साथ-साथ यदि अभिनेता और निर्देशक भी कमाल के हों, तो फिर सोने पर सुहागा वाली बात चरितार्थ हो सकती है।
फिल्मों का दौर, यानी तब और अब के बारे में कुछ कहेंगे?
पहले राजकपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजकुमार, गुरुदत्त, बी आर चोपड़ा, मनोज कुमार, कमाल अमरोही, मीना कुमारी जैसे दिग्गजों की फिल्म जगत में तूती बोलती थी। एक से बढ़कर एक संगीतकार-गीतकार और गायक अपनी कला से लोगों को मुग्ध करते थे। वैसा युग तो अब शायद ही आए। कला की बारीकियां उनकी आत्मा में बसती थीं। आज की विडंबना यह है कि साधारण प्रतिभा के लोग ही ऊपर आ गए हैं। यही वजह है कि आज हिट
फिल्मों की लाइफ चंद दिनों की हो गई है।
कोई ख्वाब है?
खुद को औरों से अलग साबित करना चाहता हूं। यही मेरा ख्वाब है(दैनिक जागरण)।
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