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Wednesday, October 6, 2010

बिग बॉसःअवचेतन की आदिम युगनुमा प्रयोगशाला

बिग बॉस का चौथा संस्करण शुरू होने के महज चार दिन के अंदर ही समस्याओं से घिर गया है क्योंकि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने दो पाकिस्तानी कलाकारों के भाग लेने को लेकर इसे नहीं चलने देने की धमकी दी है। इस रिएलिटी शो पर,04 अक्टूबर,2010 के दैनिक भास्कर में जयप्रकाश चौकसे जी ने भिन्न नज़रिए से विचार किया है। लिखते हैं-
"कलर्स टेलीविजन के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनी एंडेमॉल की मुंबई शाखा ‘बिग बॉस’ का चौथा सीजन भी बना रही है। इस बार इस कार्यक्रम के संचालक हैं सलमान खान। इसकी शूटिंग मुंबई के निकट पनवेल में हो रही है। कलर्स टेलीविजन ने एक पुरानी बंद वॉल बेयरिंग फैक्ट्री को लीज पर लेकर उसमें बिग बॉस के लिए भव्य और सुरुचिपूर्ण सेट लगाया है।

डेनमार्क के किसी व्यक्ति ने इस अभिनव अवधारणा को जन्म दिया और दुनिया के अनेक देशों में यह कार्यक्रम वर्षो से दिखाया जा रहा है। एक मकान में आमतौर पर तेरह, परंतु इस सीजन में चौदह मनुष्य पचासी दिनों तक साथ रहेंगे। इस मकान में कोई दीवार घड़ी नहीं है और मोबाइल का प्रयोग भी प्रतिबंधित है। इन चौदह लोगों को आपस में तय करके ही घर के सारे काम करने हैं और प्रतिदिन उन्हें रसद मिलेगी, परंतु किसी एक सदस्य की गलती पर रसद कम कर दी जाती है।

सभी लोग एक ही हॉल में सोते हैं और उनके बीच टॉयलेट और बाथरूम भी केवल चार हैं। इस कार्यक्रम का सबसे भयावह और शायद सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि पूरे मकान में ज्ञात-अज्ञात जगह पर छयालीस कैमरे लगे हैं, जो निरंतर उनकी सारी गतिविधियों को रिकॉर्ड कर रहे हैं। केवल बाथरूम और शौचालय इस कैमरा निगरानी से मुक्त हैं। ये निरंतर देखे जाने का ख्याल मन में अनजान भावों, भय और ग्रंथियों को जन्म दे सकता है। दरअसल यह एक मानवीय अवचेतन प्रयोगशाला है, जिसमें से गुजरने पर एक व्यक्ति पूरी तरह से बदल सकता है। यह कमोबेश आपकी भीतरी शक्ति की परीक्षा है।

हम सारा जीवन स्वयं से बचने के लिए जाने कितने बहाने खोज लेते हैं। अपने आप से निर्मम होकर सामना न करना पड़े, इसके हजार जतन जोड़ लेते हैं। सच तो यह है कि जीवन ऊर्जा का अधिकतम इसी बहानेबाजी में नष्ट हो जाता है। भोजपुरी सिनेमा के सुपरनायक रवि किशन ने इसके पहले सीजन में भाग लिया और आज निहायत ही ईमानदारी से वह यह स्वीकार करते हैं कि उस दौर में सफलता उनके सिर चढ़ गई थी और तमाम व्यक्तिगत रिश्ते उलट गए थे, परंतु इस अनुभूत अनुभव से गुजरकर वह आज बेहतर इंसान हो गए हैं।

सीमित लोगों के साथ एक ही बंद घर में इतने दिनों तक साथ रहते हुए जबकि बाहरी दुनिया से आप पूरी तरह कटे हुए हैं, एक अजब मन:स्थिति को जन्म दे सकता है। आपको बंद मकान में गुजरते हुए समय को जानने का उपाय नहीं है, अखबार नहीं है, टेलीविजन नहीं है और स्वजन पर क्या बीत रही है, इससे भी अनजान रहना मन को विचलित कर सकता है। इससे जूझने के लिए भीतरी ताकत, संयम और संतुलन की आवश्यकता है। आप स्वयं को एक प्रेशर कुकर में बंद महसूस कर सकते हैं जिसका ताप आपके भीतर छुपी तमाम भावनाओं और विचारों को इस तरह उद्वेलित कर सकता है कि अदृश्य सेफ्टी वॉल्व की तलाश में आप पगला सकते हैं।

एंडेमॉल कंपनी के तीन सौ से अधिक लोगों की मुस्तैद और सक्षम यूनिट इस कार्यक्रम को बना रही है। उन कैमरों के निरंतर संचालन और निगरानी के लिए ये लोग आठ-आठ घंटे की पारियों में काम करते हैं। एंडेमॉल के मुंबई शाखा के प्रमुख दीपक धर और कलर्स टेलीजिवन की अश्विनी के संयुक्त नेतृत्व में यह कार्यक्रम बनाया जा रहा है।

यह सच है कि सभी प्रतियोगियों को धन मिल रहा है, परंतु जीते रहते हुए अपने अवचेतन के पोस्टमार्टम के लिए तैयार होना आसान फैसला नहीं है। इस आधुनिक युग में इस तरह का काम आपको आदिम युग की शुरुआती कम्युनिटी जीवन का अनुमान लगाने का मौका देता है। इस तरह यह कार्यक्रम सदियों की छलांग भी लगाता है।"

2 comments:

  1. बड़े जिगरे का काम है इस कार्यक्रम को झेलना.

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  2. आपसे सहमत। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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