लाल सलाम की विचारधारा को जनगीतों का चोला पहना कर गांवों-गांवों में गाने वाले मशहूर जनकवि गदर के गीत पहली बार सिनेमा के बड़े परदे तक पहुंच गए हैं। सूत्रों के मुताबिक निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने अपनी जल्द रिलीज होने वाली फिल्म "रक्तचरित्र" में न सिर्फ गदर के गीतों को शामिल किया है बल्कि इस फिल्म का एक किरदार भी गदर से प्रेरित है, जिसे परदे पर मशहूर गायक सुखविंदर सिंह निभाते नजर आएंगे।
दक्षिण के नक्सली नेता रहे परिताला रवि के जीवन पर आधारित फिल्म "रक्तचरित्र" के जरिए निर्देशक रामगोपाल वर्मा देश में नक्सली विचारधारा की जड़ों को तलाश रहे हैं। फिल्म यह बताती है कि किस तरह वामपंथी विचारधारा भी सत्ता के आकर्षण से न सिर्फ भ्रष्ट होती है बल्कि सियासत के बड़े खिलाड़ियों के हाथों का मोहरा भी बनती है। गरीबों को हक दिलाने के नाम पर उन्हें बंदूक थमाने के लिए किस तरह इलाके के बुद्धिजीवियों को गुमराह किया जाता है, इसका जिक्र फिल्म रक्तचरित्र में मशहूर जनकवि गदर के बहाने आता है। अलग तेलंगाना की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में १९६९ में शामिल हुए गदर का असली नाम गुम्माडी विट्ठल राव है। तेलंगाना आंदोलन के दिनों में ही वह वामपंथी नेताओं के संपर्क में आए और बाद में बैंक की नौकरी छोड़कर बदन पर सिर्फ एक धोती और कंबल ओढ़े वामपंथी विचारधारा की अलख जगाने निकल पड़े। मशहूर गदर पार्टी के नाम पर अपना नाम रखने वाले विट्ठल राव पुलिस के निशाने पर आने के बाद १९८५ से लेकर १९९० तक आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में छिपकर रहे। एम. चेन्ना रेड्डी के सत्ता संभालने के बाद गदर अज्ञातवास से बाहर आए और इसी साल हैदराबाद के निजाम कॉलेज में दो लाख लोगों की मौजूदगी में गदर ने अपनी जन नाट्य मंडली की १९वीं सालगिरह मनाई। गदर की मनोदशा और उनके वामपंथी विचारधारा से प्रेरित होने की वजह जानने के लिए मशहूर गायक सुखविंदर सिहं ने उनसे बिना अपनी पहचान जाहिर किए मुलाकात की और उनकी नाट्य मंडली को करीब से परखा। नक्सल समस्या हिंदी सिनेमा का इस साल प्रिय विषय भले रहा हो, लेकिन असली नक्सल साहित्य का अब तक किसी हिंदी फिल्म में इस्तेमाल नहीं हुआ है। प्रशासन के अत्याचार से ही दलितों और आदिवासियों के बीच नक्सलवाद का जन्म होने की बात को पुख्ता करने के लिए हिंदी सिनेमा में इस साल रावण और रेड अलर्ट और भोजपुरी में रणभूमि जैसी फिल्में बन चुकी हैं। ये तीनों फिल्में जहां काल्पनिक किरदारों पर आधारित रहीं, वहीं रक्तचरित्र को पूरी तरह वास्तविक किरदारों पर आधारित रखा गया है(पंकज शुक्ल,नई दुनिया,दिल्ली,18.10.2010)।
दक्षिण के नक्सली नेता रहे परिताला रवि के जीवन पर आधारित फिल्म "रक्तचरित्र" के जरिए निर्देशक रामगोपाल वर्मा देश में नक्सली विचारधारा की जड़ों को तलाश रहे हैं। फिल्म यह बताती है कि किस तरह वामपंथी विचारधारा भी सत्ता के आकर्षण से न सिर्फ भ्रष्ट होती है बल्कि सियासत के बड़े खिलाड़ियों के हाथों का मोहरा भी बनती है। गरीबों को हक दिलाने के नाम पर उन्हें बंदूक थमाने के लिए किस तरह इलाके के बुद्धिजीवियों को गुमराह किया जाता है, इसका जिक्र फिल्म रक्तचरित्र में मशहूर जनकवि गदर के बहाने आता है। अलग तेलंगाना की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में १९६९ में शामिल हुए गदर का असली नाम गुम्माडी विट्ठल राव है। तेलंगाना आंदोलन के दिनों में ही वह वामपंथी नेताओं के संपर्क में आए और बाद में बैंक की नौकरी छोड़कर बदन पर सिर्फ एक धोती और कंबल ओढ़े वामपंथी विचारधारा की अलख जगाने निकल पड़े। मशहूर गदर पार्टी के नाम पर अपना नाम रखने वाले विट्ठल राव पुलिस के निशाने पर आने के बाद १९८५ से लेकर १९९० तक आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में छिपकर रहे। एम. चेन्ना रेड्डी के सत्ता संभालने के बाद गदर अज्ञातवास से बाहर आए और इसी साल हैदराबाद के निजाम कॉलेज में दो लाख लोगों की मौजूदगी में गदर ने अपनी जन नाट्य मंडली की १९वीं सालगिरह मनाई। गदर की मनोदशा और उनके वामपंथी विचारधारा से प्रेरित होने की वजह जानने के लिए मशहूर गायक सुखविंदर सिहं ने उनसे बिना अपनी पहचान जाहिर किए मुलाकात की और उनकी नाट्य मंडली को करीब से परखा। नक्सल समस्या हिंदी सिनेमा का इस साल प्रिय विषय भले रहा हो, लेकिन असली नक्सल साहित्य का अब तक किसी हिंदी फिल्म में इस्तेमाल नहीं हुआ है। प्रशासन के अत्याचार से ही दलितों और आदिवासियों के बीच नक्सलवाद का जन्म होने की बात को पुख्ता करने के लिए हिंदी सिनेमा में इस साल रावण और रेड अलर्ट और भोजपुरी में रणभूमि जैसी फिल्में बन चुकी हैं। ये तीनों फिल्में जहां काल्पनिक किरदारों पर आधारित रहीं, वहीं रक्तचरित्र को पूरी तरह वास्तविक किरदारों पर आधारित रखा गया है(पंकज शुक्ल,नई दुनिया,दिल्ली,18.10.2010)।
No comments:
Post a Comment
न मॉडरेशन की आशंका, न ब्लॉग स्वामी की स्वीकृति का इंतज़ार। लिखिए और तुरंत छपा देखिएः