विगत कुछ समय से बॉलीवुड सितारे अपनी फिल्मों के प्रदर्शन पूर्व प्रचार के लिए टीवी कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। अगर फिल्म के प्रचार का मामला नहीं हो तो इस तरह के कार्यक्रम में जाने के लिए यही सितारे मोटी रकम मांगते हैं। कई बार प्रचार के लिए किए गए कार्यक्रम का प्रसारण फिल्म के असफल होने के बाद होता है। इससे बेहद हास्यास्पद स्थिति बनती है।
इस तरह के प्रकरणों में फिल्म उद्योग के लोगों के व्यक्तिगत झगड़े और पूर्वाग्रह भी बाधा खड़ी करते हैं। खबर है कि ऐश्वर्या राय बच्चन अपनी अभिनीत फिल्म ‘एक्शन रीप्ले’ के प्रचार के सिलसिले में ‘केबीसी 4’ में शामिल नहीं हुईं। कारण बताया जा रहा है कि इसमें जीती हुई राशि सलमान खान की ‘बीइंग ह्यूमन’ फॉउंडेशन को दिए जाने का फैसला अक्षय कुमार और निर्माता विपुल शाह पहले ही कर चुके थे।
गौरतलब है कि शो के संचालक अमिताभ बच्चन ने इस पर कोई एतराज नहीं जताकर अपनी गरिमा बनाए रखी। यह भी संभव है कि बहू होने के नाते ऐश्वर्या नियमानुसार कार्यक्रम में नहीं आ सकती हों। यह भी खबर है कि कभी अमिताभ बच्चन के अति प्रचारित ‘छोटे भैया’ अमर सिंह सलमान खान संचालित ‘बिग बॉस 4’ में आना चाहते हैं।
इसी तरह संजय लीला भंसाली को उनकी पहली दो फिल्मों में सहायता करने वाले सलमान खान को ‘बिग बॉस’ में अपनी फिल्म ‘गुजारिश’ का प्रचार करने में नायिका ऐश्वर्या राय के होने से संकोच होगा। गुजरा हुआ वक्त गुजरकर भी नहीं गुजरता। संबंध टूटने के बाद भी सामाजिक-सार्वजनिक मुलाकातें की जा सकती हैं। मौजूदा संबंध मजबूत हों तो विगत के गलियारों की ध्वनियां कुछ नहीं कर सकतीं। शायद मीडिया के अनगिनत दोहराव और मनमानी व्याख्या के खौफ से लोग मिलने से कतराते हैं।
बाजार और विज्ञापन के इस युग में किताबों के विमोचन में भी फिल्म कलाकारों या सुप्रसिद्ध लोगों को बुलाया जाता है। दुकानों के उद्घाटन के लिए भी कोई न कोई तमाशा रचना पड़ता है, क्योंकि इस युग में प्रचार का मुर्गा बांग नहीं दे तो सूरज भी शायद नहीं निकले। कुछ ऐसे प्रबल भ्रम रचे जा चुके हैं। पहले सारे उद्घाटन नेताओं से कराए जाते थे, परंतु अब आम जनता में उनकी साख इतनी गिर गई है कि फिल्म वालों को ही बुलाया जाता है।
इतना ही नहीं चुनाव प्रचार में भी भीड़ जुटाने के लिए अभिनेताओं को बुलाया जाता है। धनाढ्य परिवार अपने घर की शादियों और बच्चों के मुंडन समारोह में भी धन देकर सितारों को बुलाते हैं। ये सारे संकेत केवल सांस्कृतिक शून्य को ही रेखांकित कर रहे हैं।
आज के सफल कलाकारों के लिए आय के नए स्रोत खुलते जा रहे हैं और जिस व्यक्ति को जो काम आता है, उससे बिल्कुल अलग काम के लिए उसे ज्यादा धन मिल रहा है। योग्यता और पारिश्रमिक के समीकरण बदल गए हैं। आज महज काम में प्रवीणता या मेहनत से बात नहीं बनती, कुछ तमाशा भी करना पड़ता है और अब अवाम भी अनुभवी तमाशबीन हो चुका है(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,29.10.2010)।
इस तरह के प्रकरणों में फिल्म उद्योग के लोगों के व्यक्तिगत झगड़े और पूर्वाग्रह भी बाधा खड़ी करते हैं। खबर है कि ऐश्वर्या राय बच्चन अपनी अभिनीत फिल्म ‘एक्शन रीप्ले’ के प्रचार के सिलसिले में ‘केबीसी 4’ में शामिल नहीं हुईं। कारण बताया जा रहा है कि इसमें जीती हुई राशि सलमान खान की ‘बीइंग ह्यूमन’ फॉउंडेशन को दिए जाने का फैसला अक्षय कुमार और निर्माता विपुल शाह पहले ही कर चुके थे।
गौरतलब है कि शो के संचालक अमिताभ बच्चन ने इस पर कोई एतराज नहीं जताकर अपनी गरिमा बनाए रखी। यह भी संभव है कि बहू होने के नाते ऐश्वर्या नियमानुसार कार्यक्रम में नहीं आ सकती हों। यह भी खबर है कि कभी अमिताभ बच्चन के अति प्रचारित ‘छोटे भैया’ अमर सिंह सलमान खान संचालित ‘बिग बॉस 4’ में आना चाहते हैं।
इसी तरह संजय लीला भंसाली को उनकी पहली दो फिल्मों में सहायता करने वाले सलमान खान को ‘बिग बॉस’ में अपनी फिल्म ‘गुजारिश’ का प्रचार करने में नायिका ऐश्वर्या राय के होने से संकोच होगा। गुजरा हुआ वक्त गुजरकर भी नहीं गुजरता। संबंध टूटने के बाद भी सामाजिक-सार्वजनिक मुलाकातें की जा सकती हैं। मौजूदा संबंध मजबूत हों तो विगत के गलियारों की ध्वनियां कुछ नहीं कर सकतीं। शायद मीडिया के अनगिनत दोहराव और मनमानी व्याख्या के खौफ से लोग मिलने से कतराते हैं।
बाजार और विज्ञापन के इस युग में किताबों के विमोचन में भी फिल्म कलाकारों या सुप्रसिद्ध लोगों को बुलाया जाता है। दुकानों के उद्घाटन के लिए भी कोई न कोई तमाशा रचना पड़ता है, क्योंकि इस युग में प्रचार का मुर्गा बांग नहीं दे तो सूरज भी शायद नहीं निकले। कुछ ऐसे प्रबल भ्रम रचे जा चुके हैं। पहले सारे उद्घाटन नेताओं से कराए जाते थे, परंतु अब आम जनता में उनकी साख इतनी गिर गई है कि फिल्म वालों को ही बुलाया जाता है।
इतना ही नहीं चुनाव प्रचार में भी भीड़ जुटाने के लिए अभिनेताओं को बुलाया जाता है। धनाढ्य परिवार अपने घर की शादियों और बच्चों के मुंडन समारोह में भी धन देकर सितारों को बुलाते हैं। ये सारे संकेत केवल सांस्कृतिक शून्य को ही रेखांकित कर रहे हैं।
आज के सफल कलाकारों के लिए आय के नए स्रोत खुलते जा रहे हैं और जिस व्यक्ति को जो काम आता है, उससे बिल्कुल अलग काम के लिए उसे ज्यादा धन मिल रहा है। योग्यता और पारिश्रमिक के समीकरण बदल गए हैं। आज महज काम में प्रवीणता या मेहनत से बात नहीं बनती, कुछ तमाशा भी करना पड़ता है और अब अवाम भी अनुभवी तमाशबीन हो चुका है(जयप्रकाश चौकसे,दैनिक भास्कर,29.10.2010)।
योग्यता और पारिश्रमिक के समीकरण बदल गए हैं
ReplyDeleteसंबंधो और दिखावे की दुनिया हो गई है..
तड़क भड़क ही योग्यता है.