फिल्मकार शंकर को अधिकतम से भी संतोष नहीं होता, इसलिए वे अधिकतम की भी पुनरावृत्ति करते हैं। ‘रोबोट’ में रजनीकांत वैज्ञानिक हैं और अपनी ही शक्लोसूरत का रोबोट रचते हैं, अर्थात प्रशंसकों के लिए दो रजनीकांत प्रस्तुत हैं। रोबोट रजनी अपनी ही छवि में रोबोट की फौज खड़ी करता है। अगर रजनी तरल होते तो शंकर उनका संप्रक्त घोल तैयार करते। उनकी फिल्म शैली इस कदर रजनीकांतमय है कि नायक भी वही, खलनायक भी वही और एक रूप में अनेक रूप छुपे हैं।
अल्फ्रेड हिचकॉक ने अपनी फिल्म के एक दृश्य में चारों दीवारों पर आइने लगाए थे, जिनमें पात्र की मल्टीपल छवियां उभरती हैं। ब्रूस ली की फिल्म में इसी दृश्य से प्रेरित एक कमाल का एक्शन दृश्य था। शंकर ने अपनी फिल्म में आइने तो नहीं रखे, परंतु जिस तरफ देखो उस तरफ रजनीकांत ही नजर आते हैं। इस फिल्म में अतिरेक का वर्णन संभव नहीं है और इतनी गोलियां चली हैं, जितनी दूसरे विश्वयुद्ध में भी नहीं चली होंगी। एचजी वेल्स ने लगभग दो सदी पहले अपनी कहानी में एक रोबोट को अपने सृजनकर्ता वैज्ञानिक की लड़की से प्रेम करते दिखाया था। वह बेचारी रोबोट के सीने से लगती है, जिसके सुरक्षा प्रोग्राम में वह सीने से लगने वालों का चूरा कर देता है।
अपनी बेटी की मृत्यु के बाद वैज्ञानिक रोबोट के पुर्जे-पुर्जे का परीक्षण करता है और उसे ज्ञात होता है कि प्रयोगशाला के नीचे बगीचे में प्रेमियों की बातचीत रोबोट के स्मृति पटल पर अंकित हो गई थी। बहरहाल शंकर ने यह कहानी शायद नहीं पढ़ी, परंतु उनके नायक द्वारा रचा गया रोबोट भी नायिका से प्रेम करने लगता है। नष्ट किए जाने पर खलनायक वैज्ञानिक उसके पुन: निर्माण के समय हिंसा की ‘चिप’ उसके विचार तंत्र में डाल देता है। शेष सारी कथा गुमराह रोबोट और सृजनकर्ता के युद्ध को प्रस्तुत करती है।
दरअसल इस कथा पर एक सर्वकालीन महान फिल्म की रचना हो सकती थी। इसमें मनुष्य के द्वारा बनाई गई मशीन के गुलाम हो जाने का संघर्ष प्रस्तुत किया जा सकता था। शंकर के रजनीफोबिया ने इसे अधिकतम के अंतहीन दोहराव की कहानी बना दिया। वीडियो पर बच्चे वॉर गेम्स खेलते हैं, यह उसी का फिल्मी स्वरूप है। शायद कुछ शक्तियां यह चाहती हैं कि अगला विश्वयुद्ध वॉर गेम्स की तरह ही हो और केवल छवियां आपस में लड़ें।
फिल्म में नदी के किनारे रोबोट, नायक और नायिका के बीच एक कमाल का दृश्य है, जिसमें रोबोट कहता है कि उसे मनुष्य की तरह बनाने के प्रयास में प्रोग्राम्ड भावनाएं दी गईं और अब वह नायिका के इश्क में पागल हो चुका है। उसका दावा है कि वह बेहतर पति साबित होगा और बच्चे गोद भी लिए जा सकते हैं। रोबोट स्वीकार करता है कि वह पुरुष की तरह नायिका के साथ हमबिस्तर नहीं हो सकता परंतु प्रेम सेक्स के परे जाता है। यह दृश्य अद्भुत है। फिल्म का अंतिम दृश्य ‘बायसेंटेनियल मैन’ की तरह है जिसमें रोबोट की मानवीय प्रेमिका से शादी को कानूनी मान्यता उस समय मिलती है, जब उसकी एक्सपायरी डेट आ जाती है।
फिल्म के विशेष प्रभाव वाले दृश्य विदेशी तकनीशियनों की मदद से विश्व स्तर के रचे गए हैं। इस बार रहमान ने साथ नहीं दिया और स्वानंद किरकिरे ने इस बात का लाभ उठाया है कि फिल्मकार और संगीतकार को हिंदी नहीं आती। मोहनजोदड़ो और किलीमंजारो इत्यादि शब्दों के इस्तेमाल से सिर दर्द होने लगता है। सदियों से प्रचलित है कि एक आदमी ने दूसरे से पूछा कि क्या वह भूत में यकीन करता है और नकारात्मक उत्तर पाते ही पूछने वाला गायब हो जाता है। अब शायद पूछा जाए कि क्या कोई संवेदनशील रोबोट की अवधारणा में यकीन करता है और नकारात्मक जवाब मिलते ही रोबोट उसका चुंबन ले ले।
शंकर के रोबोट के मशीनी दिल में भी तूफान उठता है, जब ऐश्वर्या उसके गाल पर मासूम सा चुंबन लेती हैं। रजनीकांतमय यह संप्रक्त घोल नुमा फिल्म दक्षिण में राउंड द क्लॉक दिखाई जा रही है और सफलता के ऐसे कीर्तिमान रच रही है जो कोई रोबोट नायक ही रच सकता है। रजनीकांत भी प्रशंसकों द्वारा रचे रोबोट हैं(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,6.10.2010)।
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