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Tuesday, October 12, 2010

भाषा के टूटते बंधन

कुछ दिन पहले की बात है। मैं यूं ही टीवी चैनल बदल रहा था कि तभी मैंने एक दृश्य देखा। दिल्ली का एक बच्चा अपने पिता की गोद में बैठा था और वह कह रहा था कि उसने रजनीकांत की फिल्म रोबोट देखी है।

उसे वह इतनी पसंद आई कि वह रजनीकांत का फैन बन गया है। कुछ और हिंदीभाषी दर्शकों ने भी इसी तरह की राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उन्होंने फिल्म का तमिल संस्करण देखा था और उसका एक भी शब्द पल्ले न पड़ने के बावजूद उन्होंने फिल्म का पूरा मजा उठाया।

एक अन्य व्यक्ति ने अपने दोस्त का किस्सा सुनाया, जिसने पोरबंदर में रोबोट का तमिल संस्करण देखने के लिए 50 किलोमीटर का सफर तय किया था। क्या इससे पहले आपने कभी यह सुना था कि कोई तमिल फिल्म गुजरात में रिलीज हो? इस फिल्म में तकनीक के बेहतरीन प्रयोग ने इसे वैश्विक अपील दी है। रोबोट और रजनीकांत की पिछली फिल्म शिवाजी द बॉस ने भाषा के बंधनों को तोड़ दिया है।

अब जरा कुछ आंकड़ों पर गौर करें। रोबोट को दुनियाभर में 2250 स्क्रीनों में रिलीज किया गया था। फिल्म को तमिलनाडु में 500 स्क्रीन और आंध्रप्रदेश में 350 स्क्रीन में रिलीज किया गया था, लेकिन शायद आपको यह सुनकर विश्वास नहीं होगा कि उत्तरी भारत में रोबोट को 700 स्क्रीन में रिलीज किया गया है।

यह फिल्म तीन भाषाओं में बनाई गई है। हिंदी में इसका शीर्षक रोबोट है तो तमिल और तेलुगु में इसे इंधीरन शीर्षक से रिलीज किया गया है। रोबोट भारतीय सिने इतिहास की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों की पांत में शामिल हो सकती है। बताया जाता है कि पहले सप्ताह में ही रोबोट ने 117 करोड़ रुपए कमा लिए थे।

लेकिन अगर कमाई के आंकड़ों की बात न भी करें, तो भी रोबोट को इस बात के लिए तो महत्व दिया ही जा सकता है कि उसने भारतीय फिल्म निर्माण के क्षेत्र में नया सूत्रपात किया है। और वह है उत्तर और दक्षिण के फासले को लगभग खत्म कर देना।

एक मायने में यह रजनीकांत की बहुआयामी पहचान के कारण संभव हो सका है। रजनीकांत बेंगलुरू में महाराष्ट्रीयन माता-पिता के घर जन्मे थे और उनका वास्तविक नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है। इसीलिए हमने हाल ही में वे तस्वीरें देखी थीं, जिनमें शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे इस सुपरस्टार को गले लगा रहे हैं।

रजनीकांत ने अपने प्रारंभिक जीवन में खूब संघर्ष किया है। उन्होंने कुली और बस कंडक्टर के रूप में भी काम किया है। लेकिन अभिनय के प्रति अपने जुनून के चलते उन्होंने मद्रास फिल्म इंस्टिटच्यूट से अभिनय का कोर्स किया और उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रजनीकांत की स्टारडम यह साबित करती है कि बस कंडक्टर जैसा एक आम आदमी भी मेहनत, लगन, सकारात्मक रवैए और थोड़े से भाग्य के सहारे कामयाबी हासिल कर सकता है।

तमिलों की जिन पीढ़ियों ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का विरोध किया था, वे शायद अब खुद से कह रही होंगी : ‘हमने हिंदीभाषियों को खुद पर हावी नहीं होने दिया, इसके बावजूद देखिए रजनीकांत ने क्या कर दिखाया है। तमिलों द्वारा तमिलों के लिए बनाई गई फिल्म दिल्ली में सुपरहिट होती है। इससे क्या फर्क पड़ता कि कुछ स्थानों में इस फिल्म को हिंदी में डब करके रिलीज करना पड़ा है?’

जाहिर है, 2010 का भारत वही नहीं है, जो वह १९६क् से लेकर 1980 के दशकों में हुआ करता था। यह वह दौर था, जब हिंदी को थोपे जाने से नाराज तमिल बसें फूंक रहे थे और आत्महत्याएं कर रहे थे। अगर हम रोबोट की स्टारकास्ट पर ही एक नजर डालें तो समझ जाएंगे कि हम उस पुराने दौर को कितना पीछे छोड़ चुके हैं।

खुद रजनीकांत का संबंध महाराष्ट्रीयन, कन्नड़ और तमिल संस्कृतियों से है। फिल्म की हीरोइन ऐश्वर्या राय मैंगलोर की हैं। उन्होंने जिस व्यक्ति से विवाह किया, उनके दादा उत्तरप्रदेश और पंजाब की संस्कृति से वास्ता रखते थे, जबकि उनकी मां बंगाली हैं। फिल्म के विलेन डैनी डेंजोंग्पा सिक्किम के हैं। फिल्म के संगीतकार एआर रहमान मुस्लिम हैं, जबकि उनका जन्म का नाम दिलीप कुमार मुदलियार है।

इंधीरन तमिलों के लिए बनाई गई फिल्म है, लेकिन उसके मुख्य कलाकार भारत के विभिन्न क्षेत्रों से हैं। एक अर्थ में यह फिल्म बताती है कि भारतीय चाहे किसी भी प्रदेश के हों, लेकिन उनके बीच एकता का सूत्र हमेशा रहेगा।

भारत में कुछ भी विभाजित या अलग-थलग नहीं हो सकता। हमें उन कारणों की तलाश करनी चाहिए जो हमें आपस में जोड़ते हैं। सदियों से विदेशी आक्रांताओं और शासकों ने हमारी राष्ट्रीय पहचान को छिन्न-भिन्न करने की कोशिश की, लेकिन हम एक बने रहे।

शायद आप पूछें क्या बदलाव आया है? मुझे लगता है इस बदलाव की शुरुआत तब हुई थी, जब भारत में सैटेलाइट टीवी आया। प्रभुदेवा जैसे चेन्नई मूल के डांसरों की लोकप्रियता ने भाषा के बंधनों को तोड़ने की शुरुआत की। सैटेलाइट टीवी के कारण ही तमिलों को हिंदी चैनलों से परिचित होने का मौका मिला।

भारत का हर प्रदेशवासी दूसरी भाषाओं और संस्कृतियों की उन विशेषताओं से परिचित हुआ, जो उसकी भाषा-संस्कृति में नहीं थीं। जब तमिलनाडु में सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र विकसित हुआ और विदेशी निवेश होने लगा तो चेन्नई में बहुत सारे गैर तमिलभाषी तकनीशियनों की जरूरत महसूस की जाने लगी। इस तरह भी विभिन्न संस्कृतियों का आपस में मेलजोल हुआ।

आर्थिक सुधारों और विदेश यात्रा के सस्ते साधनों की उपलब्धता के कारण एक वृहत विश्वदृष्टि विकसित हुई। भाषा के आधार पर राज्यों का विभाजन करने के जो दुष्प्रभाव हुए थे, उनसे उबरने में इन परिवर्तनों ने हमारी मदद की।

जब हम बदलाव के कारणों की बात कर रहे हों तो इसमें वित्तीय क्षेत्र की अनदेखी नहीं की जा सकती। फिल्म प्रोडच्यूसरों को लगा कि यदि १६२ करोड़ में फिल्म बनाकर देशभर में रिलीज की जाए तो इससे खूब मुनाफा कमाया जा सकता है। कोई भी प्रोडच्यूसर अपनी फिल्म को चार प्रदेशों तक ही सीमित क्यों रखना चाहेगा, जब उसका हिंदी संस्करण बनाकर उसे १५ राज्यों के साथ ही विदेशों में भी दिखाया जा सकता है?

मैं अपनी पांच हजार साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व का अनुभव करता हूं। यह एक ऐसी सभ्यता की विरासत है, जिसमें हर क्षेत्र के वासी अपनी परंपराओं का पालन करने के साथ ही एक वृहत्तर भारतीय संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा बने रह सकते हैं। आधुनिक मार्केटिंग मुहावरे का इस्तेमाल करते हुए मैं तो यही कहना चाहूंगा : थिंक लोकल, एक्ट ग्लोबल यानी स्थानीय सोच रखें और वैश्विक कार्य करें(संजीव नय्यर,दैनिक भास्कर,12.10.2010)।

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